स्वच्छ हो रेल

भारतीय रेल को उचित ही देश की जीवन-रेखा की संज्ञा दी जाती है. इस यातायात नेटवर्क से सालभर में सवा आठ अरब से ज्यादा लोग यात्राएं करते हैं. ऐसे में रोजाना चलनेवाली 20 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों और 73 सौ से ज्यादा स्टेशनों को साफ-सुथरा रखना एक बड़ी चुनौती है. हालांकि, यात्री सुविधाओं में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 17, 2019 6:14 AM

भारतीय रेल को उचित ही देश की जीवन-रेखा की संज्ञा दी जाती है. इस यातायात नेटवर्क से सालभर में सवा आठ अरब से ज्यादा लोग यात्राएं करते हैं. ऐसे में रोजाना चलनेवाली 20 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों और 73 सौ से ज्यादा स्टेशनों को साफ-सुथरा रखना एक बड़ी चुनौती है.

हालांकि, यात्री सुविधाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है और ट्रेनों का संचालन भी बेहतर हुआ है, पर स्वच्छता संतोषजनक नहीं है. पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय इस समस्या के ठोस निदान के प्रयास में लगा है, जिसके सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं.

इस वर्ष के स्वच्छता सर्वेक्षण में पहले से शीर्षस्थ स्टेशनों के साथ कई अन्य स्टेशन भी मानकों पर खरे उतरने लगे हैं. इस सर्वेक्षण में गीले व सूखे कचरे के प्रबंधन, ऊर्जा का प्रबंधन, सफाई गतिविधियों आदि के आधार पर स्टेशनों की परख होती है. इसका एक सराहनीय पहलू यह भी है कि जिन स्टेशनों पर सबसे अधिक सुधार रेखांकित किया गया है, उनमें से अधिकतर उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार, में हैं. रेल मंत्रालय स्वतंत्र संगठनों द्वारा 2016 से इस सर्वेक्षण को करा रहा है.

पहले इसमें 407 बड़े स्टेशनों का मुआयना होता था, पर इस साल इनकी संख्या बढ़ाकर 720 कर दिया गया है तथा इसमें 109 उपनगरीय स्टेशनों को भी पहली बार शामिल किया गया है. स्टेशनों और ट्रेनों को साफ-सुथरा रखने के लिए सरकार की ओर से अनेक उपाय किये जा रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को जानकारी दी थी कि यात्री डिब्बों में जैव-शौचालय तथा कूड़ेदान की व्यवस्था की जा रही है.

लंबी दूरी की एक हजार से अधिक ट्रेनों में परिचारकों की नियुक्ति भी हो चुकी है. स्टेशनों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग शौचालय बनाने को भी प्राथमिकता दी जा रही है तथा शुल्क देकर इनका उपयोग किया जा सकता है. स्वच्छता के लिए मशीनों के उपयोग पर भी बल दिया जा रहा है. साल 2014 से हर साल मनाये जानेवाले स्वच्छता पखवाड़ा के दौरान भी रेल मंत्रालय बहुत सक्रिय होता है. इस वर्ष की रिपोर्ट के परिणाम इन प्रयासों के पटरी पर होने के प्रमाण हैं.

स्टेशनों की साफ-सफाई के अलावा ट्रेनों और यात्रा के दौरान उपलब्ध भोजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे हैं. जुलाई, 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में ट्रेनों में खान-पान की दुर्व्यवस्था पर रेल मंत्रालय को आड़े हाथों लिया था. इस स्थिति से मंत्रालय भी अनजान नहीं था. उसी साल फरवरी में नयी कैटरिंग नीति घोषित की जा चुकी थी. इसके तहत भोजन बनाने और वितरण करने के लिए रसोई सुविधाओं को बढ़ाया गया है.

गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए क्लोज सर्किट कैमरे लगाने के साथ अधिकारियों की नियुक्ति की गयी है. दिसंबर, 2018 में इसमें कुछ और प्रावधान जोड़े गये थे. आशा है कि मंत्रालय और संबद्ध विभाग स्वच्छता पर अपनी सक्रियता को और अधिक गति देकर भारतीय रेल को एक आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे.

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