स्वास्थ्य हो प्राथमिकता

पिछले दो दशकों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सेवा को समेकित रूप से सक्षम बनाने के लिए अनेक अहम पहलें की है. हालांकि, इनके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं, परंतु अभी बहुत कुछ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 13, 2019 7:26 AM
पिछले दो दशकों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सेवा को समेकित रूप से सक्षम बनाने के लिए अनेक अहम पहलें की है. हालांकि, इनके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं, परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है.
पिछले साल वाशिंगटन विवि द्वारा जारी ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीजेज’ रिपोर्ट में जानकारी दी गयी थी कि 2017 में लगभग 91 लाख मौतें हुई थीं, जिनमें से तकरीबन 90 फीसदी का संबंध स्वास्थ्य से जुड़े कारणों से था. हमारे देश में इस मद पर सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी के बावजूद आज भी कुल घरेलू उत्पादन का सवा फीसदी के आसपास ही है, जो दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है. दक्षिण एशिया के अनेक पड़ोसी देश इससे अधिक निवेश करते हैं.
वैसे 2010 की तुलना में 2018 का स्वास्थ्य बजट दोगुना हो चुका था, पर इलाज का 62 फीसदी खर्च लोगों को अपनी जेब से भरना पड़ता है. सरकारी अस्पतालों के अभाव तथा कुप्रबंधन के कारण लोगों को शहरों में स्थित निजी क्षेत्र की चिकित्सकीय सुविधाओं की शरण लेनी पड़ती है. देश में 95 फीसदी से अधिक केंद्रों में कार्यरत लोगों की संख्या पांच से कम है. इस स्थिति में बदलाव कर असमय काल-कवलित हो रहे लोगों को बचाया जा सकता है.
बीमा योजनाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं में सामंजस्य की कमी भी एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के त्वरित प्रसार की दरकार है. इसके अंतर्गत देशभर में डेढ़ लाख स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है.
ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में ऐसे केंद्रों के होने से बीमारियों को जानलेवा होने से रोका जा सकता है तथा इससे लोगों और सरकार का वित्तीय दबाव भी कम होगा. इस योजना में बीमा के जरिये उपचार के बड़े खर्चों के बोझ से गरीब और कम आमदनी वर्ग को राहत दी जा रही है. इसके कार्यान्यवयन को सुचारू बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण को स्थापित करने की प्रक्रिया भी तेज की जानी चाहिए.
एक तरफ गंभीर बीमारियों के उपचार की व्यवस्था तथा मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी पर जोर दिया जाना चाहिए, वहीं मिशन इंद्रधनुष में टीकाकरण, आयुष का विस्तार, पोषण बढ़ाने, स्वच्छ भारत अभियान, ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता जैसी पहलों को अधिक निवेश व दक्ष कर्मियों की भर्ती से अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए. एक समेकित नीतिगत और व्यावहारिक पहल सरकार के पिछले कार्यकाल में हो चुकी है.
उम्मीद है कि स्वास्थ्य के मद में जीडीपी के ढाई फीसदी खर्च करने के इरादे को पूरा करने की प्रक्रिया आगामी केंद्रीय बजट में शुरू हो जायेगी. बीमारियां, दुर्घटनाएं और अवसाद पर अंकुश लगाकर लाखों मौतों को टाला जा सकता है. इससे परिवार, समाज और देश को विकास एवं समृद्धि की राह पर अग्रसर होने में बड़ी मदद मिलेगी.

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