पत्रकार जे डे हत्याकांड: पढ़ें, छोटा राजन का दाऊद से दोस्ती और दुश्मनी का सफर

मुंबई : पत्रकार ज्योतिर्मय डे यानी जे डे हत्याकांड मामले में करीब सात साल बाद सीबीआइ की विशेष अदालत ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. मामले में कोर्ट ने अंडरवर्ल्‍ड डॉन छोटा राजन को दोषी करार दिया है और पत्रकार जिग्‍ना वोरा और जोसेफ पाल्‍सन को बरी कर दिया है. यदि मुंबई के रहने वाले […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 2, 2018 1:08 PM

मुंबई : पत्रकार ज्योतिर्मय डे यानी जे डे हत्याकांड मामले में करीब सात साल बाद सीबीआइ की विशेष अदालत ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. मामले में कोर्ट ने अंडरवर्ल्‍ड डॉन छोटा राजन को दोषी करार दिया है और पत्रकार जिग्‍ना वोरा और जोसेफ पाल्‍सन को बरी कर दिया है. यदि मुंबई के रहने वाले अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की बात करें तो उसका असली नाम राजेंद्र सदाशिव निखलजे है. बचपन में ही वह दादागिरी करने लगा था.

राजन नायर उर्फ बड़ा राजन के लिए राजेंद्र टिकटें ब्लैक करता था. राजेंद्र की दिलेरी से बड़ा राजन इतना प्रभावित था कि उसे अपने साथ रख लिया. सोने की तस्करी से भी जोड़ लिया. इसके बाद से ही राजेंद्र को ‘छोटा राजन’ कहा जाने लगा. अस्सी के दशक तक छोटा राजन सुपारी लेकर मर्डर करने में माहिर हो चुका था. बड़ा राजन ने दाऊद से मिल कर पठानों के खिलाफ जिहाद छेड़ा. इसी दौरान उसका खत्मा हो गया. ऐसे में छोटे राजन को एक ताकतवर सहारे की जरूरत पड़ी. तब दाऊद ने उसे अपना कंधा दिया. यही नहीं, दाऊद ने बहुत पहले ही छोटा राजन की प्रेमिका सुजाता को अपनी मुंहबोली बहन बना लिया था. इसलिए दोनों के बीच भावात्मक रिश्ते भी बन गये.

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वर्ष 1988 में दाऊद को पुलिस के दबाव में मुंबई से दुबई भागना पड़ा. मुंबई की सारी कमान उसने छोटा राजन को सौंप दी. इस दौरान अरुण गावली और उसका गिरोह भी मुंबई में पैर पसार रहा था. गवली, दाऊद और छोटा राजन की जान का दुश्मन बन गया. जब दाऊद को यह डर सताने लगा कि कहीं उसके गुर्गे उससे ज्यादा ताकतवर न हो जायें, तो दाऊद ने उन्हें आपस में लड़वा दिया. यह दौर था 1992 का. उसने मुंबई में शिव सेना पार्षद खीम बहादुर थापा की हत्या करवा दी, जो छोटा राजन का करीबी था. इसी तरह दाऊद के कहने पर शूटरों ने राजन के करीबी तैय्यब भाई को भी मरवा दिया. इसके साथ ही दाऊद और छोटा राजन के रिश्तों में भी दरार आने लगी. परेशान छोटा राजन दाऊद से मिलने दुबई पहुंच गया.

दाऊद ने उसे बताया कि तैय्यब की लापरवाही के कारण सोने से लदे दो जहाज पकड़े गये. दाऊद ने राजन को ऑफर दिया कि वह दुबई में ही रहे और उसके साथ दुबई और मुंबई का कारोबार संभाले. लेकिन, राजन ने इससे इनकार कर दिया. वह मुंबई लौट आया. भारत में जब बाबरी मसजिद को ढाह दिया गया, तो दाऊद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के करीब आ गया. उसने मुंबई में बम धमाकों की तैयारी शुरू कर दी. इसके लिए उसे अपने समुदाय का एक कमांडर चाहिए था. धीरे-धीरे दाऊद ने राजन को किनारे कर अबु सलेम और मेमन बंधुओं को आगे किया. राजन को समझते देर न लगी कि कोई बड़ी साजिश चल रही है. अपने साथियों की हत्याओं से बौखलाये राजन ने मौका मिलते ही दाऊद के पांच गुर्गों की हत्या करवा दी.

इधर, वर्ष 1993 में दाऊद ने आइएसआइ के इशारों पर अबु सलेम, मेमन बंधुओं की मदद से मुंबई में कई धमाके करवाये, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गयी. राजन इससे बौखला गया. इस बीच, पूरा अंडरवर्ल्ड सांप्रदायिक आधार पर बंट गया. छोटा राजन ने दाऊद के साथ उसके साथियों को भी बरबाद करने की कसम खा ली. माना जाता है कि छोटा राजन ने भारत की खुफिया एजेंसी रॉ और आइबी को दाऊद के बारे में जरूरी जानकारियां देकर उनकी मदद भी की. दो साल के अंदर राजन ने दाऊद के 17 लोगों को मरवा दिया. इन सभी के मुंबई ब्लास्ट में शामिल होने की खबर थी. इसके बाद दाऊद ने छोटा राजन का काम तमाम करने की ठानी. लंबे समय तक राजन और दाऊद गिरोह के बीच मुंबई में तस्करी, जमीन और वेश्यावृत्ति के धंधे में ताकत दिखाने की जंग चलती रही.

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