एक और रेल हादसा
उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट हुई उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना के कारणों से जुड़ी प्रारंभिक सूचनाएं रेल प्रबंधन की बदइंतजामी और लापरवाही की ओर संकेत कर रही हैं. रिपोर्टों के अनुसार, पटरी पर मरम्मत का काम चल रहा था और इसकी सूचना ट्रेन के चालक और नजदीकी रेलवे स्टेशन को नहीं थी. इस हादसे […]
उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट हुई उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना के कारणों से जुड़ी प्रारंभिक सूचनाएं रेल प्रबंधन की बदइंतजामी और लापरवाही की ओर संकेत कर रही हैं. रिपोर्टों के अनुसार, पटरी पर मरम्मत का काम चल रहा था और इसकी सूचना ट्रेन के चालक और नजदीकी रेलवे स्टेशन को नहीं थी.
इस हादसे में 23 लोगों की मौत हुई है और सौ से अधिक घायल हुए हैं. लंबे समय से लगातार रेलवे को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के दावे और वादे किये जा रहे हैं, पर पटरी की मरम्मत की खबर चालक को देने में व्यवस्था अक्षम रही. यह भी अजीब बात है कि रेल विभाग की शब्दावली में इस तरह के रख-रखाव के काम को ‘अनऑफिसियल मेंटेनेंस’ कहा जाता है. ट्रैफिक के दबाव में कर्मचारियों को काम करना होता है.
ऐसी स्थिति में गाड़ियों की गति धीमी करने या पहले से सूचित करने जैसी जरूरी बातों की अनदेखी कर दी जाती है. आम तौर पर जिन पटरियों पर मरम्मत का काम चल रहा होता है, वहां गाड़ियां 10-15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं, ताकि कोई दुर्घटना न हो जाये. हादसे के समय उत्कल एक्सप्रेस की गति सौ किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक थी और करीब 15 मीटर लंबी पटरी अस्त-व्यस्त थी. अब देखना यह है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु के आदेश पर हो रही जांच में विस्तार से जानकारी मिलेगी या इस जांच का नतीजा भी पिछली बेशुमार जांचों की तरह लीपा-पोती का शिकार बन जायेगा.
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेल प्रबंधन पिछली दुर्घटनाओं से सबक लेने में नाकाम रहा है. निश्चित रूप से उन अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित किया जाना चाहिए, जिनकी लापरवाही के चलते यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, लेकिन शीर्ष स्तर पर भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए. रेलवे का पंचवर्षीय आधुनिकीकरण कार्यक्रम चल रहा है, जिसका बजट 130 अरब डॉलर है. दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर इस साल फरवरी में 15 अरब डॉलर पटरियों की बेहतरी के लिए निर्धारित किये गये थे. रेल किराये में भी बढ़ोतरी होती रहती है.
इसके बावजूद रेलगाड़ियों के संचालन में सुधार दिख नहीं रहा है. सुरक्षा और सुविधाओं के प्रति रेल विभाग का रवैया अत्यंत निराशाजनक है. साल भर में ही चार बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. लापरवाही के साथ रेल तंत्र व्यापक भ्रष्टाचार और लेटलतीफी का भी शिकार है. उम्मीद है कि अब रेल मंत्री समेत रेल प्रबंधन का शीर्ष नेतृत्व अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा कर यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में समुचित पहल करेगा.