बदी कर फेसबुक पर डाल

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshkant@gmail.com पहले नेकी करके दरिया में डालने का विधान था. लोग जिस किसी के साथ नेकी करते थे, उसे दरिया में डालने का इंतजाम करते थे. यों भी कह सकते हैं कि जिस किसी को दरिया में डालने का मन होता था, उसके साथ नेकी कर डालते थे. नेकी करना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 12, 2018 6:50 AM
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
drsureshkant@gmail.com
पहले नेकी करके दरिया में डालने का विधान था. लोग जिस किसी के साथ नेकी करते थे, उसे दरिया में डालने का इंतजाम करते थे. यों भी कह सकते हैं कि जिस किसी को दरिया में डालने का मन होता था, उसके साथ नेकी कर डालते थे.
नेकी करना और दरिया में डालना आपस में पर्यायवाची हो गये हों, तो क्या आश्चर्य? कुछ अज्ञानी लोग इसका मतलब नेकी को दरिया में डालना समझते थे, न कि जिसके साथ नेकी की जाये उसको, लेकिन उनकी अज्ञानता इसी से स्पष्ट हो जाती है कि नेकी को भला दरिया में कैसे डाला जा सकता है, जब तक कि जिसके साथ नेकी की जाये, उसको भी दरिया में न डाल दिया जाए?
बहुत-से लोग नेकी करने से सिर्फ इस कारण वंचित रह जाते थे, क्योंकि उनके आसपास कोई दरिया नहीं होता था. दूसरी ओर, जिन लोगों के आसपास दरिया होते थे, उन्हें नेकी करने का सौभाग्य इफरात में मिलता था. बहुत-से लोग तो यह सोचकर अपना घर दरिया के पास बनवाने लगे थे कि नेकी करने के लिए कहीं दूर न जाना पड़े. जब जी चाहा, नेकी कर डाली.
जैसे आजकल जहां सोच, वहां शौचालय; वैसे ही तब जहां सोच, वहां दरिया होता था. पुरातात्त्विक शोधों में बहुत-से दरिया ऐसे मिले हैं, जिनमें पानी नहीं मिला. लोग समझते हैं कि इसका कारण यह है कि हजारों वर्षों के इस अंतराल में दरिया का पानी सूख गया होगा.
जी नहीं, इसका असली कारण यह है कि कुछ दरियाओं में तब भी पानी नहीं, बल्कि लोगों द्वारा अन्य लोगों के साथ की गयी नेकियां भरी होती थीं. इसी कारण दन दरियाओं में मिले अस्थिपंजर उन व्यक्तियों के सिवा किसके हो सकते हैं, जो किसी की नेकी के शिकार हो गये होंगे.
नेकी का वह स्वर्णिम दौर अब नहीं रहा. कुछ तो लोग ही सतर्क हो गये, कुछ प्रशासन भी उन्हें आगाह करने लगा. रास्ते में किसी से कुछ लेकर न खाएं. किसी को अपने बैंक या क्रेडिट कार्ड की गुप्त जानकारी न दें, आदि.
फिर तालाबों-बावड़ियों के साथ दरिया भी धीरे-धीरे खत्म होते चले गये, जिसने नेकी की सारी संभावनाओं को पलीता लगा दिया. दरिया के आसपास बिल्डरों ने सारी जगहें हथिया ली और खुद खरीदारों के साथ दूसरी तरह से नेकी करने लगे. अब दौर बदी का है. नेकी के नाम पर की जानेवाली बदी का नहीं, बल्कि सीधे-सीधे की जानेवाली बदी का.
इसके पीछे एक तो वह कहावत रही, जिसमें बदी करनेवाले यानी बद को अच्छा बताया गया है, केवल बदनाम को बुरा घोषित किया गया है. दूसरे, बदी करके डालने के लिए एक बहुत बड़ी जगह फेसबुक के रूप में मिल गयी. इन सब कारणों से लोग नेकी के बजाय बदी करने के लिए प्रोत्साहित हुए और उसे फेसबुक पर डालने लगे.
व्यक्ति की आजादी के अद्वितीय माध्यम के रूप में शुरू हुआ फेसबुक आज देशभर में खड़े कचरे के पहाड़ों से भी बड़ा बदी का पहाड़ बन गया है. फेसबुक पर बदी को एक नाम भी दिया गया है- ट्रोल. डरता हूं, कहीं इसे पढ़कर लोग मेरे साथ भी नेकी, नहीं बदी, मतलब ट्रोल न करने लगें.

Next Article

Exit mobile version