आखिर कब तक रहें बेरोजगार ?

चुनाव के दिन करीब हैं. चुनावी मुद्दों पर चर्चा करने की कोशिश शुरू हो गयी है. इसमें बेरोजगारी ऐसा विषय है, जो सदियों से चला आ रहा है और इसमें बदलाव नहीं आया है. हर चुनावी रैली में, सभा में, बेरोजगारी मुद्दों पर बात की जाती है, उसकी स्थिति बेहतर करने के लिए कई कदम, […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 18, 2018 6:14 AM
चुनाव के दिन करीब हैं. चुनावी मुद्दों पर चर्चा करने की कोशिश शुरू हो गयी है. इसमें बेरोजगारी ऐसा विषय है, जो सदियों से चला आ रहा है और इसमें बदलाव नहीं आया है. हर चुनावी रैली में, सभा में, बेरोजगारी मुद्दों पर बात की जाती है, उसकी स्थिति बेहतर करने के लिए कई कदम, सुझाव दिये जाते हैं.
पर सरकार उस पर खरी नहीं उतरती. क्यों ? बेरोजगारी हर बार एक ज्वलंत मुद्दा रहता है. गरीबी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. रोजगार के साधन सीमित हैं.
सवाल यह है कि जो साधन हैं, उसका उपयोग कैसे हो रहा है. समाज में निम्न वर्ग की भागीदारी बहुत कम है जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी वे गरीब ही रह जाते हैं. सामाजिक न्याय की व्यवस्था में बदलाव और संतुलन लाना जरूरी हो गया है. ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ सामान्य रूप से मिल सके.
शादमा मुस्कान, दिल्ली

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