विरोधाभास के मायने क्या

कुछ समझ में नहीं आ रहा है. उपराष्ट्रपति जी कहते है धर्मनिरपेक्षता हमारे डीएनए में है. उधर कर्नाटक से भाजपा सरकार के मंत्री अनंत कुमार कह रहे है, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘बुद्धिजीवी’ की खुद की कोई पहचान नहीं होती. भाजपा सरकार संविधान को बदलने के लिए सत्ता में आयी है.क्या समझा जाए? वेंकैया नायडू जी सही […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 27, 2017 6:54 AM
कुछ समझ में नहीं आ रहा है. उपराष्ट्रपति जी कहते है धर्मनिरपेक्षता हमारे डीएनए में है. उधर कर्नाटक से भाजपा सरकार के मंत्री अनंत कुमार कह रहे है, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘बुद्धिजीवी’ की खुद की कोई पहचान नहीं होती. भाजपा सरकार संविधान को बदलने के लिए सत्ता में आयी है.क्या समझा जाए? वेंकैया नायडू जी सही बोल रहे हैं या अनंत कुमार जी? दोनों के बयान विरोधाभासी हैं.
एक हमारी पुरातन संस्कृति एवं गंगा-जमुना तहजीब को मान्यता देता है, तो दूसरा धर्मनिरपेक्षता का ढोंग कहता है. ऐसे में सर्व धर्म समभाव एवं हिंदू-मुस्लिम-सिख- ईसाई, हम सभी हैं भाई-भाई वाले कथन का क्या होगा? सामाजिक-तानाबाना का क्या होगा? अन्य धर्म मानने वालों का क्या होगा? कुछ समझ नहीं आ रहा है, हम कहां से चले थे और किधर जा रहे हैं?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी.

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