मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे हैं बच्चे, टीवी, इंटरनेट से रखें दूर

नयी दिल्ली : किसी छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल आते ही उसे खुशी से मुस्कुराते देखा है आपने. एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसमें एक बच्चे के हाथ से मोबाइल छिनते ही, वो रोने लगता था. फिर वापस देने पर हंसता था. आप किसी रिश्तेदार के यहां जाते हैं तो […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 25, 2017 3:04 PM

नयी दिल्ली : किसी छोटे बच्चे के हाथ में मोबाइल आते ही उसे खुशी से मुस्कुराते देखा है आपने. एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसमें एक बच्चे के हाथ से मोबाइल छिनते ही, वो रोने लगता था. फिर वापस देने पर हंसता था. आप किसी रिश्तेदार के यहां जाते हैं तो पाते हैं कि वहां के बच्चे आपको मोबाइल गेम्स के लिए जिद करते हैं. इन सारे संकेतों को समझने की जरूरत है.

मोबाइल फोन और गैजेट्स के क्रेज ने बच्चों की पसंद बदल दी है. अब गिल्ली डंडे, फुटबॉल जैसे गेम्स बहुत कम खेले जाते हैं. हालांकि अभी भी क्रेकिट ने बच्चों के बाहर जाकर खेलने की लालसा को बचा कर रखा है. वक्त बदल रहा है. मैदान की जगह मॉल्स ने ले ली है. यहां वीडियो गेम्स का एक अलग सेक्शन है. बच्चे भी अब इस सेक्शन के दिवाने हो रहे हैं. सप्ताह में एक बार उन्हें वीडियो गेम्स खेलने बाहर जाना है.

कितनी देर टीवी देखता है आपका बच्चा

एक शोध में पाया गया कि बच्चे औसतन 5 से 6 घंटे टीवी देखते हैं. किसी भी बच्चे के लिए इतना वक्त टीवी के सामने बैठे रहना उसकी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. कभी भी बच्चों को 3 घंटे से ज्यादा टीवी ना देखने दें. आजकल बच्चों में कई ऐसी बीमारी के लक्षण देखे जाते हैं, जो हैरान करते हैं. छोटी उम्र में उन्हें ये बिमारियां कैसे हो सकती हैं? किसी बच्चे की आंख कमजोर हो जाती है, किसी का मोटपा बढ़ने लगता है, कोई बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है.

ये सारी शिकायतें ज्यादा टीवी देखने से या इंटनेट, वीडियो गेम्स पर ज्यादा वक्त बिताने से होती हैं. बच्चों के शरीर में वसा की मात्रा बढ़ती है. इंसुलिन प्रतिरोध की क्षमता घटने लगती है. इससे बच्चे डायबिटीज का शिकार हो जाते हैं. बाहरी खेलकूद ना होने के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी कम होता है. कई बार बच्चे घर से बाहर निकलने से डरते हैं. अजनबियों से बात करने से कतराते हैं. भीड़ में सहज नहीं हो पाते. टाइप-2 डायबिटीज की चपेट में आ जाते है.

अगर आप चाहते हैं कि बच्चे थोड़ा वक्त वीडियो गेम्स में दें या आपने बच्चों को गेम्स खरीद कर दिया है तो ध्यान दीजिए बच्चा किस तरह के गेम्स पसंद करता है. अगर आपका बच्चा मारपीट या हिंसा वाले गेम्स ज्यादा खेलता है, तो उसके स्वभाव में बदलाव नजर आने लगेगा. वीडियो गेम्स में उन्हें हर बार जितने की आदत होती है. असल जिंदगी वीडियो गेम नहीं है, कभी टेस्ट में कम नंबर लाना, स्कूल बस की मनचाही सीट ना मिलना. असल जिंदगी में मिली छोटी-छोटी हार परेशान करने लगती है. बच्चे कई बार पूरी नींद नहीं ले पाते. गेम्स उन्हें संस्कार और सम्मान की भाषा कम और किसी तरह जीत हासिल करना ज्यादा सिखाते हैं.

कई तरह के शोध बताते हैं कि स्कूल में इन दिनों बच्चों के बीच बढ़ रही हिंसा की प्रवृत्ति के पीछे टीवी, इंटरनेट और वीडियो गेम्स का बहुत बड़ा हाथ है. हाल में ही ब्लू व्हेल गेम्स ने इस बढ़ते खतरे का अहसास पूरी दुनिया को कराया था. भारत में इससे जुड़े कई मामले सामने आये थे. इंटरनेट ट्रेंड बताते हैं कि झारखंड में सबसे ज्यादा जमशेदपुर के लोग इस तरह की एक्टिविटी मेंशामिल रहते हैं.

कैसे रोकें बच्चों को

भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली ने हाल मे ही एक बयान में कहा, बच्चों को वीडियो गेम्स से दूर रखिये, उन्हें खुली हवा में खेलने के लिए प्रेरित कीजिए. उन्होंने अपने बचपन की बातों को याद करते हुए कहा, जिस वक्त मैं बड़ा हो रहा था उस वक्त ये सारी चीजें नहीं थी. हमने बैडमिंटन के लिए एक जगह बनायी थी. वहीं खेलते थे. मैं बच्चों को प्रेरित करने के लिए तैयार हूं कि वह ज्यादा से ज्यादा खेलें.

अगर आपका बच्चा क्रिकेटऔर विराट कोहली को पसंद करता है तो विराट का यह संदेश बच्चों तक पहुंचायें. आप बच्चों से प्यार करते हैं तो उनकी हर मांग को पूरा ना करें, उन्हें कम उम्र में मोबाइल या गैजेट खरीद कर ना दें. बच्चों को ज्यादा से ज्यादा वक्त दें उनके साथ बाहर जाकर खेलें. उन्हें अच्छी कहानियां सुनायें, पेड़-पौधे लगाना सिखाएं उनसेहोनेवालेलाभ के बारे में बताएं.

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