प्रेग्नेंसी में हृदय रोग कर सकता है परेशान

मंजू आज काफी खुश थी. वह सिर्फ 23 साल की थी तथा उसे गर्भवती हुए दो महीने हुए थे. इन दो महीनों में उसने महसूस किया कि परिवारवालों का व्यवहार काफी सकारात्मक हो गया था. वह मंजू का काफी ध्यान रख रहे थे. पर उसने एक नयी परेशानी महसूस की कि वह जब मंदिर कि […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 30, 2016 8:00 AM
मंजू आज काफी खुश थी. वह सिर्फ 23 साल की थी तथा उसे गर्भवती हुए दो महीने हुए थे. इन दो महीनों में उसने महसूस किया कि परिवारवालों का व्यवहार काफी सकारात्मक हो गया था. वह मंजू का काफी ध्यान रख रहे थे. पर उसने एक नयी परेशानी महसूस की कि वह जब मंदिर कि सीढ़ियां चढ़ रही थीं, तो उसे अपनी धड़कन काफी तेज महसूस हो रही थी. उसे सांस लेने में कठिनाई हो रही थी. पिछली रात जब सोने गयी, तो तीन चार घंटे सोने के बाद उसकी नींद टूट गयी उसे लग रहा था, जैसे कोई गला दबा रहा हो. वह जोर-जोर से सांस ले रही थी एवं खांसी भी हो रही थी. वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गयी एवं रूम में चक्कर लगा रही थी. 10-15 मिनट में बेहतर महसूस करने लगी. पति ने जब यह हालत देखी, तो उसे डॉक्टर केपास ले गये.
माइटरल स्टेनोसिस
कुछ जांच करने के बाद हृदय रोग विशेषज्ञ ने बताया कि उसकी बायीं तरफ का माइटरल वाल्व काफी सिकुड़ गया है. इसे माइटरल स्टोनेसिस भी कहते हैं. इस समय यदि सिकुड़े हुए वाल्व की दवाइयां अगर दी जायें, तो इससे गर्भस्थ शिशु पर भी असर पड़ सकता है और अगर न दी जाये, तो बच्चे की मां को जान का खतरा रहता है. इस बीमारी का उपाय बैलूनिंग है, जिससे गर्भ धारण करने के 12 से 28 हफ्ते के बीच में किया जा सकता है. बैलूनिंग एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसे करते समय कुछ प्रतिशत मामलों में माता एवं बच्चे दोनों पर बुरा असर पड़ सकता है. अगर न किया जाये, तो जैसे-जैसे प्रेग्नेंसी बढ़ेगी, मां को हार्ट फेल्योर या दूसरी जानलेवा बीमारी का सामना करना पड़ सकता है. यह सब बातें सुनते ही मंजू एवं उसके पति के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी. पहले तो उन्हें इन बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने डॉक्टर से इस बारे में जानने का प्रयास किया कि उन्हें किसी प्रकार का कोई लक्षण नहीं पता चल रहा था. पति ने कहा, यह रिस्क लेना बहुत मुश्किल है, कृपया मदद कीजिए.
निदान : सामान्यत: दवाइयों से स्थिति को सुधारा जा सकता हैं. कुछ परिस्थितियों में अधिक परेशानी हो सकती है. ऐसे में सर्जरी या बाइलोनीग की जरूरत पड़ सकती है. इस महिला के लिए भी यही तरीका अपनाया गया. सर्जरी सफल रही. अब महिला स्वस्थ है. बच्चे का भी जन्म हो चुका है.
जन्मजात हृदय रोग जैसे हृदय के दो भाग के बीच में छेद होना, वाल्व में सिकुड़न होना एवं अशुद्ध रक्त का मिलना, हृदय का कुछ भाग विकसित नहीं होना आदि समस्याएं आम हैं. रूमेटिक हार्ट डिजीज की वजह से हृदय के वाल्व में सिकुड़न या फैलाव हो सकता हैं. यह रोग सबसे ज्यादा गर्भावस्था में प्रभावित करता है. ये रोग बिना किसी लक्षण के भी मौजूद रह सकते हैं, जो गर्भावस्था के दौरान अपना बुरा असर दिखाने लगते हैं. कुछ टेस्ट की मदद से इन रोगों को पहचाना जा सकता है. ECG, ECHO एवं X-RAY आदि जांचों से इन रोगों की पहचान हो सकती है. इसलिए गर्भावस्था के दोैरान जरा भी शक हो, इसमें जांच करवानी चाहिए. प्रेग्नेंसी से पहले भी जांच जरूरी है.
इस तरह से रखें हृदय रोग को दूर
हार्ट डिजीज के रिस्क फैक्टर बचपन में ही पनपने लगते हैं और किशोरावस्था तक कई बच्चे कार्डियो वैस्कुलर डिजीज का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसका सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर मोटापा है, जो मुख्य रूप से जंक फूड खाने के कारण होता है. मोेटापे की वजह से हाइ बीपी, हाइ कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम आदि रिस्क फैक्टर उत्पन्न हो जा रहे हैं.
आजकल अभिभावक बच्चों को टिफिन में भी चाउमिन, बर्गर आदि देने लगे हैं. इसके कारण बच्चों की फूड हैबिट बदल गयी है. अत: हृदय रोग से बचने के लिए बच्चों को शुरू से ही कुछ अच्छी हैबिट सिखानी चाहिए. बच्चों को खाने में दलिया, चावल, दाल, रोटियां और हरी सब्जियों का सेवन करने की आदत डलवानी चाहिए. नाश्ते व खाने में खीरे-ककड़ी, गाजर, फल, दूध, दही, अंडे इत्यादि ज्यादा खाना चाहिए. हाइ बीपी की भी समस्या बच्चों में काफी बढ़ी है. इससे बचने के लिए बच्चों को शुरू से ही खाने में नमक का इस्तेमाल कम करना सिखाना चाहिए. एक शोध में पता चला है कि नमक का इस्तेमाल 25% तक कम कर देने से हाइ बीपी के होने की आशंका आधे से भी कम हो जाती है.
फिजिकल एक्टिविटी जरूरी
आजकल बच्चों में खेल-कूद और फिजिकल एक्टिविटी काफी कम हो गयी है. यह भी मोटापे का एक बड़ा कारण है. जिस तरह पढ़ना जरूरी है, उसी प्रकार बच्चों को कुछ देर खेलना भी जरूरी है. इससे अनुपयोगी कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम होता है और उपयोगी कोलेस्ट्रॉल के लेवल में वृद्धि होती है. गेम और कंप्यूटर पर देर तक बैठने की आदत से बच्चों को दूर रखना चाहिए. आउटडाेर गेम खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

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