साक्षर से शिक्षित बनाना आसान नहीं

आज तमाम अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में क्यों पढ़ाना चाहते हैं? जिन अभिभावकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, उनके मन में हमेशा ग्लानि रहती है कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं? आखिर, लोगों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2015 5:31 AM
आज तमाम अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में क्यों पढ़ाना चाहते हैं? जिन अभिभावकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, उनके मन में हमेशा ग्लानि रहती है कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं? आखिर, लोगों के मन में सरकारी स्कूलों के प्रति हीनभाव क्यों है?
इसकी वजह यह है कि वर्तमान युग को देखते हुए देश के सरकारी स्कूलों की शिक्षा के स्तर में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं हुआ है. इस कारण बच्चों की शिक्षा संबंधी नींव कमजोर हो रही है, जो उनकी उच्च शिक्षा में बाधक सिद्ध हो रही है.
देश का विकास और सशक्त युवा पीढ़ी का निर्माण कमजोर शिक्षा की बुनियाद पर नहीं किया जा सकता है. बच्चों को किसी प्रलोभन के कारण स्कूल लाना बड़ी बात नहीं है. शिक्षा के महत्व को अभिभावक के साथ बच्चों को भी समझ में आना चाहिए, तभी शिक्षा का असल विकास होगा.
कई स्कूलों के शिक्षक ऐसे हैं, जो सरकारी नौकरी में कार्यरत होते हुए भी स्कूल के बच्चों को अपने घर में ट्यूशन पढ़ाते हैं. क्या ऐसा करना उचित है? कुछ शिक्षकों की अपने कर्तव्य के प्रति गैरजिम्मेदाराना हरकत करना तमाम शिक्षकों की छवि को धूमिल करती है. सर्वशिक्षा अभियान के तहत बच्चों को ‘साक्षर’ बनाने की योजना बहुत हद तक सफल हुई है, लेकिन उन्हें ‘शिक्षित’ बनाने का सफर आसान नहीं है. इसके लिए नवीन और व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली की जरूरत है.
माननीय मुख्यमंत्री द्वारा ‘स्कूल चलें, चलायें’ अभियान द्वारा शिक्षा व्यवस्था में कब तक सुधार होगा, इसका इंतजार अभिभावकों के साथ छात्रों को भी होगा. इसमें आमूल सुधार की जरूरत है.
विनीता वर्मा, निमडीह, चाईबासा

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