जरूरी है पर्यावरणीय संतुलन
शफक महजबीनटिप्पणीकारmahjabeenshafaq@gmail.com हम इंसानों ने अपने सुख-सुविधाओं के लिए जिस तरह दूसरे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का दोहन कर रहे हैं, वह हमारी जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. उदाहरण के लिए गिद्ध को ही लें. कुछ साल पहले ज्यादा दूध निकालने के लिए गायों और भैंसों को एस्प्रिन डाइक्लोफेनेक का इंजेक्शन लगाया जाने […]
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
mahjabeenshafaq@gmail.com
हम इंसानों ने अपने सुख-सुविधाओं के लिए जिस तरह दूसरे जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का दोहन कर रहे हैं, वह हमारी जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. उदाहरण के लिए गिद्ध को ही लें. कुछ साल पहले ज्यादा दूध निकालने के लिए गायों और भैंसों को एस्प्रिन डाइक्लोफेनेक का इंजेक्शन लगाया जाने लगा, ताकि उनकी मांसपेशियां ढीली हो जायें और वे दूध छोड़ दें.
जब इन गायाें और भैंसों की उम्र खत्म हुई और इनके मृत शरीर को गिद्धों ने खाया, तो डाइक्लोफेनेक का जहर उनके शरीर में फैलने लगा और धीरे-धीरे गिद्ध मरने लगे. आज गिद्ध कहीं खोजे से भी नहीं मिलते. हमने दूध का उत्पादन तो बढ़ा लिया, लेकिन गिद्धों को खत्म कर जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया.
अमेरिकी राजनेता स्टीवर्ट उदल ने कहा था- ‘हवा, पानी, जंगल और जानवर को बचानेवाली योजनाएं दरअसल मनुष्य को बचाने की योजनाएं हैं.’ हमें यह बात समझनी चाहिए कि हमारे जीवन के लिए प्रकृति एक उपहार है, इसलिए हमें सभी प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, पेड़, पानी, नदी और सभी प्राकृतिक चीजों का संरक्षण करना चाहिए. गौरतलब है कि कल 22 मई को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया गया. इस दिन को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने की थी.
जैव विविधता दिवस का अर्थ है सभी पारिस्थिकीय तंत्रों में उपस्थित विभिन्न प्रकार के जीवों के बीच सबके जीवन का चलते रहना. जैव विविधता का संरक्षण हमारे लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर जैव विविधता नष्ट हुई, तो हमारा जीवन संकट में आ जायेगा. बाढ़, सूखा, तूफान, भूस्खलन आदि के खतरे बढ़ेंगे. पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने के लिए जीवों का संरक्षण बहुत जरूरी है. आज लाखों जीव-जंतुओं की प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है.
साल 1911 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता मौरिस मेटरलिंक ने कहा था- ‘अगर मधुमक्खी दुनिया से खत्म हो जाये, तो मनुष्य के पास जिंदा रहने के लिए सिर्फ चार साल बचेंगे.’ क्या यह जरूरी नहीं कि हम मधुमक्खी के साथ अन्य जीवों का संरक्षण करें?
कृषि पैदावार को बढ़ाने के लिए रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे अनेक कीट प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं. कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से कई फसलों की किस्में भी नष्ट हुई हैं.
जैसे हमारे देश में चावल की अस्सी हजार किस्मों में से अब कुछ ही किस्में बची हैं. रोजाना पेड़ काटे जा रहे हैं और नदियाें की सदानीरा व्यवस्था खत्म हो रही है, जिससे पानी की समस्या बढ़ रही है. यह ग्लोबल वार्मिंग का भी अहम कारण है, जिससे पृथ्वी पर तापमान का स्तर बढ़ता जा रहा है.
भारत के अधिकतर गांवों में आज भी लोग लकड़ियां जलाते हैं. पशुपालन को बढ़ावा देकर और गोबर गैस संयंत्र लगाकर लकड़ी काटने से बचा जा सकता है. जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए, जो भूमि को बंजर होने से बचाने का बेहतरीन उपाय है. इस तरह अन्य कई उपायों से पृथ्वी के जीवन को विनाश से बचाने की हम सार्थक कोशिश कर सकते हैं.