प्रदूषण से लड़ने में सहायक हैं ये प्राणायाम

डॉ नरेश कुमार फिजियोथैरेपिस्ट और योगाचार्य भारतीय योग एवं प्रबंधन संस्थान, दिल्ली दूरभाष-9990970104 दीपावली में दीये की रोशनी से उसके आसपास एक तरह का चुम्बकीय क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिससे शरीर में रक्त-संचार तेज हो जाता है और एक नयी ऊर्जा पैदा होती है. लेकिन, पटाखों से होनेवाले वायु-प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर हो […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 19, 2017 11:36 AM
डॉ नरेश कुमार
फिजियोथैरेपिस्ट और योगाचार्य
भारतीय योग एवं प्रबंधन संस्थान, दिल्ली
दूरभाष-9990970104
दीपावली में दीये की रोशनी से उसके आसपास एक तरह का चुम्बकीय क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिससे शरीर में रक्त-संचार तेज हो जाता है और एक नयी ऊर्जा पैदा होती है. लेकिन, पटाखों से होनेवाले वायु-प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि स्वस्थ लोगों के लिए भी सांस लेना सहज नहीं रह जाता. इसलिए, वायु-प्रदूषण के कारण दीपावली और उसके तुरंत बाद अस्थमा अटैक, सांस लेने में परेशानी की शिकायत काफी बढ़ जाती है. खासकर बुजुर्गों और बच्चों में. बाहर के प्रदूषण से बच पाना पूरी तरह तो संभव नहीं है, लेकिन प्राणायाम और आसन से इसके असर को कम जरूर किया जा सकता है.
भस्त्रिका प्राणायाम
भस्त्र यानी ‘धौंकनी’. यह प्राणायाम धौंकनी की तरह कार्य करता है और हमारे शरीर को गर्म करता है. इसमें लगातार तेजी से बलपूर्वक श्वसन लिया और छोड़ा जाता है. इसका अभ्यास अस्थमा और श्वसन रोगों से निजात दिलाने में उपयोगी है. यह प्राणायाम उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, सिर चकराने, दिमागी ट्यूमर, मोतियाबिंद, आंत या पेट के अल्सर या पेचिश के मरीजों को नहीं करना चाहिए.
विधि : सुविधानुसार बैठें. शुरू-शुरू में धीरे-धीरे सांस लें और इस सांस को बलपूर्वक छोड़ें. कुछ पल बाद जोर-जोर से सांस लें और बलपूर्वक छोड़ें. दस बार के बाद यथासंभव गहरी सांस लें. कुछ पल बाद,अंतर्कुंभक लगाएं अर्थात सांस भरकर उसे भीतर रोकें. फिर उसे धीरे-धीरे छोड़ें. इस गहरे सांस छोड़ने के बाद भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा हो जाता है. इस प्रक्रिया को 10 राउंड तक दुहराएं.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम
इसे ‘नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते हैं. इससे शरीर की सभी नाड़ियां स्वस्थ और निरोग रहती हैं. इससे फेफड़े और हृदय स्वस्थ रहते हैं. इसे हर उम्र के लोग कर सकते हैं. लेकिन कमजोर और एनिमिया से पीड़ित रोगियों को इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने व छोड़ने में थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए. इस प्राणायाम का अभ्यास सुबह के वक्त खुली हवा में करें.
विधि : सुखपूर्वक बैठें. दाहिने हाथ के अंगूठे से दायीं नासिका को बंद कर लें और बायीं ओर से सांस भरें. फिर बायीं नासिका को बंद कर दाहिनी नासिका से सांस बाहर जाने दें. सांस छोड़ते समय आठ तक की गिनती करें.
बारी-बारी से दोनों नासिकाओं के साथ इस क्रिया को पहले तीन मिनट तक करें और फिर धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाकर 10 मिनट तक करें. कुछ लोग समय की कमी के चलते जल्दी-जल्दी सांस लेते और छोड़ते हैं. इससे वातावरण में फैले धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस सांस नली में पहुंचकर संक्रमण पैदा कर सकते हैं. अतः प्राणायाम के दौरान सांस की गति इतनी सहज हो कि स्वयं भी सांस की आवाज सुनाई न दे.
आसन : सबसे उपयोगी है-सूर्य नमस्कार है. पवन मुक्तासन और पश्चिमोत्तानासन भी उपयोगी हैं.
पवन मुक्तासन
इससे दूषित वायु की समस्या दूर होती है और रक्तसंचार ठीक रहता है, जो सहज श्वसन में सहायक होता है.
विधि : पीठ के बल लेटकर दायें घुटने को मोड़कर हाथों से ग्रिप बनाकर घुटने पर रखें. सांस भरकर घुटने को सीने से लगाकर हल्का दबाव बनाएं.
सांस छोड़ते हुए गर्दन को ऊपर उठाकर नाक घुटने से लगाएं. वापसी में, पहले गर्दन और फिर पैर सीधा करें. इस दौरान बायें पैर को जमीन से लगा रहने दें. फिर यह प्रक्रिया बायें पैर से दुहराएं. सर्वाइकल के रोगी गर्दन ऊपर न उठाएं,केवल घुटने मोड़कर छाती से लगाएं.

Next Article

Exit mobile version