डगमग अर्थव्यवस्था

मौजूदा वित्तीय वर्ष के शुरुआती रुझान अपेक्षानुरूप नहीं हैं. पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि की दर सात फीसदी रही है. पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में यानी जनवरी-मार्च 2015 में यह दर 7.5 फीसदी रही थी. लेकिन यह बहुत निराशाजनक स्थिति नहीं है. सात फीसदी की दर पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 2, 2015 12:21 AM

मौजूदा वित्तीय वर्ष के शुरुआती रुझान अपेक्षानुरूप नहीं हैं. पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि की दर सात फीसदी रही है. पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में यानी जनवरी-मार्च 2015 में यह दर 7.5 फीसदी रही थी.

लेकिन यह बहुत निराशाजनक स्थिति नहीं है. सात फीसदी की दर पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है. साथ ही, ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वर्तमान गिरावट से उबरने की क्षमता भी इसमें अधिक है.

अप्रैल-जून, 2014 की 6.7 फीसदी की दर से तुलना में मौजूदा दर संतोषजनक है. परंतु इस आंकड़े से यह बात फिर रेखांकित होती है कि पूरी तरह से पटरी पर आने में अर्थव्यवस्था को अभी समय लगेगा. इसके लिए सबसे जरूरी कारक- नये निजी निवेश और सरकारी व्यय में बढ़ोतरी- बहुत हद तक निष्क्रिय हैं.

जुलाई में आठ बड़े क्षेत्रों में वृद्धि 1.1 फीसदी तक आ गयी थी, जो जून में तीन फीसदी थी. देश का 38 फीसदी फैक्ट्री उत्पादन इन आठ क्षेत्रों में होता है. ऐसे में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ेगा.

इस महीने के आखिर में बैंक की नीतिगत समीक्षा बैठक होनी है. निजी मांग में तेजी न हो पाना चिंता की बात है, क्योंकि भारत उपभोग-आधारित अर्थव्यवस्था है.

अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग का हिस्सा 58.7 फीसदी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में उथल-पुथल का दौर पिछले दो महीने से जारी है जिसका असर भारत पर भी पड़ा है.

डॉलर की मजबूती और चीनी मुद्रा युआन के अवमूल्यन से रुपये पर काफी दबाव है. कमजोर मॉनसून की आशंकाओं को जुलाई की बारिश से कुछ राहत मिली थी, लेकिन अगस्त महीने में औसत से 22 फीसदी कम वर्षा से खेती और इससे जुड़े व्यवसायों पर गंभीर असर पड़ना स्वाभाविक है. महंगाई ने आम लोगों की बचत पर भी असर डाला है.

ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा ठोस कदम उठाया जाना आवश्यक हो गया है. खासकर राजनीतिक सहमति के अभाव में आर्थिक सुधार से जुड़ी कई पहलें लंबित हैं. इसलिए इन पर विभिन्न राजनीतिक दलों को भरोसे में लेने के लिए केंद्र सरकार को सक्रिय एवं सकारात्मक प्रयास करना चाहिए. ग्रामीण भारत औद्योगिक वस्तुओं का बड़ा उपभोक्ता है, लेकिन क्रय शक्ति में क्षरण ने मांग पर प्रतिकूल असर डाला है.

इसी तरह रोजगार वृद्धि भी शिथिल है. इन चुनौतियों का त्वरित समाधान जरूरी है. आशा है कि वृद्धि दर में कमी सरकार को सकारात्मक कोशिशों के लिए प्रोत्साहित करेगी.

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