उम्मीद भरे भविष्य का सफर

प्रभात कुमार पूर्व राज्यपाल, झारखंड एक पूर्ण राज्य के रूप में झारखंड के सृजन की एक और वर्षगांठ आ पहुंची. आगामी वर्षों में भी इसकी वर्षगांठें आती ही रहेंगी और उनमें से प्रत्येक पर हम भी इसी तरह इस राज्य की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थितियों की परीक्षा करते रहेंगे. निस्संदेह, झारखंड से संबद्ध मुद्दों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 15, 2017 7:26 AM
प्रभात कुमार
पूर्व राज्यपाल, झारखंड
एक पूर्ण राज्य के रूप में झारखंड के सृजन की एक और वर्षगांठ आ पहुंची. आगामी वर्षों में भी इसकी वर्षगांठें आती ही रहेंगी और उनमें से प्रत्येक पर हम भी इसी तरह इस राज्य की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थितियों की परीक्षा करते रहेंगे. निस्संदेह, झारखंड से संबद्ध मुद्दों की जटिलताएं किसी को भी असहजता की स्थिति में डालनेवाली हैं. फिर भी, इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में हुई विकास यात्रा के सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलुओं से परिचित होकर इस राज्य के शुभेच्छु उनके समाधान हासिल करने के प्रयास किया करते हैं, मगर इस प्रक्रिया का प्रारंभ तो हमेशा प्रश्नों से ही हो सकता है.
झारखंड के 17वें शरद के सुअवसर पर चार सवाल मेरे मानस में उभर रहे हैं- क्या राज्य की वर्तमान सरकार में इतनी राजनीतिक परिपक्वता है कि वह जन आवश्यकताओं की पूर्ति के सम्यक प्रयास कर सके? क्या झारखंड का एक आम इंसान अपने हालात के प्रति आज से दस साल पहले की तुलना में अधिक सहज है?
क्या पिछले अरसे में सामाजिक समरसता में वृद्धि आ सकी है? और क्या आज वहां के गांव बुनियादी संरचना के दृष्टिकोण से अधिक विकसित हैं? ऐसा नहीं कि और प्रश्न नहीं हैं, पर मेरी समझ से इन चार प्रश्नों के उत्तर से ही एक स्वतःपूर्ण राजनीतिक इकाई के रूप में इस प्रदेश की विकास यात्रा की स्पष्ट तस्वीर सामने आ सकेगी.
जब मैं झारखंड के राज्यपाल के रूप में इस राज्य में पहुंचा, तो मैंने यह फैसला किया था कि इसके विभिन्न क्षेत्रों के भ्रमण कर यहां की भौगोलिक स्थिति तथा निवासियों का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त करूंगा. वैसा ही कर मैंने कहीं अपना यह विचार व्यक्त भी किया था कि झारखंड के ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों से खुला सामना मेरे लिए सत्य से साक्षात्कार सरीखा रहा.
मैं यह स्पष्टतः देख सका कि राज्य के पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी जन कैसे रहते और अपने क्षेत्र में प्रशासन तथा सक्रिय अतिवादियों से कैसे अपना तालमेल बिठाते हैं. मैं यह भी समझ सका कि वे सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त गरीबी रेखा से नीचे रहते हुए भी अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से जीते हैं. किसी सार्वजनिक सभा में उपस्थित उन आम लोगों पर डाली गयी कोई सामान्य-सी दृष्टि उनकी गरीबी की हदें बयान नहीं कर सकती थी.
पर, जब मैं उनके घरों में गया, तब कहीं जाकर मेरी जानकारी के हित उनकी निपट अभिवंचना के विभिन्न आयाम अनावृत्त हो सके. मैंने इसे अपने हित एक नियम जैसा बना लिया कि मैं अपने भ्रमण के वक्त का अधिकतर हिस्सा महिलाओं से बातचीत करने तथा उनकी आशाओं-आकांक्षाओं से रूबरू होता व्यतीत करूं. मैं उनसे यह बातचीत अपनी टूटी-फूटी ‘नागपुरी’ में किया करता और उनके साथ ही ‘छिलका’ का रसास्वादन करता.
