पारिवारिक बेड़ियां तोड़, साइकिल से 6 माह में 29 राज्य घूम आयीं ये दो बेटियां

आर्थिक अभाव को दी मात, समूचे देश में दिया महिला सशक्तीकरण का संदेश सरकार भी मदद करने से कर चुकी थी इनकार अनुपम कुमारी कामयाबी की इबारत अकसर उन रास्तों से होकर गुजरती है, जिन पर चलना सभी के बस की बात नहीं होती, लेकिन जो इन पर चलने की हिम्मत कर लेते हैं, वो […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 15, 2017 2:34 PM
आर्थिक अभाव को दी मात, समूचे देश में दिया महिला सशक्तीकरण का संदेश
सरकार भी मदद करने से कर चुकी थी इनकार
अनुपम कुमारी
कामयाबी की इबारत अकसर उन रास्तों से होकर गुजरती है, जिन पर चलना सभी के बस की बात नहीं होती, लेकिन जो इन पर चलने की हिम्मत कर लेते हैं, वो इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा लेते हैं. गरीब परिवारों से नाता रखनेवाली दो बेटियों तबस्सुम और सविता ने अति विषम परिस्थितियों से अपनी हिम्मत और दृढ़ इच्छाशक्ति से पार पाते हुए सफलता की एेसी इबारत लिखी है, जिस पर इस शहर, इस राज्य और इस देश को नाज हो.
उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों को मात देकर छह महीने में साइकिल से देश के सभी 29 राज्यों का चक्कर लगा लिया. साथ ही पूरे देश में महिला सशक्तीकरण का संदेश देकर अपनी जैसी और बेटियों के अंदर एक नयी ऊर्जा भी फूंकने की कोशिश की. अपनी और अन्य लड़कियों के संघर्ष से प्रेरणा पाकर दोनों बेटियों ने साइकिल से पूरा देश घूम कर सभी बेटियों को बुलंद बनने की प्रेरणा दी है, इसे वे महज शुरुआत मानते हुए कहती हैं कि अभी तो बस उनका कारवां मंजिल की ओर शुरू ही हुआ है. अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है.
नहीं चलायी थी साइकिल
तबस्सुम अली की उम्र 36 वर्ष है. वह जमुई जिले की रहने वाली है. साइकिल यात्रा से पहले कभी साइकिल नहीं चलाने वाली तबस्सुम बताती हैं कि उसके पिता रेलवे में नौकरी करते थे. चार बहन और दो भाइयों के बीच बहुत मुश्किल से पढ़ाई -लिखाई हो पायी है. मैं शुरू से कुछ करना चाहती थी. पर घर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद गैरसरकारी संस्थाओं के साथ काम करने लगी. जहां लड़कियों के स्ट्रगल को देखा. वहीं सविता महत्तो की उम्र 23 वर्ष है. छपरा की रहने वाली है. उसके पिता कोलकाता में मछली का व्यवसाय करते हैं. वह माउंटेनियर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहती है. दोनों की मुलाकात हुई और दोनों ने भारत यात्रा करने का निर्णय किया.
यूपी-बिहार में हुई दिक्कत
भारत यात्रा के दौरान दोनों लड़कियों को कई तरह की परेशानी भी हुई. इनमें यूपी अौर गोवा और बिहार में सबसे अधिक परेशानी हुई. यूपी में तो उन्हें ईव टीजिंग तक का सामना करना पड़ा. वहीं, गोवा में थोड़ी परेशानी हुई. वे बताती हैं कि बिहार-यूपी में हम पर कमेंट करने वालों की संख्या अधिक रही. हम जहां से भी गुजरते, लड़के तरह-तरह के कमेंट करते. परेशान करते. वहीं गोवा में भी यही देखने को मिला. हम दोनों को साइकिल में आगे-पीछे होने पर लोगों ने डराया भी. बावजूद इसके हमने सफर पूरा किया. हम अपनी इस उपलब्धि से काफी खुश हैं.
