Yashwant Varma Cash Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास से अधजला कैश बरामद होने के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने उन्हें दोषी ठहराया है. जिसके बाद केंद्र सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है.
क्या है महाभियोग की प्रक्रिया
भारत में उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत निर्धारित है। इसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
- प्रस्ताव की शुरुआत: महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है, जिस पर कम से कम 100 लोकसभा सांसदों या 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं.
- जांच समिति का गठन: संसद में प्रस्ताव पेश होने के बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक वरिष्ठ न्यायविद की तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है, जो आरोपों की जांच करती है.
- संसद में मतदान: यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तो प्रस्ताव को दोनों सदनों में बहस और मतदान के लिए रखा जाता है. जज को हटाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होना आवश्यक है.
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: संसद में प्रस्ताव पास होने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो इसे स्वीकृत करते हैं. स्वीकृति मिलने पर जज को पद से हटा दिया जाता है.
क्या महाभियोग के बाद जेल हो सकती है?
महाभियोग की प्रक्रिया केवल पद से हटाने के लिए होती है और यह एक संवैधानिक कार्रवाई है, न कि आपराधिक कार्रवाई. यदि जज के खिलाफ भ्रष्टाचार या अन्य आपराधिक आरोप हैं, तो इसके लिए अलग से आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है. यदि अदालत में आरोप सिद्ध होते हैं, तो दोषी जज को सजा हो सकती है, जिसमें जेल की सजा भी शामिल है.