मोदी-जिनपिंग जुगलबंदी

दुनिया के तेजी से बदलते कूटनीतिक हालात में डेढ़ महीने के भीतर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो सीधी मुलाकातें बहुत अहमियत रखती हैं. चीनी शहर किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के मौके पर दोनों नेताओं ने वुहान की पिछली बैठक में पैदा हुई उम्मीदों को मजबूती […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 11, 2018 7:00 AM
दुनिया के तेजी से बदलते कूटनीतिक हालात में डेढ़ महीने के भीतर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो सीधी मुलाकातें बहुत अहमियत रखती हैं. चीनी शहर किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के मौके पर दोनों नेताओं ने वुहान की पिछली बैठक में पैदा हुई उम्मीदों को मजबूती दी है.
ब्रह्मपुत्र के बहाव के आंकड़े भारत से साझा करने का चीन का फैसला इंगित करता है कि दोनों देश डोकलाम सीमा-विवाद की कटुता को पीछे छोड़ चुके हैं. भारत से बासमती के साथ अन्य किस्मों के चावल के आयात करने की मंजूरी व्यापार घाटे को कम करने में मददगार हो सकती है.
बीते साल 84.44 बिलियन डॉलर तक पहुंचे द्विपक्षीय व्यापार को 2020 तक 100 बिलियन डॉलर करने के राष्ट्रपति जिनपिंग के आग्रह का एक मतलब यह भी है कि वाणिज्यिक संबंधों की संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने का सकारात्मक माहौल बन रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि दोनों नेता तनाव के प्रश्नों को हाशिये पर रखना चाहते हैं. सीमा-विवाद और सैन्य गतिरोधों के मुद्दे पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच निरंतर संवाद पर भी जोर दिया गया है.
वैश्विक राजनीति, विशेषकर एशियाई संदर्भ में भी इस बैठक के महत्व को रेखांकित किया जाना चाहिए. जिस समय ये दोनों नेता बात कर रहे थे और जब शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य-देशों के नेता भी चीन में हैं, ठीक उसी समय बड़े औद्योगिक देशों के समूह जी-सात की बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप साझा बयान पर सहमत नहीं हुए.
वे जल्दी ही उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन के साथ सिंगापुर में परमाणु हथियारों के मसले पर बेहद खास बैठक करनेवाले हैं. जी-सात की बैठक में व्यापारिक और राजनीतिक मामलों के अलावा रूस को लेकर भी विरोधाभासी विचार सामने आये हैं.
हाल के दिनों में चीन के विरोधी दक्षिण कोरिया से उत्तर कोरिया की नजदीकी भी बढ़ी है. हालांकि उत्तर कोरिया पर चीन का प्रभाव है, पर वह कोरियाई देशों के अमेरिका से संबंधों के दूरगामी परिणामों को लेकर सचेत है. दक्षिण चीनी समुद्र में उसके सैन्य हस्तक्षेप से जापान समेत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश चिंतित हैं.
चीन इस बात से भी अवगत है कि अमेरिका चाहता है किभारत अफगानिस्तान में अधिक सक्रियता दिखाये. ईरान और रूस से भारत की निकटता से भी वह सचेत है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान पर दबाव बनाने तथा एशिया में अपने हितों के प्रसार में भारत को चीनी सहयोग की दरकार है. देश के भीतर इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और वाणिज्यिक विस्तार के लिए भी चीन का साथ जरूरी है.
दोनों देशों के नेता इन तमाम राजनीतिक वास्तविकताओं के मद्देनजर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय हितों को सामने रखते हुए परस्पर सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं. इस क्रम में कूटनीतिक प्रयास जितने अहम हैं, उतना ही महत्वपूर्ण कारक राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत छाप है.

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