मिशन रिकॉर्ड के तहत दोनों लड़कियों को भारत यात्रा की रवानगी दी गयी. ये लड़कियां छ:महीने की यात्रा पूरी कर बिहार प्रवेश कर चुकी हैं. जीपीएस सिस्टम के साथ इनकी मॉनेटरिंग की जा रही है.एक दो दिनों में लड़कियां पटना पहुंचेगी. जहां इनका स्वागत किया जायेगा.
धीरज कुमार संयोजक, कॉम्यूनिटी ट्रैफिक पुलिस
सरकार से नहीं मिली मदद
दोनों बताती हैं कि यात्रा के लिए सरकार से मदद की गुहार लगा चुकी थीं, पर कोई मदद नहीं मिली. डीएम, कमीश्नर और कला संस्कृति विभाग ने भी इनकार कर दिया. इसके बाद कॉम्यूनिटी ट्रैफिक पुलिस से मदद मिली. उन्होंने यात्रा की परमिशन दिलायी. जीपीएस सिस्टम से हमारे यात्रा की मॉनेटरिंग भी की गयी.
दिया बेटियों को सुरक्षित करने का संदेश
वर्तमान में यह दोनों बेटियां 29 राज्यों का 12 हजार किलोमीटर का सफर पूरा करके बिहार के मधुबनी जिले में पहुंच चुकी हैं. शनिवार को ये दोनाें दरंभगा होते हुए मुजफ्फरपुर, हाजीपुर के बाद 18 को पटना पहुंचेगी. दोनों बेटियों ने एक साइकिल और एक छोटे से बैग के साथ 27 जनवरी को पटना से यात्रा की शुरुआत की थी. प्रत्येक राज्यों में पहुंच कर स्कूल, कॉलेजोंं में जाकर सरकारी योजनाओं की जानकारी दी.
तबस्सुम बताती हैं कि अब भी समाज में बेटियों की स्थिति ठीक नहीं है. भारत यात्रा के जरिये बेटियों के प्रति सोच बदलने का प्रयास किया गया है, क्योंकि हम दोनों भी लड़कियां है.
हमें सहने की नहीं, लड़ने की आदत डालनी होगी
दुख की बात है कि जिस समाज में नारी की पूजा की जाती है, उसी समाज में नारी की दुर्दशा कदम-कदम पर की जाती है. मैं भी एक नारी हूं. किसी की बेटी, तो किसी की बहन हूं, पर घर से बाहर इन रिश्तों का कोई मोल नहीं है. एकमात्र लड़की के रूप में ही लोग देखते हैं. मेरे साथ भी ऐसी घटना हो चुकी है.
बात उस वक्त की है, जब मैं ग्रेजुएशन प्रथम वर्ष की छात्रा थी. कॉलेज से क्लास कर बस से घर लौट रही थी. बस स्टॉप से दस मिनट के वॉकिंग डिस्टेंस पर मेरा घर था. जैसे ही घर की आेर पैदल बढ़ रही थी, तो एक अधेड़ उम्र के अंकल मेरा पीछा करते हुए आ रहे थे.
मैं थोड़ा डरते-डरते तेज कदमों से चलने लगी और वह मेरे से भी तेज चलने लगे. वह मेरे करीब पहुंच गये और पूछा कहां जा रही हो. मैं अंदर से डर गयी, पर खुद को संभालते हुए बोली. मैं घर जा रही हूं. वह बोलने लगा. चलो मैं साथ चल रहा हूं. वह मुझे छूने की कोशिश भी करने लगा, तब तक उसकी पूरी नीयत मैं समझ चुकी थी. मैं डपटकर उसे बोली यहां से चुपचाप चले जाओ.
नहीं, तो इतना मारूंगी की बच नहीं पाओगे. यह कहते हुए मैं अपना चप्पल भी निकाल चुकी थी. उसे यह भी बताया कि मेरे परिवार के लोग आस-पास ही हैं. अगर उन्होंने देख लिया, तो बहुत मारेंगे. इतना कहते ही वह डर गया और वह चुपचाप चला गया. उसके जाने के बाद याद आया कि वह मेरा पीछा बस से ही कर रहा था. उसके बाद से मैं अब बेखौफ बाहर निकलती हूं, क्योंकि जब तक हम सहते हैं. तब तक हमले होते हैं. हमें सहने की नहीं लड़ने की आदत डालनी होगी.
– याशमीन बानो

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