प्रदूषण की वजह से सालभर में 3.5 लाख भारतीय बच्चे आये दमा की चपेट में

वाशिंगटन : वर्ष 2015 में यातायात संबंधी प्रदूषण के कारण भारत में दमा से 350,000 बच्चे प्रभावित हुए. चीन के बाद इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला भारत दूसरा देश है. लांसेट जर्नल ने 194 देशों और दुनिया भर के 125 प्रमुख शहरों का विश्लेषण करने के बाद बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 11, 2019 9:19 PM

वाशिंगटन : वर्ष 2015 में यातायात संबंधी प्रदूषण के कारण भारत में दमा से 350,000 बच्चे प्रभावित हुए. चीन के बाद इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला भारत दूसरा देश है.

लांसेट जर्नल ने 194 देशों और दुनिया भर के 125 प्रमुख शहरों का विश्लेषण करने के बाद बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी है. ‘द लांसेट प्लैनटेरी हेल्थ’ जर्नल ने अपनी तरह के पहले वैश्विक प्रकाशित अनुमान में बताया है कि हर साल बच्चों में दमा से संबंधित दस में से एक से अधिक मामले को यातायात संबंधी वायु प्रदूषण से जोड़ा जा सकता है.

इन मामलों में से 92 प्रतिशत मामले ऐसे इलाकों में हुए हैं जहां यातायात प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश स्तर से नीचे है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस सीमा की फिर से समीक्षा किये जाने की जरूरत है.

अमेरिका स्थित जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के सुसान अनेनबर्ग ने कहा, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण बचपन में दमा की घटना के लिए विकसित और विकासशील दोनों देशों में विशेषकर शहरी इलाकों में एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है.

अनेनबर्ग ने एक बयान में बताया, हमारे निष्कर्षों में बताया गया है कि वार्षिक औसत एनओ2 सांद्रता के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश पर पुनर्विचार करने की जरूरत हो सकती है और यातायात उत्सर्जन को कम करने के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए.

जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता पलोय अचकुलविसुत ने बताया, हमारे अध्ययन में संकेत मिला कि यातायात संबंधी वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नीतिगत पहल से बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी कम किया जा सकता है.

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