मैनिफेस्टो अमल में लाना मुश्किल
संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश होने के साथ ही राष्ट्रपति ने अभिभाषण दिया. दोनों को सुनने से लगा ही नहीं कि देश किसी भी तरह की कमियों एवं परेशानियों से घिरा हुआ है. वर्तमान अच्छा चल रहा है. आने वाला समय और अच्छा होगा. चालू खाता और राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है. अप्रत्यक्ष कर का […]
संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश होने के साथ ही राष्ट्रपति ने अभिभाषण दिया. दोनों को सुनने से लगा ही नहीं कि देश किसी भी तरह की कमियों एवं परेशानियों से घिरा हुआ है. वर्तमान अच्छा चल रहा है. आने वाला समय और अच्छा होगा. चालू खाता और राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है.
अप्रत्यक्ष कर का संकलन दोगुना हो गया है. जीएसटी निबंधकों की संख्या 98 लाख पार कर गयी है. इनसे कर की प्राप्ति भी बढ़ गयी है. विदेशी पूंजी निवेश एवं मुद्रा भंडार अपने रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया है. इतना सब कुछ होते हुए भी युवाओं को नौकरी क्यों नहीं मिल रही है? लघु-उद्योग मंदी का शिकार क्यों है? निजी क्षेत्र के लोग देश में पूंजी निवेश क्यों नहीं कर रहे हैं? बैंक नया ऋण देने में सक्षम क्यों नहीं है?
सबसे बड़ी बात यह है कि आगामी वित्तीय वर्ष में जीडीपी सात से 7. 5% रहने का अनुमान जताया गया है, जो 2012 जैसा ही है. फिर विमुद्रीकरण एवं जीएसटी का फायदा क्या हुआ? इसलिए मैनिफेस्टो में किये गये वादे को अमल में लाना बहुत मुश्किल है. सरकार जो सब्जबाग दिखाने का प्रयास कर रही है, वहां पहुंचना अभी सपना ही है.
जंग बहादुर सिंह, इमेल से