देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में ”बातचीत” और ”असहमति” जरूरी : राष्ट्रपति

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में विमर्श और मतभेद को जरूरी बतातेे हुए गुरुवार को कहा कि ‘तर्कसंगत भारतीय’ की गुंजाइश हमेशा होनी चाहिए, लेकिन ‘असहिष्णु भारतीय’ की नहीं. प्रथम रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान देते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘‘हमारा संविधान भारत के व्यापक विचार की रूपरेखा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 25, 2017 9:50 PM

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में विमर्श और मतभेद को जरूरी बतातेे हुए गुरुवार को कहा कि ‘तर्कसंगत भारतीय’ की गुंजाइश हमेशा होनी चाहिए, लेकिन ‘असहिष्णु भारतीय’ की नहीं.

प्रथम रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान देते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘‘हमारा संविधान भारत के व्यापक विचार की रूपरेखा के दायरे में हमारे मतभेदों को जगह देने का साक्षी है.” उन्होंने कहा कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय विविधता भारतीय सभ्यता की आधारशिला रही है.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसलिए हमें बहुत अधिक स्वर में बोलनेवाले और असहमति जतानेवालों को नकारनेवालों की प्रभुत्ववादी बातों के संदर्भ में संवेदनशील रहना होगा.” उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए सोशल मीडिया और समाचार चैनलों की खबरों पर सरकार के और सरकार से इतर लोगों का उग्र, आक्रामक रख देखने को मिलता है, जिसमें विशुद्ध रूप से विरोधी विचारों को नकार दिया जाता है.” मुखर्जी ने कहा कि भारतीय सभ्यता ने हमेशा बहुलवाद का उत्सव मनाया है और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं, भारत जैसे किसी गतिमान, स्वस्थ लोकतंत्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया के लिए सार्वजनिक विमर्श में चर्चा और असहमति जरूरी हैं. तर्कसंगत भारतीय के लिए हमेशा गुंजाइश होनी चाहिए, लेकिन असहिष्णु भारतीय के लिए नहीं.” मुखर्जी ने कहा कि यहां की जनता और दुनियाभर में लोग चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रहे हैं.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘युवा भविष्य की ओर देखते हैं, लेकिन पिछले कुछ साल में सार्वजनिक विमर्श में अतीत के विचारणीय प्रश्न रहे हैं. प्रत्येक पीढ़ी को पीछे देखने की और अतीत की शक्तियों और कमजोरियों का पुन: मूल्यांकन करने का अधिकार है.” उन्होंने मीडिया की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर प्रेस ताकतवर लोगों के सामने सवाल नहीं खड़े करती, तो वह अपने कर्तव्य को नहीं निभाती. मुखर्जी ने कहा कि समाचार संस्थानों को खुद से पूछना चाहिए कि वे ऐसे टिकाऊ आर्थिक मॉडल कैसे खोज सकते हैं, जो उन्हें हर तरह के दबाव को धता बताने और ईमानदारी तथा पारदर्शिता से काम करने दें.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हालांकि इस तरह के सवाल-जवाब पक्षपातपूर्ण रवैये से ओतप्रोत नहीं होने चाहिए या एक सीमित सोचवाले नहीं होने चाहिए.” उन्होंने कहा कि सदियों से भारत ने सभ्यताओं और दर्शनों का द्वंद्व देखा है और उन सभी में जीवंत रहते हुए दुनिया के सबसे बड़े गतिमान लोकतंत्र के रूप में आगे बढ़ा है. मुखर्जी ने कहा कि यदि मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी में, एक स्वतंत्र और निडर मीडिया में विश्वास रखता है, तो उसे विचारों की बहुलता को झलकाना होगा, जो हमारे लोकतंत्र को जीवन देता है और हमें भारतीयों के रूप में परिभाषित करता है. राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमेशा याद रखना चाहिए कि बुनियादी काम है खड़े होकर ईमानदारी और निष्पक्षता से सवाल करना.”

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