पाकिस्तान की मुश्किल!

डी भट्टाचार्जी रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स पिछले महीने अगस्त की 21 तारीख को ट्रंप की दक्षिण एशिया और अफगान नीति की घोषणा के बाद पाकिस्तान में एक प्रकार का संकट नजर आया, कि उसका रिश्ता अमेरिका के साथ बिगड़ रहा है. अब पाकिस्तान के सामने यही रास्ता है कि वह बाकी दोस्तों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 20, 2017 6:44 AM
डी भट्टाचार्जी
रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स
पिछले महीने अगस्त की 21 तारीख को ट्रंप की दक्षिण एशिया और अफगान नीति की घोषणा के बाद पाकिस्तान में एक प्रकार का संकट नजर आया, कि उसका रिश्ता अमेरिका के साथ बिगड़ रहा है. अब पाकिस्तान के सामने यही रास्ता है कि वह बाकी दोस्तों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाये रखे. दरअसल, पाकिस्तान कहना चाहता है कि उसकी सिर्फ छवि ही खराब है, जबकि वह कोई खराब देश नहीं है.
यह तो ट्रंप की नीतियां गलत हैं, जिसके कारण पाकिस्तान की अब ज्यादा बदनामी हो रही है. भारत सरकार बरसों से यह कहता आ रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद को मदद देता है और उसकी जमीन को आतंकवादी इस्तेमाल करते है. जो इतने साल बाद ट्रम्प की दक्षिण एशिया नीति में उभरकर आया है. इसी कारण कहा जा सकता है कि ट्रंप की दक्षिण एशिया नीति के बाद भारत ने पाकिस्तान पर कोई टिप्पणी नहीं की. क्योंकि भारत भी जानता है कि पाकिस्तान अपने रिश्तों को दुरुस्त रखना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान की आतंकवादियों की मदद करने की नीतियों के कारण उसे नुकसान उठाना पड़ता है.
पाकिस्तान की घरेलू राजनीति से आम पाकिस्तानी जनता की नजर हटाने के लिए हाल ही में ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (ओआइसी) के द्वारा संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया. भारत की संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि ने इस कदम को दुखद बताया है और ओआइसी के दिए बयान को गलत और भ्रमित बताया है.
दरअसल, जब उत्तरी कोरिया द्वारा परमाणु परीक्षण करने का जो मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठा, तो पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान अचानक यह बयान देते हैं कि उत्तरी कोरिया के परमाणु हथियार पाकिस्तान के हथियारों से काफी आधुनिक हैं. यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान ने लीबिया और उत्तरी कोरिया की परमाणु कार्यक्रम में अवैध रूप से सहायता किया, जिसकी पुष्टि अब्दुल कादिर खान ने पहले किया था. अभी ऐसे बयान आने का कोई अर्थ नहीं है, जब उत्तरी कोरिया पर अमेरिका की निगाहें टेढ़ी बनी हुई हैं.
अब्दुल कादिर खान का बयान इसलिए भी उचित समय पर आनेवाला बयान नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि एक समय में अब्दुल कादिर ने यह खुद ही स्वीकार किया था कि परमाणु हथियारों की टेक्नोलॉजी को उन्होंने बेचा था. शायद इसीलिए भारत ने उत्तर कोरिया की हालिया गतिविधियों की निंदा करते हुए इशारों में ही पाकिस्तान का नाम लिये बगैर कहा है कि इस परमाणु प्रसार संबंधी गतिविधियों की जांच होनी चाहिए.
यहां भी ध्यान रहे, भारत ने अब भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है. पाकिस्तान ने इस तकनीकी का हस्तांतरण 90 के दशक के दौरान किया था. और वर्तमान में उत्तर कोरिया की परमाणु तकनीक पाकिस्तान से जुड़ा हुआ नहीं है..
पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो कि खुद पर पड़नेवाले प्रभावों को ही देखता है, उत्तरी कोरिया से उसका वास्ता नहीं है. वह हर काम अपना फायदा देखते हुए करता है. दरअसल, पाकिस्तान कोई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी की भूमिका में नहीं होता है, बल्कि वह हमेशा क्षेत्रीय खिलाड़ी की भूमिका में होता है.
वह जानता है कि वह अगर कश्मीर मुद्दा उठाता है, तो पाकिस्तान के आम लोग उसकी सरकार की बहुत तारीफ करेंगे और इस तारीफ में बाकी सारे जरूरी मुद्दे कहीं खो जायेंगे. पाकिस्तान और उसकी सरकार ऐसे ही चलते रहते हैं, तो फिर उसे उत्तरी कोरिया की गतिविधियों के साथ जाने की जरूरत ही नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ट्रंप क्यों पाकिस्तान को एक टेरर स्टेट घोषित करने की बात कर रहे हैं? जबकि अगर अमेरिका ऐसा करता है, तो उसे भी यह पता है कि उस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को अंजाम देने में मुश्किलें होंगी.
आपको याद होगा, हॉर्ट ऑफ एशिया में भी पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी ही बातें आयी थीं कि उसके यहां चल रही आतंकी गतिविधियों को रोकने की जरूरत है. और अब हालिया ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीन के रहते हुए भी पाकिस्तान के कुछ कट्टर समूहों को आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल दिया गया था.
हालांकि, चीन अरसे से हर हाल में पाकिस्तान का साथ देता रहा है, लेकिन ब्रिक्स सम्मेलन में जो कुछ हुआ, उससे यह साफ जाहिर है कि एक जगह आकर चीन के हाथ भी बंध जाते हैं. वहीं दूसरी बात यह है कि पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में कई नेताओं ने पहले साफ शब्दों में कहा था कि हम लोग कुछ देशों के लिए अपने जिन आतंकी संगठनों का समर्थन करते हैं, अब हमें ऐसा नहीं करना चाहिए. पाकिस्तान की यही मुश्किल है.
इन सब गतिविधियों के बावजूद भी यह कहा जा सकता है कि ट्रंप के लिए पाकिस्तान को टेरर स्टेट घोषित करना मुश्किल होगा, क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण देश है अमेरिका के लिए. अगर ट्रंप पाकिस्तान को टेरर स्टेट करार देते हैं, तो यह उनके लिए मुश्किल हो जायेगा कि वह अफगानिस्तान को संभाल सकें.
हां, अमेरिका इतना जरूर इतना कर सकता है कि पाकिस्तान के कुछ आतंकी संगठनों पर सख्त कदम उठाना और सारे अंतरराष्ट्रीय मंचों द्वारा पाकिस्तान सरकार पर दबाव डाल कर उसकी आतंकवादी नीति को परिवर्तित कर सकता है.

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