जल-संरक्षण के प्रति चेते सरकार-समाज

सदियों पहले महान कवि रहीम ने कहा था, ‘रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून/ पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून’. दुनिया के दूसरे कोने में रहीम के ही समकालीन विद्वान कलाकार लियोनादरे दा विंची कह रहे थे कि जल संपूर्ण प्रकृति की संचालक शक्ति है. लेकिन, आज जल के समुचित उपभोग और संरक्षण […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 26, 2015 2:30 AM

सदियों पहले महान कवि रहीम ने कहा था, ‘रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून/ पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून’. दुनिया के दूसरे कोने में रहीम के ही समकालीन विद्वान कलाकार लियोनादरे दा विंची कह रहे थे कि जल संपूर्ण प्रकृति की संचालक शक्ति है.

लेकिन, आज जल के समुचित उपभोग और संरक्षण को लेकर हम इस कदर लापरवाह हैं कि आसन्न संकट से मानव सभ्यता के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खड़ा हो गया है. बीते रविवार को विश्व जल दिवस के अवसर पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि अगर वैश्विक स्तर पर नीतिगत बदलाव नहीं किये गये, तो 2030 में दुनिया की जरूरत का सिर्फ 60 फीसदी पानी उपलब्ध होगा. भारत सहित अनेक देशों में जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है. साथ ही जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग के कारण बारिश का मिजाज भी पूरी दुनिया में अनिश्चित होता जा रहा है.

भारत समेत दक्षिण एशिया में पानी के संभावित संकट को रेखांकित करने के उद्देश्य से प्रेरित संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट नयी दिल्ली में जारी की गयी. हमारे देश में पानी की कम उपलब्धता और दोषपूर्ण प्रबंधन की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि करीब 75 करोड़ भारतीयों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है. इसमें अधिकतर गरीब और वंचित समुदायों के लोग हैं. यह मानना सही नहीं होगा कि प्रकृति ने हमें समुचित मात्र में पानी उपलब्ध नहीं कराया है. दरअसल, समस्या हमारी नीतियों और उपभोग के तौर-तरीकों में है.

कृषि उत्पादन बढ़ाने पर जोर और तेज गति से हो रहे शहरीकरण व औद्योगिकीकरण के कारण भूजल के साथ-साथ नदियों और झीलों के जल का व्यापक दोहन हुआ है, लेकिन पानी के संरक्षण, शोधन और संवर्धन को लेकर सरकार और समाज दोनों ही उदासीन बने हुए हैं.

देश में यंत्रों के जरिये चलनेवाले कुओं व ट्यूबवेलों की जो संख्या 1960 में 10 लाख से भी कम थी, जो 2000 आते-आते करीब दो करोड़ तक पहुंच गयी थी. विकास की आपाधापी में अगर जल-संरक्षण, गंदे पानी के शोधन, अत्यधिक उपभोग पर लगाम, वैकल्पिक जल व ऊर्जा स्नेतों का उपयोग जैसे उपायों पर आधारित नीतियां जल्द नहीं लागू हुईं, तो हम निश्चित रूप से सामूहिक विनाश को ही आमंत्रण देंगे.

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