क्या है हेपेटाइटिस की एबीसी

डॉ डी बराट पूर्व एचओडी, मेडिसिन आइजीआइएमएस, पटना लिवर में इन्फेक्शन को ही हेपेटाइटिस कहते हैं. यह इन्फेक्शन बैक्टीरिया, परजीवी और वायरस के कारण हो सकता है. उदाहरण के लिए अमीबीएसिस के लिए जिम्मेवार अमीबा यदि लिवर में चला जाये, तो उससे भी हेपेटाइटिस हो सकता है. वायरस के कारण होनेवाले इन्फेक्शन को वायरल हेपेटाइटिस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 2, 2016 7:56 AM
डॉ डी बराट
पूर्व एचओडी, मेडिसिन आइजीआइएमएस, पटना
लिवर में इन्फेक्शन को ही हेपेटाइटिस कहते हैं. यह इन्फेक्शन बैक्टीरिया, परजीवी और वायरस के कारण हो सकता है. उदाहरण के लिए अमीबीएसिस के लिए जिम्मेवार अमीबा यदि लिवर में चला जाये, तो उससे भी हेपेटाइटिस हो सकता है. वायरस के कारण होनेवाले इन्फेक्शन को वायरल हेपेटाइटिस कहते हैं. इसके वायरस पांच प्रकार के होते हैं. इनमें ए और इ के मामले सबसे अधिक देखने को मिलते हैं. जबकि सबसे खतरनाक बी और सी को माना जाता है.
ए और इ इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनका संक्रमण दूषित पानी और भोजन से होता है. मानव मल में इनके वायरस होते हैं. एक से दूसरे में संक्रमण मुख्य रूप से मानव मल के कारण ही फैलता है. इसी कारण इसे फीको ओरल रूट भी कहा जाता है. शौच के बाद ठीक से हाथ नहीं धोना इसका कारण है. यदि व्यक्ति उसी हाथ से खाने-पीने की चीजों को छूता है, तो वायरस खाने-पीने की चीजों में भी फैल जाता है. इससे यह दूसरे लोगों में फैलता है. गांव में खुले में शौच करना इसका प्रमुख कारण है.
तालाब या कुएं का जल यदि इससे संक्रमित हो जाये, तो यह रोग एक साथ कई लोगों को हो जाता है. इसे एपिडेमिक फॉर्म कहते हैं. शहरों में पेयजल को पाइपों के माध्यम से घरों तक पहुंचाया जाता है. गंदे पानी को पाइपों से शहर से बाहर ले जाया जाता है. इन पाइपों में रिसाव होने पर पानी मिक्स हो जाता है. यही दूषित पानी घरों तक जाता है, जिस कारण भी इसका संक्रमण तेजी से फैलता है.
दो सप्ताह बाद दिखते हैं लक्षण
संक्रमण के बाद हेपेटाइटिस इ वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड कुछ दिन से लेकर कुछ महीने तक होता है. इस कारण जरूरी नहीं है कि संक्रमण के तुरंत बाद ही इसके लक्षण दिखें. इसमें समय भी लग सकता है. दो से पांच सप्ताह में इसके लक्षण दिखते हैं. आमतौर पर इसे आंखों के पीले होने के बाद पहचाना जाता है, लेकिन रोग के लक्षण पहले ही दिखने लगते हैं. इसे प्रोड्रोमल स्टेट कहते हैं. यह बीमार पड़ने से पहले की अवस्था है.
इस अवस्था में भूख नहीं लगती, कमजोरी, थकान, शरीर में दर्द, उलटी, पेट दर्द के लक्षण दिखते हैं. आंखों के पीले होने से पहले पेशाब पीला होने लगता है. रोगी आंखों के पीले होने से पहले ही संक्रमण फैलाने की क्षमता रखता है. बाद में रोग बढ़ने पर आंखें पीली हो जाती हैं. तब रोगी के बीमार होने का पता चलता है. अधिकतर लोग आंखों के पीले होने के बाद ही इलाज कराने पहुंचते हैं. इस अवस्था में लिवर बढ़ा हुआ रहता है.
पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द होता है. सामान्य रूप से बिलिरूबिन की मात्रा 100 एमएल ब्लड में एक मिलिग्राम से कम होती है. आंखें पीली होने से पहले यह एक से दो मिलिग्राम के बीच में होता है. दो मिलिग्राम से ऊपर होने पर आंखों का रंग पीला हो जाता है. किसी-किसी में यह 30-32 तक चला जाता है. ऐसा होते ही व्यक्ति बेहोश हो जाता है और हिपेटिक कोमा में चला जाता है. बाइल पिगमेंट की उपस्थिति के कारण पेशाब पीला होता है.

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