गर्भधारण में बाधा पहुंचाती है गर्भाशय ग्रंथि

गर्भाशय ग्रंथि को आधुनिक चिकित्सा में युटेराइन फाइब्रस ट्यूमर के नाम से जानते हैं. यह ग्रंथि महिलाओं के गर्भाशय में पायी जाती है. इसलिए इसे गर्भाशय ग्रंथि भी कहते हैं. यह ग्रंथि गर्भाशय के अंदर और बाहर दोनों तरफ होती है. आजकल यह रोग काफी बढ़ गया है. कारण : इस रोग के बढ़ने का […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 12, 2016 8:25 AM

गर्भाशय ग्रंथि को आधुनिक चिकित्सा में युटेराइन फाइब्रस ट्यूमर के नाम से जानते हैं. यह ग्रंथि महिलाओं के गर्भाशय में पायी जाती है. इसलिए इसे गर्भाशय ग्रंथि भी कहते हैं. यह ग्रंथि गर्भाशय के अंदर और बाहर दोनों तरफ होती है. आजकल यह रोग काफी बढ़ गया है.

कारण : इस रोग के बढ़ने का प्रमुख कारण जीवनशैली में बदलाव आना है. यह रोग उन महिलाओं को अधिक होती हैं, जो एक्टिव नहीं रहती हैं और काम कम करती हैं, चटपटा भोजन और फास्टफूड का सेवन अधिक करती हैं. इसके अतिरिक्त जिन महिलाओं में दो बार से अधिक गर्भपात हुआ हो, उनमें भी यह रोग देखा जाता है. प्रौढ़ महिलाओं में यह रोग अधिक देखने को मिलता है. गर्भाशय ग्रंथि के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता है. यदि गर्भ ठहरता भी है, तो गर्भपात हो जाता है.

बदलता है गर्भाशय का आकार

फाइब्रस ग्रंथि गर्भाशय के मुख पर तथा कभी-कभी अंदर भी पायी जाती है. गर्भाशय के मुख पर यह ग्रंथि मस्से के जैसी दिखाई पड़ती है. यह ग्रंथि गर्भाशय की दीवार पर उत्पन्न होती है और धीरे-धीरे गर्भाशय के अंदर फैल जाती है. यह ग्रंथि बढ़ती और फैलती रहती है. इस प्रकार ऐसा लगता है कि गर्भाशय बढ़ रहा है. मगर जब यह बाहरी आवरणों पर बढ़ती है, तब गर्भाशय में वृद्धि नहीं होती है. मगर ग्रंथि के दबाव के कारण गर्भाशय छोटा और शुष्क भी हो जाता है. यह ग्रंथि सुपारी के आकार से लेकर नारियल के आकार तक की हो सकती है.

इसके अलावा गर्भाशय में एक और ग्रंथि होती है, जिसे रसौली भी कहते हैं. इस प्रकार की ग्रंथि में तरल द्रव भरा रहता है. इस ग्रंथि के कारण गर्भाशय में भारीपन, पेड़ु में दर्द, अधिक दिनों तक मासिक धर्म का चलते रहता है. इस ट्यूमर के कारण पीड़ादायक मासिक होता है.जब तक यह ग्रंथि छोटी रहती है, तब तक कोई कष्ट नहीं होता है. बड़ी हो जाने के बाद ही परेशानी होती है.

हो सकती है खून की कमी

अल्ट्रासाउंड द्वारा ग्रंथि की पुष्टि होती है. ग्रंथि में फाइब्रस तंतु की कमी होती है. इसमें तरल पदार्थ रहता है. इसे सारकोमा सिस्ट भी कहते हैं. इसमें मासिक अधिक दिनों तक चलता रहता है, खून की कमी हो जाती है. कभी-कभी खून भी चढ़ाना पड़ता है. पेट में पीड़ा तथा मूत्रावरोध के लक्षण भी मिलते हैं. अत: ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए.

(डॉ कमलेश प्रसाद, आयुर्वेद विशेषज्ञ से बातचीत)

चिकित्सा

उपचार से पहले मरीज के अच्छे-से जांच जरूरी है. तुरंत डॉक्टर से मिल कर जांच करानी चाहिए. कई बार देखा जाता है कि महिलाएं खुद से आयुर्वेदिक दवाएं लेने लगती हैं. इससे फायदे की जगह नुकसान होने की आशंका रहती है. आमतौर पर रक्तशोधक औषधियों के प्रयोग से गर्भाशय ग्रंथि का आकार छोटा हो जाता है.

नागकेसर का चूर्ण आधा-आधा चम्मच पीपल वृक्ष की लाख के साथ लेने से लाभ मिलता है. आरोग्यवर्धनी वटी, वरुणादि काढ़ा के साथ दो-दो चम्मच लेने से लाभ मिलता है. आहार पर नियंत्रण रखना भी जरूरी होता है. इमली की खटाई और लाल मिर्च के सेवन से परहेज करें. पूर्ण विश्राम करें और तनावमुक्त रहें. विशेष परिस्थितियों में रोग अधिक बढ़ जाने पर आॅपरेशन कराने की भी जरूरत पड़ती है.

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