पलायन करना मजबूरी है

झारखंड सरकार की पहल पर बांस उद्योग और बांस के कारीगरों के लिए बहुत अच्छी खबर है. सरकार ने अपने खर्च पर बांस कारीगरों को विदेश भेजने का निर्णय लिया है, प्रशिक्षण के लिए. लेकिन झारखंड के कुछ हिस्से से चुने गये लोगों को ही इसमें शामिल किया गया है. राज्य के खूंटी, गुमला, सिमडेगा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 16, 2019 1:09 AM
झारखंड सरकार की पहल पर बांस उद्योग और बांस के कारीगरों के लिए बहुत अच्छी खबर है. सरकार ने अपने खर्च पर बांस कारीगरों को विदेश भेजने का निर्णय लिया है, प्रशिक्षण के लिए.
लेकिन झारखंड के कुछ हिस्से से चुने गये लोगों को ही इसमें शामिल किया गया है. राज्य के खूंटी, गुमला, सिमडेगा में भी बांस के कारीगर रहते हैं, जो अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं. मांझी (तूरी) समुदाय के लोग समाज के सबसे पिछड़े तबके से आते हैं.
उनका यह पुस्तैनी पेशा है जिसमें सूप, दउरा बनाना. लेकिन उपयोग और ब्रिकी के अभाव में उनसे यह पेशा छूटता जा रहा है. अब गिने-चुने लोग ही इस पेशे से जुड़े हुए हैं. बाकी सभी लोग झारखंड से पलायन कर चुके हैं. बचे हुए इस समुदाय के लोगों को भी सरकारी पहल पर प्रशिक्षण की अत्यंत आवश्यकता है, वरना झारखंड पलायन के लिए बदनाम होती ही रहेगी.
करमी मांझी, गुमला

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