सस्ती कॉल दरों का जाल

जिस तरह से अस्सी के दशक के शुरू में देश में मारुती क्रांति देखने को मिला था. इस समय मोबाइल क्रांति का दौर है. करीब 95 फीसद आबादी के हाथों में फोन आ गया है. नब्बे के दशक में जब इसका प्रचलन शुरू हुआ था, तो नहीं लगा था कि यह एक दिन जन-जन तक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 18, 2019 5:39 AM
जिस तरह से अस्सी के दशक के शुरू में देश में मारुती क्रांति देखने को मिला था. इस समय मोबाइल क्रांति का दौर है. करीब 95 फीसद आबादी के हाथों में फोन आ गया है. नब्बे के दशक में जब इसका प्रचलन शुरू हुआ था, तो नहीं लगा था कि यह एक दिन जन-जन तक पहुंच जायेगा.
आज कॉल इतना सस्ता हो गया है कि लोग घंटों मोबाइल पर बात करते रहते हैं. दूरसंचार कंपनियों की इसी मुफ्त टॉक टाइम के कारण आज ये कंपनियां जबर्दस्त घाटे में चल रहीं हैं. उस पर कइयों ने तो सरकार को अभी तक 4जी स्पेक्ट्रम का पैसा नहीं चुकाया है.
निजीकरण एवं प्रतिस्पर्धा के कारण टेलीकॉम क्षेत्र डूबने के कगार पर पहुंच गया है. अब मूल्य बढ़ाने की बात हो रही है. तमिल में एक कहावत है आप हाथी को एक बार गन्ना पकड़ा देते हो तो फिर उसे वापस नहीं ले सकते. यही हाल उपभोक्ताओं का है. फ्री में बात करने की लत लग चुकी है. मगर इससे बचाने के लिए कुछ तो करना ही होगा.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर

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