दूसरों की और अपनी गलतियां

संतोष उत्सुक वरिष्ठ व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com यह सम्मान की बात है कि समाज के प्रतिष्ठित, वैभव संपन्न, उच्चतम वर्ग के लोग अपनी विशेषताएं समय-असमय आम देशवासियों को बताते रहते हैं. बड़े लोगों द्वारा छोटे लोगों के लिए बनायी गयी शासन व्यवस्था में यह प्रक्रिया जरूरी भी है. खास लोग समझाते हैं और आम लोग समझदारी से […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 14, 2019 7:00 AM
संतोष उत्सुक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
यह सम्मान की बात है कि समाज के प्रतिष्ठित, वैभव संपन्न, उच्चतम वर्ग के लोग अपनी विशेषताएं समय-असमय आम देशवासियों को बताते रहते हैं. बड़े लोगों द्वारा छोटे लोगों के लिए बनायी गयी शासन व्यवस्था में यह प्रक्रिया जरूरी भी है. खास लोग समझाते हैं और आम लोग समझदारी से बात को समझ कर, प्रेरणा लेने का कर्तव्य पालन करते हैं.
इसी लोकतांत्रिक राह पर चल कर परिवार, समाज और देश का निरंतर विकास एवं निर्माण प्रशस्त होता है. पिछले दिनों देश के महालोकप्रिय, बिगबॉस टाइप व प्रसिद्ध पशुप्रेमी ने फरमाया है कि वे दूसरों की गलतियां कभी नहीं भूलते. उन्होंने समाज के प्रचलित नियमों के अनुसार समझा दिया कि अब अपनी गलतियां याद न रखने, दूसरों की सारी गलतियां तफ्सील से याद रखने, किसी भी तरह हर सजा से बच निकलने और दूसरों को तुरंत सजा देने या दिलवाने का समय है.
हम तो कभी कोई गलती करते ही नहीं, गलती करने के लिए दूसरे लोग तो हैं ही, यही धारणा अपनाने का जमाना है. नायक व व्यक्तिपूजक समाज में ऐसा करना संस्कृति का हिस्सा है. कहा भी गया है कि जो व्यक्ति अपनी गलती याद न रखे, वह जीवन में हमेशा आगे बढ़ता जाता है.
सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये, तो उसे भूला नहीं कहते, टाईप चीजों की अब जरूरत नहीं रही. दूसरों की गलतियां कभी न भूलनेवाले युगपुरुष ने अपनी गलती भुलवाने व दफनाने के लिए दूसरों के कई साल व अपने करोड़ों खर्च कर दिये, लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि अभी तक उसने स्वयं आकर यह बयान नहीं दिया कि उसने अपनी जान देने के लिए, स्वयं अपने हाथों से ही अपना गला दबाया था.
लगता है ‘क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात, का रहीम को घटयो जो भृगु मारी लात’ जैसी पुरानी बातों का अब अर्थ बदल गया है. तो क्या अब इसे नये संदर्भों में ऐसे नहीं मानना पड़ेगा, ‘क्षमा छोटन को चाहिए बड़न को उत्पात, क्या जानवर का घिस गया मर्द जो मारी घात’?
कुछ जानवर मरकर भी इंसानों से पंगा लेते रहते हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि आप पंगा ले किससे रहे हैं. छोटन लोगों को क्या पता कि बड़े इंसानों की बस्ती में रहनेवाले महाजन मूलधन से पहले सूद वसूलते हैं और अब महा जन वही है, जो सब को चूना लगा दे और खुद को चूना न लगने दे.
दूसरों को उनके ही घर में घेर ले और बिना उनकी गुस्ताखी के अपना हिसाब चुकता कर ले. इतिहास ही नहीं, वर्तमान भी गवाह है कि गलतियां वही याद रखता है, जो सजा देना चाहता है. ऐसा करवाने में पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक सफलता उनकी मदद करती है.
जिनके पास सांस और आस के सिवा कुछ भी न बचा हो, वह अपनी गलतियों को कोसते रहते हैं या फिर व्यवस्था को. दूसरों की गलतियों को याद रखनेवाले और अपनी भुला देनेवाले व्यवस्था को जेब में रखने की कुव्वत रखते हैं. दूसरों की गलतियां याद रखने से याददाश्त भी सलामत रहती है.

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