ये बुजुर्गों में पायी जानेवाली दूसरी सबसे बड़ी बीमारी…जानें इसके लक्षण और बचाव के बारे में

डॉ पवन कुमार वर्णवाल, न्यूरो साइकेट्रिस्ट रांची : डब्ल्यूएचओ के अनुसार डिमेंशिया बुजुर्गों में पायी जानेवाली दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है. आज दुनिया में 46.8 मिलियन लोग इससे ग्रसित हैं. हर वर्ष डिमेनसिया के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. आंकड़े के अनुसार 20 वर्षों में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाती […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 21, 2017 12:33 PM
डॉ पवन कुमार वर्णवाल, न्यूरो साइकेट्रिस्ट
रांची : डब्ल्यूएचओ के अनुसार डिमेंशिया बुजुर्गों में पायी जानेवाली दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है. आज दुनिया में 46.8 मिलियन लोग इससे ग्रसित हैं. हर वर्ष डिमेनसिया के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. आंकड़े के अनुसार 20 वर्षों में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाती है. वर्ष 2030 तक डिमेंशिया के मरीजों की संख्या 74.7 मिलियन और 2050 तक 131.5 मिलियन हो जायेगी. विश्व में हर तीन सेकेंड में डिमेंशिया का एक नया मरीज तैयार हो जाता है.
भारत में मरीजों की संख्या 4.1 मिलियन है, जो दुनिया में तीसरा स्थान रखता है(पहला चीन व दूसरा यूएस). अाश्चर्य की बात यह है मात्र 20 फीसदी डिमेंशिया में मरीजों का ही पता चल पाता है. डिमेंशिया साधारणत: 65 वर्ष के ऊपर 5-8 फीसदी लोगों में, 75 वर्ष के ऊपर 15-20 फीसदी लोगों में और 85 वर्ष के ऊपर 25-30 फीसदी लोगों में डिमेंशिया का होना तय है.
‘रिमेंबर मी’ है इस वर्ष की थीम
आश्चर्य की बात यह है कि डिमेंशिया जैसी खतरनाक बीमारी को अधिकांश लोग बीमारी नहीं मानते हैं. या फिर इसे नजरअंदाज कर देते हैं. इससे इस बीमारी से ग्रसित बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो जाती है.
हम यह भूल जाते हैं कि कल हम भी बुजुर्ग होंगे एवं बहुत से लोग इससे ग्रसित भी होंगे. इसको लेकर जागरूकता जरूरी है़ इसी को ध्यान में रखते हुए 21 सितंबर को डिमेंशिया दिवस यानी वर्ल्ड एलजाइमर्स डे मनाया जाता है. इस वर्ष की थीम है : रिमेंबर मी़
डिमेंशिया के बारे में जानें : इसके मरीज दैनिक जीवन से संबंधित चीजों तक को भूल जाते हैं.
कभी-कभी नींद की कमी, स्वभाव में परिवर्तन, वहम, डर, गुस्सा, दिन, तारीख व जगह को पहचानने में असमर्थ हो जाना आदि लक्षण पाये जाते हैं. मरीजाें में ब्रेन की कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिसे सीटी स्कैन या एमआरआइ द्वारा आसानी से देखा जा सकता है. डिमेंशिया के मरीजों में सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाती है या फिर समाप्त हो जाती है. अत: इन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहिए.
समय रहते यदि इसकी पहचान हो जाये तो बहुत हद तक इसे रोका जा सकता है़ इसके लिए परिवार का भावनात्मक सहयोग के साथ-साथ दवाइयों की भी जरूरत होती है. डिमेंशिया के मरीजों के पास हमेशा डायरी, कलम, कैलेंडर आदि रहना चाहिए, ताकि वह चीजों को लिख सकें या फिर देख कर याद कर सकें. एक सहयोगी भी होना आवश्यक है.

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