साबरी की हत्या के मायने

अगर आप उदार विचारों वाले हैं, मोहब्बत के पैगाम फैलाना चाहते हैं या मजहबी संकीर्णताओं का विरोध करते हैं, तो दक्षिण एशिया में आपके लिए खतरे बढ़ रहे हैं, जिसमें कराची को सबसे खतरनाक शहर कहा जा सकता है. यहां आप दिनदहाड़े राह चलते, भीड़भरे पार्क या मॉल में अज्ञात बंदूकधारियों की गोलियों के शिकार […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 24, 2016 5:55 AM

अगर आप उदार विचारों वाले हैं, मोहब्बत के पैगाम फैलाना चाहते हैं या मजहबी संकीर्णताओं का विरोध करते हैं, तो दक्षिण एशिया में आपके लिए खतरे बढ़ रहे हैं, जिसमें कराची को सबसे खतरनाक शहर कहा जा सकता है. यहां आप दिनदहाड़े राह चलते, भीड़भरे पार्क या मॉल में अज्ञात बंदूकधारियों की गोलियों के शिकार या फिर अगवा हो सकते हैं.

कराची फिलहाल मशहूर कव्वाल अमजद साबरी की हत्या की वजह से सुर्खियों में है. इससे पहले, इसी हफ्ते यहां सिंध हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस सज्जाद अली के बेटे को अगवा किया गया. चीफ जस्टिस शिया हैं और पाक में सक्रिय तालिबानी सोच की जमातें यहूदी, ईसाई व हिंदू ही नहीं, शिया, अहमदिया व सूफी लोगों को भी अपने देश और धर्म का शत्रु समझती हैं.

ऐसी जमातों के खिलाफ बोलनेवाले मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम जकी की बीते मई में कराची के सेंट्रल पार्क में हत्या कर दी गयी. पिछले साल उदारवादी कार्यकर्ता सबीन महमूद को बंदूकधारियों ने उनकी कार में मार डाला था. यह बात तो समझ में आती है कि खुर्रम जकी और सबीन महमूद जैसे लोग कट्टरपंथी जमातों के मुखर विरोध के कारण निशाना बनते हैं, लेकिन गीत-संगीत में रमे कव्वाल से किसी को क्या दुश्मनी! दरअसल, गीत-संगीत में धर्म, जाति, भाषा और राष्ट्र की सीमाओं को लांघ कर पूरी मानवता के हृदय को आंदोलित करने की ताकत होती है और यही बात कट्टरपंथी जमातों को अखरती है. अमजद साबरी की गायी कव्वालियों में भी अमन और भाईचारे के संदेश हैं.

वे उन्हीं मकबूल साबरी के भांजे थे, जिन्होंने अपने भाई गुलाम फरीद साबरी के साथ 1950-70 के दशक में ‘साबरी ब्रदर्स’ नाम से कव्वालियों के जरिये पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में समान रूप से शोहरत पायी थी. 1970 के दशक का ‘भर दे झोली मेरी या मोहम्मद’ आज भी इतना लोकप्रिय है, कि मुल्कों की दूरी पाटने की मंशा से बनी ‘बजरंगी भाईजान’ में इसका इस्तेमाल करना निर्माता-निर्देशक को उचित लगा. दुख और खतरे की बात यह है कि पाक में सक्रिय कट्टरपंथी जमातें अपनी मुहिम में अकेली नहीं हैं.

उधर, बांग्लादेश में भी उदार सोचवाले लोगों पर ऐसी जमातों के हमले लगातार हो रहे हैं, तो इधर अपना देश भी समय-समय पर असहिष्णुता की झलक दिखलाता रहता है. ऐसे में अमजद साबरी की हत्या को पूरे दक्षिण एशिया में उदारवादी सोच पर बढ़ते हमलों की कड़ी में देखा जाना चाहिए.

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