दक्षिणपंथ और भाजपा

II आकार पटेल II कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com इस सप्ताह एक बेहद दिलचस्प परिचर्चा में अरुणा रॉय, कर्नाटक संगीत के गायक व लेखक टीएम कृष्णा और सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे के साथ मैंने भी थोड़ी देर के लिए भाग लिया था. अरुणा रॉय और निखिल डे, मजदूर किसान शक्ति संगठन, जिसके आंदोलन के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 26, 2018 12:08 AM
II आकार पटेल II
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
इस सप्ताह एक बेहद दिलचस्प परिचर्चा में अरुणा रॉय, कर्नाटक संगीत के गायक व लेखक टीएम कृष्णा और सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे के साथ मैंने भी थोड़ी देर के लिए भाग लिया था. अरुणा रॉय और निखिल डे, मजदूर किसान शक्ति संगठन, जिसके आंदोलन के कारण देश को सूचना का अधिकार (आरटीआइ) मिला, से जुड़े हुए हैं.
अरुणा रॉय पिछली सरकार (यूपीए) में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में भी शामिल थीं. उन्हीं के मार्गदर्शन में भारतीय संसद द्वारा सूचना के अधिकार के अलावा मनरेगा और भोजन व शिक्षा के अधिकार जैसे बेहद मानवीय कानून बनाये गये. इतिहास में दूसरा ऐसा पांच वर्ष का एक भी कार्यकाल मैंने नहीं देखा है, जब ऐसे शानदार कानून (जो निस्संदेह सरकार का प्राथमिक कार्य है) बनाये गये हों.
इस परिचर्चा के अंत में अरुणा रॉय से एक सवाल पूछा गया कि क्यों वे भारत में दक्षिणपंथ का विरोध करती हैं और वामपंथ का नहीं. यह उन लोगों को अलग करता है, जो इन दो धाराओं के बीच में खड़े हैं. इस सवाल के जवाब में राॅय ने कहा कि वह कभी भी किसी वाम दल से नहीं जुड़ी रही हैं. उसके बाद उन्होंने कहा, क्या यह बात सही है कि जो गरीबों के भोजन या शिक्षा के अधिकार की बात करे, उसे वामपंथी मान लिया जाये?
ये मूलभूत मानवाधिकार हैं, जो सभी को मिलने चाहिए और जब कोई इस अधिकार की मांग करे, तो वह व्यक्ति चाहे किसी भी विचारधारा का हो, उसे अपमानित नहीं करना चाहिए. मेरी समझ से अरुणा रॉय ने एकदम सही कहा. पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में ‘दक्षिण’ और ‘दक्षिणपंथी’ शब्द उभरकर आये हैं, जिसने मुझे भी प्रभावित किया है. हमें निरंतर इस बात की पड़ताल करनी चाहिए कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस शब्द के क्या अर्थ हैं.
यूरोप में, जहां इस शब्द का जन्म हुआ (फ्रांस की संसद में बैठने की व्यवस्था के अनुसार), और अमेरिका में जहां इस शब्द को दृढ़ता से परिभाषित किया गया, वहां राजनीति में दक्षिण शब्द का मतलब कुछ विशिष्ट था. इसका मतलब सामाजिक पदानुक्रमों और रूढ़िवाद को बढ़ावा देने का आंदोलन था.
इसलिए भारत में इस शब्द को हमें किस संदर्भ में देखना चाहिए और इसके समर्थक क्या चाहते हैं, इसे जानने की जरूरत है? इसे जानने के लिए सबसे पहले हमें ‘उदारवाद’ और ‘वामपंथ’ को समझने की जरूरत है. वामपंथ शब्द यहां फ्रांसीसी संसद के बैठने की व्यवस्था से आता है. आज इसका मतलब उन लोगों से है, जो देश में अधिक समाजवाद की व्यवस्था चाहते हैं.
इसका अर्थ है, सरकारी स्वामित्व वाली सेवाओं के माध्यम से सरकार द्वारा नागरिकों को ज्यादा सेवाएं मुहैया कराया जाना. साथ ही इसमें निजी व्यवसायों को लेकर संदेह भी है. और, यह गरीबों, मतलब कामकाजी वर्ग और किसानों, के हक में कार्य करने के लिए राज्य पर दबाव डालता है.
