सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी – संस्थानों को ड्रेस तय करने का अधिकार, हिजाब उससे अलग

Supreme Court On Hijab Row: सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नियम कहते हैं कि शैक्षणिक संस्थानों को ड्रेस निर्धारित करने का अधिकार है. हिजाब अलग है, सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार 19 सितंबर को जारी रहेगी.

By Pritish Sahay | September 15, 2022 7:02 PM

Supreme Court On Hijab Row: शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियम कहते हैं कि शैक्षणिक संस्थानों को ड्रेस तय करने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि हिजाब उससे अलग है. अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार 19 सितंबर को होगी.

पगड़ी और कृपाण से हिजाब की तुलना नहीं: गौरतलब है कि हिजाब मामले को लेकर पिछले कई दिनों से सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. इससे पहले बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले पर सुनवाई के दौरान कहा था कि सिखों के कृपाण और पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं है, क्योंकि सिखों के लिए पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है. यह टिप्पणी शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आयी.

इससे पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में सवाल केवल स्कूलों में प्रतिबंध को लेकर है, जबकि किसी को भी इसे कहीं और पहनने की मनाही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार के दौरान ये बात कही थी. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जाए.

वहीं, हिजाब प्रतिबंध विवाद में याचिकाकर्ताओं के वकील ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने पवित्र कुरान की व्याख्या की कोशिश करके और यह कहकर आपत्तिजनक काम किया कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के पहले के एक फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतें कुरान की व्याख्या करने के लिहाज से ‘संस्थागत रूप से अक्षम’ हैं. एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील वाई एच मुछाल ने दावा किया कि कर्नाटक उच्च न्यायालय की व्यवस्था से मुस्लिम लड़कियों के अनेक अधिकार प्रभावित हुए हैं.

भाषा इनपुट के साथ

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