गरीब कौन? वह महिला या मैं

अजय पांडेय प्रभात खबर, गया उस महिला को देख कर बरबस विलियम सी डगलस का एक यात्रा वृत्तांत ‘द गर्ल विद अ बास्केट’ की मुख्य पात्र नौ वर्षीया लड़की की याद आ जाती है, जो लेखक को रानीखेत यात्रा के दौरान बरेली स्टेशन पर पंखे बेचती हुई मिल जाती है, जबकि यह महिला मुङो पटना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 1, 2014 4:26 AM
अजय पांडेय
प्रभात खबर, गया
उस महिला को देख कर बरबस विलियम सी डगलस का एक यात्रा वृत्तांत ‘द गर्ल विद अ बास्केट’ की मुख्य पात्र नौ वर्षीया लड़की की याद आ जाती है, जो लेखक को रानीखेत यात्रा के दौरान बरेली स्टेशन पर पंखे बेचती हुई मिल जाती है, जबकि यह महिला मुङो पटना रेलवे स्टेशन पर लगभग हर बार गया आते समय मिल जाती है. नमकीन के पैकेट बेचते हुए. दोनों में कितनी समानता है. बेबस. बेसहारा. दोनों उम्र के उस पड़ाव पर, जब दोनों को किसी सहारे की जरूरत. लेकिन, स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ.
आत्मसम्मान से कोई समझौता नहीं.
इसी वजह से वह लड़की अपने पंखे के लिए ज्यादा पैसे स्वीकार नहीं करती और न ही बिना पंखा खरीदे लेखक के पैसे स्वीकार करती है. विलियम डगलस अपने वृत्तांत की मुख्य पात्र को भारतीय आत्मा व संस्कृति का प्रतीक मानते हैं. अगर, महिला की बात करें, तो उसके प्रतिरूप में भारतीय संस्कृति और ज्यादा प्रौढ़ नजर आती है. लगभग 80 वर्षीया एक महिला अपने भरण-पोषण के लिए प्लेटफॉर्म व ट्रेनों में नमकीन व बिस्कुट के पैकेट बेचती है. पटना से गया आने के दौरान उस महिला को कई बार देखा. उसकी उम्र की कई महिलाओं को भीख मांगते हुए भी देखा. लेकिन, उसके चेहरे पर गर्व का भाव. क्योंकि, उसे पता है कि वह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाती.
उसकी बेबसी को देखते हुए कई बार मैंने उससे बात करने की कोशिश की. जानना चाहा कि उम्र के इस पड़ाव में ट्रेनों व प्लेटफॉर्म पर धक्के खाने का कारण. इसके पीछे मेरे मन में उसके बुढ़ापे के प्रति सहानुभूति ही थी. एक बार मौका मिला. गया आते समय जब मैंने उस महिला को 10 रुपये का नोट दिया, तो उसने एक नमकीन का पैकेट मुङो दिया. मैंने कहा- मुङो नमकीन नहीं चाहिए, आप रुपये रख लो. लेकिन, उस महिला की प्रतिक्रिया देख मुङो काफी शर्मिदगी हुई. उस महिला ने 10 का नोट वापस करते हुए कहा- बाबू, मैं भीख नहीं मांग रही. सामान बेच रही हूं. आपको नमकीन लेना है, तो लीजिए. नहीं, तो प्लेटफॉर्म पर बहुत सारे भिखारी घूम रहे हैं.
जाते-जाते उस महिला ने नसीहत भी दी कि आप ये पैसे उसी को दीजिएगा, जो अपाहिज होगा. वह कुछ काम करने लायक नहीं होगा. उस महिला की बात सुन कर मुङो काफी आत्मग्लानि हुई. उस वक्त मेरे में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उस महिला से माफी मांग सकूं. मानो उसकी बातों ने मुङो अंदर से हिला कर रख दिया हो. बात सिर्फ इतनी भर नहीं थी. मैंने सोचा कि जब इतना हो ही गया है, तो अब नमकीन का पैकेट खरीद ही लूं. मैंने जब 10 रुपये के बदले नमकीन का पैकेट मांगा, तो उसने पैकेट दे दिये, लेकिन रुपये लेने से इनकार कर दिया. कहा- बाबू, जब आपने मेरे लिए इतनी दया दिखायी है, तो मेरे तरफ से आप नमकीन खा लो. उस महिला का यह रूप देख मुङो अपनी मानसिक निर्धनता का अहसास हुआ.

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