हिंदी प्रकाशकों में पारदर्शिता का अभाव

कनिष्क गुप्ता लिटरेरी एजेंट, राइटर्स साइड kanishka500@gmai- .com हिंदी की रीडरशिप तो है, लेकिन हिंदी प्रकाशकों की तरफ से पारदर्शिता का अभाव और रॉयल्टी एवं कांट्रैक्ट के तैयार होने में देरी से हिंदी लेखकों में उत्साह नहीं बढ़ पाता है. हिंदी लेखकों की हमेशा से यही शिकायत रहती है कि उन्हें समय से पैसे तक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 14, 2018 7:57 AM

कनिष्क गुप्ता

लिटरेरी एजेंट, राइटर्स साइड

kanishka500@gmai- .com

हिंदी की रीडरशिप तो है, लेकिन हिंदी प्रकाशकों की तरफ से पारदर्शिता का अभाव और रॉयल्टी एवं कांट्रैक्ट के तैयार होने में देरी से हिंदी लेखकों में उत्साह नहीं बढ़ पाता है. हिंदी लेखकों की हमेशा से यही शिकायत रहती है कि उन्हें समय से पैसे तक नहीं मिलते. यह एक अनप्रोशनल बात है.

इसलिए अभी हिंदी प्रकाशन जगत को इस बारे में सोचना होगा कि कैसे वे अपने को बाजार में दमखम रूप से स्थापित करने के लिए नयी तकनीकों का इस्तेमाल करें, पारदर्शिता लाएं और पब्लिकेशन एडवांसमेंट लाएं. जिस तरह से अंग्रेजी के लेखकों का नाम समाज में फैल जाता है, उस तरह से हिंदी लेखकों का नहीं हो पाता. इसकी वजह यही है कि हिंदी प्रकाशन अपने पास अच्छे डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम नहीं विकसित कर पाये हैं. ऐसा नहीं है कि उनके पास संसाधनों का अभाव है, बल्कि मुझे लगता है कि वे ऐसा करना ही नहीं चाहते हैं.

बहुत कम ऐसे हिंदी प्रकाशन हैं, जो पारदर्शिता के साथ नयी तकनीकों का प्रयोग करते हैं और अपने डिस्ट्रीब्यूशन को शानदार तरीके से बढ़ावा देते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक किताबें पहुंच सकें. हिंदी भाषा की किताबों की हालत तो कुछ ठीक है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं के प्रकाशकों और लेखकों की हालत तो बहुत ही खराब है.

हिंदी या क्षेत्रीय भाषा प्रकाशन क्षेत्र को इन सब बातों का ख्याल रखना चाहिए और खुद को नये दौर के साथ जोड़कर चलते हुए लेखकों की तमाम शिकायतों का निबटारा करना चाहिए. ताकि वे और अच्छा लिख सकें. अगर कोई लेखक ज्यादा पढ़ा जायेगा, तो इसमें प्रकाशक का ही फायदा है, यह बहुत ही सिंपल सी बात है. ऐसा नहीं है कि यह बात हिंदी प्रकाशक नहीं समझते हैं, लेकिन वे ऐसा कर नहीं पाते, यह उनकी कमजोरी है.

आज हिंदी के जितने भी बड़े लेखक हैं, इन प्रकाशकों को चाहिए उनकी रचनाओं का अनुवाद कराया जाये और उन्हें विश्व पटल पर ले जाया जाये. कुछ नामों को छोड़ दें, तो बड़े हिंदी लेखक भी दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं पहचाने जाते.

यह लेखकों और प्रकाशकों दोनों के लिए उचित नहीं है. भाषा के विस्तार के लिए जरूरी है कि उसके लेखकों और उसकी किताबों की पहुंच दूर-दूर तक हो. इसके लिए जरूरी है कि हिंदी प्रकाशक आगे आएं और तकनीक के सहारे किताबों की मार्केटिंग करें, ताकि दुनिया में मुख्यधारा के बाजार तक हिंदी किताबों की पहुंच हो सके.

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