भारत में वामपंथी (और विश्व में कहीं भी) खुद को इस शब्द के साथ परिभाषित करते हैं और उन्हें वामपंथी कहलाने में कोई आपत्ति नहीं है.
वामपंथी की तरह उदारवादी शब्द भी सार्वभौमिक है. शब्दकोश में उदारवादी को इस तरह परिभाषित किया गया है- ‘खुद से अलग व्यवहार या सोच को स्वीकार करने या आदर देने को इच्छुक’ और ‘व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता का पक्षधर’ व्यक्ति उदारवादी होता है.’ यहां भी उदारवादी को उदारवादी कहलाने में कोई आपत्ति नहीं है, और शब्दकोश की परिभाषा को देखते हुए, यह जानना आसान है कि एक उदारवादी को किस चीज की ख्वाहिश होती है.
आइए, अब ‘दक्षिणपंथी’ शब्द की ओर रुख करते हैं, जिसका भारत में इस्तेमाल केवल एक दल- भारतीय जनता पार्टी- की राजनीति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है. यहां दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी विचारधारा को दक्षिणपंथी या रूढ़िवादी विचारधारा से नहीं जोड़ती है.
इसकी नीतियों और कार्यसूची के अनुसार भी यही सच है. अमेरिका में दक्षिणपंथी विशिष्ट मुद्दों के साथ खड़े रहते हैं. सामाजिक मुद्दों की बात करें, तो ये गर्भपात व समलैंगिक अधिकारों के विरोध में खड़े दिखायी देते हैं. आर्थिक मुद्दों पर, दक्षिणपंथी निम्न कर (लोअर टैक्स) के साथ खड़े होते हैं और ये बाजार में सरकारी भागीदारी का विरोध करते हैं.
क्या हम भारत में ‘वामपंथी’ और ‘दक्षिणपंथी’ के बीच इस तरह का अंतर देख सकते हैं? नहीं, हम नहीं देख सकते. भाजपा गर्भपात या समलैंगिक अधिकारों का विरोध नहीं करती है और वास्तव में वह कांग्रेस थी, जिसने पिछली सरकार के दौरान, पहली बार अदालत में समलैंगिक अधिकारों का विरोध किया था (हालांकि बाद में वह अपनी बात से पलट गयी थी).
क्या भाजपा निम्न कर (लोअर टैक्स) के पक्ष में खड़ी होती है? दोबारा, इस सरकार ने नागरिकों पर कर का भार बढ़ा दिया है और हालांकि व्यक्तिगत तौर पर मैं मानता हूं कि इसने जो किया है, वह इसके अनुसार सही है, यह ‘दक्षिणपंथ’ से संबंधित चीज नहीं है.
सामाजिक क्रम का दूसरा शब्द रूढ़िवादिता है. भारत में इसका अर्थ जाति व्यवस्था है. लेकिन, भारतीय जनता पार्टी जाति व्यवस्था की निरंतरता को बढ़ावा नहीं देती है और किसी भी सूरत में हमारा संविधान ऐसी चीजों की अनुमति नहीं देता है. इसलिए हमें इस बात पर सहमत होना चाहिए कि भाजपा न ही खुद को ‘दक्षिणपंथी’ मानती है, न ही इसकी नीतियां व्यापक रूप से ‘दक्षिणपंथ’ को परिभाषित करती हैं.
सच तो यह है कि भाजपा के पास अपनी विचारधारा की स्पष्ट परिभाषा है, और उसका नाम हिंदुत्व है. हमें हिंदुत्व को परिभाषित करने के लिए न ही दक्षिणपंथ का उपयोग करना चाहिए, न ही इसे लेकर दुविधा में रहना चाहिए. ऐसा करना इस मुद्दे को अस्पष्ट कर देता है, क्योंकि वह भाजपा के पक्ष में चला जाता है, जो उसके पास नहीं है और न ही वह ऐसा चाहती है. भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा का मकसद भारत के एक विशेष समुदाय का विरोध करना है.
यह मेरे द्वारा लगाया गया आरोप नहीं है, बल्कि भाजपा ने स्वयं ही अपने को इस खांचे में फिट किया है. अगर हम अपनी शब्दावली को स्पष्ट रखते हैं, तो इसके बारे में बात करते हुए, चाहे हम इसका समर्थन करें या नहीं, हमें फायदा होगा.

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