तब से कई दफा झारखंड जाकर मैं वहां के जानकार जनों के साथ ही सामान्य लोगों से मिलता रहा हूं. इस आधार पर मेरी यह धारणा बनी है कि अब चीजें न केवल अपने भौतिक स्वरूप में, बल्कि एहसासों के दायरे में भी पहले से बहुत बेहतर हुई हैं. आज यहां के लोग अपनी समस्याओं का सामना करने में ज्यादा आत्मविश्वास का अनुभव करते हैं. इसका यह अर्थ नहीं कि चुनौतियों में कोई कमी आयी है. सच यह है कि जनता के विभिन्न वर्गों के बीच मतांतरों में वृद्धि की ही प्रवृत्ति दृष्टिगोचर हुई है. व्यवस्था से उनकी अपेक्षाओं तथा मांगों में भी बढ़ोतरी आयी है.
मगर दूसरी ओर, राज्य सरकार भी अपनी विश्वसनीयता और नागरिकों तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पहुंचा पाने की अपनी क्षमता साबित करने को चिंतित दिखती है. राज्य के विभिन्न हिस्सों में आबादी के भिन्न-भिन्न स्तरों द्वारा वास्तविक रूप से महसूस की जा रही जरूरतों की अपनी समझ विकसित कर ही सरकार अपनी परिपक्वता सिद्ध कर सकेगी. इसमें शक नहीं कि वर्तमान सरकार को आज पहले से कहीं अधिक कुशलता और सामर्थ्य हासिल है. पर, इसे अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए वक्त दिये जाने की जरूरत है. वह जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर पायेगी या नहीं, मेरे विचार से यह इस राज्य की 20वीं वर्षगांठ तक ही साफ हो सकेगा.
मैं उस मुबारक मौके का इंतजार करना चाहूंगा.
अंत में, इस राज्य के कर्णधारों को मेरी यह विनम्र सलाह होगी कि वे राज्य के विकास की प्राथमिकताएं तय करने की दिशा में और अधिक समय लगाएं. प्राथमिकताओं के एक गलत संकुल के परिणाम मूल्यवान संसाधनों तथा समय, जो वस्तुतः पहले से भी कहीं ज्यादा कीमती है, की वैसी बर्बादी के रूप में सामने आयेंगे, जिनसे निश्चित ही बचा जा सकता था. इस संदर्भ में, झारखंड की जनता की नब्ज पहचाननेवाले एक वस्तुनिष्ठ प्रेक्षक के रूप में कहूं, तो ये प्राथमिकताएं निम्न प्रकार से होनी चाहिए…
निश्चित ही, पहली जरूरत तो झारखंड की जनता के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की है. ये अवसर स्वरोजगार एवं दिहाड़ी रोजगार, दोनों ही रूपों में हो सकते हैं. इसके बाद पेयजल व स्वच्छता की सुविधाओं में बढ़ोतरी का स्थान आता है, जिसका यहां पहले से ही बहुत अभाव महसूस किया जाता रहा है. इन सुविधाओं से लोगों के स्वास्थ्य स्तर में स्पष्ट सुधार दिखेगा.
दूसरी ओर, सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि की भी बहुत जरूरत है, ताकि ऊंचाई-निचाई से भरे इस भूभाग में किसानों के पास जो भी स्वल्प कृषि भूमि उपलब्ध है, उसकी उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके. भू-उत्पादकता में वृद्धि के फलस्वरूप ग्रामीणों की पारिवारिक आय में बढ़ोतरी के अलावा काम की कमी की समस्या का भी एक हद तक समाधान किया जा सकेगा. किसानों की छोटी-छोटी जोतों के इस राज्य में बागवानी की भी अपार संभावनाएं हैं. सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही इन संभावनाओं को अपने उत्कर्ष तक पहुंचाने की आवश्यकता है.
ऊर्जा उत्पादन भी प्राथमिकताओं की इस कड़ी में शामिल है, जिसके बिना सर्वांगीण विकास संभव नहीं हो सकता. खनिजों संपदा से भरे इस भूभाग में भरपूर ऊर्जा उत्पादन संभावनाओं के नये-नये क्षितिज उद्घाटित करेगा, जिनसे कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ ही उद्योग-धंधों का संजाल-सा बिछ सकेगा. व्यापक सड़क निर्माण के द्वारा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों को संपर्क के दायरे में लाना उपर्युक्त समस्त सुधारों के लिए संपूरक सिद्ध होगा.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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