छोटी उम्र से ही कला के प्रति रहा रूझान

रचना प्रियदर्शिनीकहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं. छोटी-सी उम्र में ही अपने पिता को देख-देख कर कोमल में भी कला के प्रति कुछ ऐसा रूझान जगा कि उन्होंने इंटर के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ कर पूरी तरह से खुद को कला के प्रति समर्पित कर दिया. मूल रूप से बिहार […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 15, 2019 10:05 AM

रचना प्रियदर्शिनी
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं. छोटी-सी उम्र में ही अपने पिता को देख-देख कर कोमल में भी कला के प्रति कुछ ऐसा रूझान जगा कि उन्होंने इंटर के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ कर पूरी तरह से खुद को कला के प्रति समर्पित कर दिया.

मूल रूप से बिहार केगया के आदर्श कॉलोनी निवासी कोमल कुमारी जब पांचवी या छठी क्लास में थीं, तभी से अपने पिता को चित्रकारी करते देख उनके साथ बैठ जातीं और फिर हाथों में कूची उठा कर रंगों से खेलने लगतीं. कोमल के पिता श्री रविशंकर प्रसाद एक जाने-माने कलाकार हैं. वह पिछले 35 वर्षों से चित्रकला व्यवसाय से जुड़े हैं. उन्हें चित्र बनाते देख कोमल के मन में भी चित्रकला के प्रति रुझान पैदा हो गया और वह भी उनका हाथ बंटाने लगीं. आज वह खुद भी एक बेहतरीन चित्रकार के रूप में नाम कमा रही हैं.

अन्य कई विधाओं में भी पारंगत

कोमल ने कला के क्षेत्र में शुरुआत भले पेंटिंग से की हो, लेकिन उसके बाद कला के प्रति उनमें इस कदर रुझान पैदा हुआ कि उन्होंने इंटर के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ कर कला की अन्य विधाओं जैसे कि- सिलाई, कढाई, ब्यूटीशियन तथा आर्ट एंड क्राफ्ट मेकिंग का भी प्रशिक्षण प्राप्त किया. इनके अलावा, उन्होंने कंप्यूटर का भी कोर्स किया और फिलहाल घर के एक हिस्से में ही कंप्यूटर सेंटर खोल कर छात्रों को कंप्यूटर सिखाने की तैयारी कर रही हैं.

बनाती हैं कई तरह के आइटम्स

कोमल पिछले 10 वर्षों से खूबसूरत पेंटिंग्स बनाने के अलावा विभिन्न वेस्ट मैटेरिल्यस से बेहतरीन क्राफ्ट भी बनाती हैं. वर्ष 2017 में बिहार उद्यमिता संस्थान की ओर से गया में आयोजित क्राफ्ट मेले में उन्होंने अपने पिता के साथ मिल कर स्टॉल भी लगाया था. ”गया में पेंटिंग या आर्ट-क्राफ्टस की चीजों का मार्केट ज्यादा बड़ा नहीं है. इसी वजह से यहां उसकी खास बिक्री नहीं हुई, पर अगर मौका मिले और सरकार सहयोग करे, तो मैं अपनी कला को अन्य जिलों और राज्यों में भी लेकर जाना चाहूंगी.” बता दें कि कई बार केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय का कार्ड होने और आवेदन देने के बाद भी कोमल को अन्य स्थानों में स्टॉल नहीं मिल पा रहा है.

पूरा परिवार जुड़ा है कला के हुनर से

कोमल के पिता रविशंकर प्रसाद बताते हैं कि वह और उनका परिवार आजीविका के लिए इसी कार्य पर निर्भर हैं. ”हमलोग सालों भर झंडे बनाने का काम करते हैं, जिनमें रामनवमी के झंडे और राष्ट्रध्वज प्रमुख हैं, जो देश के अन्य हिस्सों में भी सप्लाइ किये जाते हैं. इस व्यवसाय में वे सालाना 50-60 हजार रुपये का निवेश करके एक-डेढ लाख रुपये कमा लेते हैं. कोमल को सोशल मीडिया मार्केटिंग की कोई जानकारी नहीं हैं. उनके ज्यादातर कस्टमर व्यक्तिगत संपर्क वाले हैं.

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