ई-कॉमर्स पॉलिसी की दरकार

डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com आज ई-कॉमर्स का खासा महत्व हो गया है. भारत में भी लगातार ई-कॉमर्स व्यवसाय बढ़ रहा है, जिसमें कुछ बड़ी कंपनियां हैं, तो वहीं बड़ी संख्या में उनके सामने छोटे-छोटे ई-कॉमर्स स्टार्ट-अप आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. कई कंपनियां तो ऐसी भी हैं, जिनको भारतीयों ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 20, 2018 6:09 AM
डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
आज ई-कॉमर्स का खासा महत्व हो गया है. भारत में भी लगातार ई-कॉमर्स व्यवसाय बढ़ रहा है, जिसमें कुछ बड़ी कंपनियां हैं, तो वहीं बड़ी संख्या में उनके सामने छोटे-छोटे ई-कॉमर्स स्टार्ट-अप आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.
कई कंपनियां तो ऐसी भी हैं, जिनको भारतीयों ने ही बनाया है और इसलिए इन्हें भारतीय कंपनियां कहा जाता है. लेकिन, इनमें से कुछ कंपनियों का हिस्सा विदेशियों ने खरीद लिया है. चूंकि, देश के नियमों के अनुसार, ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है, इसलिए इन कंपनियों ने मार्केट प्लेस यानी प्लेटफाॅर्म मॉडल के नाम पर विदेशी निवेश इकट्ठा करना शुरू किया.
ये कंपनियां देश के कानूनों का उल्लंघन कर रही हैं, लेकिन ऐसा दिखाती हैं कि वे केवल प्लेटफाॅर्म ही हैं. वर्ष 2016 में इन कंपनियों पर अंकुश लगाने का प्रयास वाणिज्य मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग द्वारा एक नीतिगत प्रपत्र जारी कर किया गया, जिसे प्रेस नोट-3, 2016 कहा जाता है. इसके अनुसार, ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश को प्रतिबंधित किया गया, लेकिन मार्केट प्लेस मॉडल में इसे अनुमति दे दी गयी. इसके लिए तीन शर्तें लगायी गयीं, एक कि ये मार्केट प्लेस अपने प्लेटफाॅर्म पर उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के लिए किसी भी प्रकार का डिस्काउंट नहीं देंगे, जिससे कीमत प्रभावित हो.
दूसरे, इन मार्केट प्लेस में स्टॉक रखने की अनुमति नहीं होगी और तीसरे, कोई एक विक्रेता मार्केट प्लेस की कुल बिक्री का 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बेच पायेगा.
हाल ही में एक महत्वपूर्ण घटना हुई. मई 2018 में एक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फिल्पकार्ट ने विशालकाय वालमार्ट कंपनी के साथ एक सौदा किया, जिसमें फिल्पकार्ट के 77 प्रतिशत शेयर वालमार्ट ने खरीदना तय किया. फिल्पकार्ट पर विदेशी निवेश नियमों का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप पहले से ही लग रहे थे.
उसके बाद देश में यह बहस शुरू हुई है कि जिस प्रकार से ई-कॉमर्स कंपनियां भारी मात्रा में डिस्काउंट देकर सामान सस्ता बेचती हैं, जो परंपरागत दुकानदार, पुस्तक विक्रेता, छोटे ई-कॉमर्स स्टार्ट-अप और बेरोजगार युवकों के लिए मौत की घंटी है. इसको ठीक करने के लिए देश में एक ई-कॉमर्स नीति होना निहायत ही जरूरी है.
इसी साल 30 जुलाई को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक प्रस्तावित ई-कॉमर्स नीति जारी की. इसमें ई-कॉमर्स से संबंधित अनेकों विषयों- जैसे डाटा स्थानीयकरण, छोटे ई-कॉमर्स उद्यमों के लिए समान व्यवहार, डिस्काउंट पर रोक, उपभोक्ता संरक्षण एवं घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग का संवर्धन (मेक इन इंडिया) समेत कई विषयों को शामिल किया गया है.
इस नीति को इंडिया फर्स्ट ई-कॉमर्स नीति भी कहा जा रहा है. इसके अनुसार अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर अंकुश लगाया जा रहा है और उन्हें बड़े ई-कॉमर्स कंपनियों के सामने स्थानीय उद्यमों को एक समान व्यवहार उपलब्ध कराने की कोशिश हो रही है. इस प्रस्तावित नीति में डाटा के महत्व को रेखांकित किया गया है.
प्रस्तावित नीति में अनिवार्य रूप से उस डाटा के स्थानीयकरण की बात की गयी है, जिसे ई-कॉमर्स कंपनियों ने अपने उपभोक्ताओं से इकट्ठा किया है या सोशल मीडिया अथवा अन्य प्लेटफाॅर्म से उपभोक्ताओं के बारे में निकाला है.
यह डाटा जब सभी छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों को भी उपलब्ध होगा, तो उनको स्वयंमेव एक समान व्यवहार मिलेगा. बड़ी कंपनियों पर यह भी अंकुश होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक नीति उद्देश्यों के लिए अपने डाटा को उपलब्ध करायेंगी. यह अत्यंत अच्छी नीति है, क्योंकि आज दुनिया की ई-कॉमर्स व्यवसाय में बड़ी-बड़ी कंपनियों का प्रादुर्भाव है और डाटा पर उनका एकाधिकार है और ये कंपनियां अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए डाटा का उपयोग और दुरुपयोग दोनों करती हैं. प्रस्तावित नीति में कहा गया है कि कंपनियों को दो साल के भीतर ही डाटा स्थानीयकरण पूरा करना होगा.
वर्तमान में मार्केट प्लेस ई-कॉमर्स कंपनियों पर यह अंकुश है कि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वस्तु या सेवा की कीमत को प्रभावित नहीं करेंगे.
प्रस्तावित नीति में इस प्रतिबंध को ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस की ग्रुप कंपनियों पर भी लागू करने का प्रस्ताव है. यह स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि इसके कारण वर्तमान नीति की खामियों को भी दूर किया जा सकेगा. यह भी प्रावधान है कि कोई भी कंपनी कितनी देर तक डिस्काउंट दे सकती है. एक ऐसा प्रावधान भी है, जो विवादास्पद है.
इस प्रावधान के अनुसार भारतीय स्वामित्व एवं नियंत्रित मार्केट प्लेस कंपनियों में स्टॉक रखने की अनुमति दी जाये, जहां केवल सौ प्रतिशत भारतीय सामान ही बेचा जाये. पूरी आशंका है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है, इसलिए इस प्रावधान को नीति से हटाने की जरूरत है. साथ ही साथ इस नीति में एक नियंता लाने की बात कही गयी है.
हालांकि, इन प्रावधानों से भारतीय ई-कॉमर्स कंपनियां प्रसन्न हैं, लेकिन सबसे अधिक अप्रसन्न विदेशी बहुराष्ट्रीय और विदेशियों के स्वामित्व में ई-कॉमर्स कंपनियां हैं.
आज भारत में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में नीतिगत कमियों को पूरा करने का काम यह प्रस्तावित नीति कर रही है. इसके साथ ही साथ इससे विश्व व्यापार संगठन में भी वार्ताओं में सुविधा मिल सकेगी और देश में ई-कॉमर्स विश्व व्यापार संगठन के इशारों पर नहीं, बल्कि देश में बनी नीति के आधार पर चलेगा.

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