Chandrayan-2 : शनिवार से रात की आगोश में चला जायेगा चांद, ‘विक्रम” से संपर्क की संभावना लगभग खत्म

बेंगलुरु : शनिवार तड़के से चांद पर रात शुरू हो जायेगी और अंधकार छाने के साथ ही ‘चंद्रयान-2′ के लैंडर ‘विक्रम’ से सपंर्क की सभी संभावनाएं अब लगभग खत्म हो गयी हैं. लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है. सात सितंबर को तड़के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में असफल […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 20, 2019 10:45 PM

बेंगलुरु : शनिवार तड़के से चांद पर रात शुरू हो जायेगी और अंधकार छाने के साथ ही ‘चंद्रयान-2′ के लैंडर ‘विक्रम’ से सपंर्क की सभी संभावनाएं अब लगभग खत्म हो गयी हैं. लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है.

सात सितंबर को तड़के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में असफल रहने पर चांद पर गिरे लैंडर का जीवनकाल शनिवार को खत्म हो जायेगा क्योंकि सात सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक चांद का एक दिन पूरा होने के बाद शनिवार तड़के पृथ्वी के इस प्राकृतिक उपग्रह को रात अपने आगोश में ले लेगी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन सात सितंबर (शनिवार) से ही लैंडर से संपर्क करने के लिए सभी प्रयास करता रहा है, लेकिन अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिल पायी है और शनिवारको चांद पर रात शुरू होने के साथ ही ‘विक्रम’ की कार्य अवधि पूरी हो जायेगी. ऐसा कहा गया था कि ‘विक्रम’ की हार्ड लैंडिंग के कारण जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया. इसरो ने आठ सितंबर को कहा था कि ‘चंद्रयान-2′ के ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल तस्वीर ली है, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद इससे अब तक संपर्क नहीं हो पाया.

‘विक्रम’ के भीतर ही रोवर ‘प्रज्ञान’ बंद है जिसे चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग को अंजाम देना था, लेकिन लैंडर के गिरने और संपर्क टूट जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया. कुल 978 करोड़ रुपये की लागत वाला 3,840 किलोग्राम वजनी ‘चंद्रयान-2′ गत 22 जुलाई को भारत के सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क ।।।-एम 1 के जरिये धरती से चांद के लिए रवाना हुआ था. इसमें उपग्रह की लागत 603 करोड़ रुपये और प्रक्षेपण यान की लागत 375 करोड़ रुपये थी. भारत को भले ही चांद पर लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता नहीं मिल पायी, लेकिन ऑर्बिटर शान से चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है. इसका जीवनकाल एक साल निर्धारित किया गया था, लेकिन बाद में इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें इतना अतिरिक्त ईंधन है कि यह लगभग सात साल तक काम कर सकता है. यदि ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता.

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