बेहतरी की उम्मीद

तीन दशकों से जारी कश्मीर समस्या के फौरी समाधान की अपेक्षा करना सही नहीं होगा, परंतु कुछ महीनों से हालात में हो रहे सकारात्मक सुधारों से भविष्य के लिए उम्मीदें बंधती हैं. कुछ सालों से सरकार ने एक तरफ अलगाववादियों और आतंकवादी समूहों पर अंकुश लगाने की कवायद की है, तो दूसरी ओर विकास एवं […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 15, 2019 6:57 AM
तीन दशकों से जारी कश्मीर समस्या के फौरी समाधान की अपेक्षा करना सही नहीं होगा, परंतु कुछ महीनों से हालात में हो रहे सकारात्मक सुधारों से भविष्य के लिए उम्मीदें बंधती हैं. कुछ सालों से सरकार ने एक तरफ अलगाववादियों और आतंकवादी समूहों पर अंकुश लगाने की कवायद की है, तो दूसरी ओर विकास एवं कल्याण कार्यक्रमों के जरिये कश्मीरी अवाम में भरोसा पैदा करने की कोशिश की है. राज्य के अस्थिर क्षेत्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के कारण इस साल के पहले छह महीनों में घुसपैठ की एक भी घटना नहीं हुई है. ऐसा कई सालों में पहली बार हुआ है.
भारत के कूटनीतिक और रणनीतिक प्रयासों से भी पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा है. पिछले दिनों सरकार ने संसद को जानकारी दी कि स्थानीय युवकों के आतंकी गिरोहों में शामिल होने की तादाद में करीब 40 फीसदी की कमी आयी है. जांच एजेंसियों की कोशिशों से घाटी में सक्रिय भारत-विरोधी तत्वों को बाहर से आ रही आर्थिक मदद पर भी लगाम लगी है तथा अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी से भी माहौल में अमन है. गृह मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अमित शाह ने तुरंत घाटी का दौरा कर सरकार के इरादों को फिर से साफ कर दिया कि हिंसा बर्दाश्त नहीं होगी और पंचायतों के जरिये विकास कार्यक्रमों की गति तेज की जायेगी.
इन तमाम कोशिशों का एक बड़ा नतीजा यह भी हुआ है कि अस्थिरता और अलगाव की बात करनेवाले हुर्रियत और अन्य संगठनों के नेता अब कश्मीरी युवाओं को नशे के चंगुल से निकालने, विस्थापित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास, बाढ़ जैसी आपदाओं को रोकने तथा पर्यावरण की सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा करने लगे हैं.
पंचों-सरपंचों को सरकारी योजनाओं में केंद्रीय भूमिका देकर सरकार ने आम कश्मीरी को भागीदारी दी है. घाटी में सरकार की बढ़ती स्वीकार्यता और अलगाववादियों के घटते प्रभाव के कारण ही गृह मंत्री की यात्रा के दौरान बंद या हड़ताल का कोई आह्वान नहीं किया गया. साल 1990 के बाद पहली बार ऐसा हुआ था कि प्रधानमंत्री या गृह मंत्री के दौरे पर घाटी में बंद नहीं हुआ. यहां तक कि अलगाववादियों ने कश्मीरी पंडितों की वापसी की रूप-रेखा बनाने के लिए संबद्ध समुदायों का एक साझा दल गठित करने की पहल की है. राज्यपाल की ओर से भी ऐसे प्रयास तेज किये जा रहे हैं.
शनिवार को घाटी में बंद के कारण जम्मू से अमरनाथ तीर्थयात्रियों के जत्थे को निकलने में हुई बाधा को छोड़ दें, तो यह यात्रा भी अब तक शांतिपूर्ण रही है, लेकिन इन कोशिशों से कुछ अलगाववादी और आतंकवादी समूहों में बेचैनी भी बढ़ी है तथा वे बौखलाहट में अधिक हिंसक हो रहे हैं.
इस साल के पहले छह महीनों में लगभग 125 आतंकी और 22 नागरिक मारे जा चुके हैं. 70 सुरक्षाकर्मी शहीद भी हुए हैं. ऐसे में जम्मू-कश्मीर में शांति और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए विकास एवं विश्वास पर आधारित नीतियों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.

Next Article

Exit mobile version