Shaheed Diwas 23 March: युवाओं के बीच इसलिए काफी चर्चित हैं भगत सिंह

Shaheed Diwas 23 March: आज हर युवा भगत सिंह से जुड़ी किसी न किसी चीज को हासिल करना चाहता है. 23 मार्च, 1931 को शहीद हुए उन्हें 92 वर्ष हो चुके हैं.आज हम जिस आजादी के साथ सुख-चैन की जिन्दगी गुजार रहे हैं, वह असंख्य जाने-अनजाने देशभक्त शूरवीर क्रांतिकारियों के बलिदान एवं शहादतों की नींव पर खड़ी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2022 12:53 AM

Shaheed Diwas 23 March: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कौन नहीं जानता है. उन्हीं की याद में आज यानी 23 मार्च को शहीदी दिवस मनाया जाता है. साल 1931 में इसी दिन तीनों वीर सपूतों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी. लाहौर षड्यंत्र के आरोप में उन्हें फांसी दी गई.

23 मार्च को भी शहीद दिवस कहा जाता है क्योंकि इस रोज एक साथ तीन क्रांतिकारियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. कई जगह इस बात का जिक्र है कि जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो तीनों मुस्कुराते हुए आगे बढ़े और एक-दूसरे को गले से लगाया था.

आज हम जिस आजादी के साथ सुख-चैन की जिन्दगी गुजार रहे हैं, वह असंख्य जाने-अनजाने देशभक्त शूरवीर क्रांतिकारियों के असीम त्याग, बलिदान एवं शहादतों की नींव पर खड़ी है. ऐसे ही अमर क्रांतिकारियों में शहीद भगत सिंह शामिल थे, जिनका नाम लेने मात्र से ही सीना गर्व एवं गौरव से चौड़ा हो जाता है.

आज के युवाओं के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं भगत सिंह

आज हर युवा भगत सिंह से जुड़ी किसी न किसी चीज को हासिल करना चाहता है. 23 मार्च, 1931 को शहीद हुए उन्हें 92 वर्ष हो चुके हैं. इतने लंबे अंतराल में तो किसी की भी यादें फीकी पड़ जाएंगी. लेकिन भगत सिंह आज भी आजादी के आंदोलन के सबसे अविस्मरणीय प्रतीक बने हुए हैं.

अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने के खाई थी कसम

1919 का साल था, जब अंग्रेजी हुकूमत ने जलियांवाला बाग में कत्लेआम किया था. इस नरसंहार के बाद एक 12 साल का लड़का उस घटनास्थल पर गया. वह स्तब्ध था, यह सोचकर कि कोई भी इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? वह मासूम गुस्से की आग में जलने लगा था. उसी जलियांवाला बाग में उसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने की कसम खाई. वह मासूम कोई और नहीं शहीद वीर भगत सिंह थे.

फांसी माफ करवाने के लिए कई नेताओं ने की थी सिफारिश

कहा जाता है कि तीनों की फांसी माफ करवाने के लिए कई कद्दावर नेताओं ने सिफारिश की थी. यहां तक कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए अपील की थी लेकिन सारी ही अपीलें खारिज होती चली गईं. सरकार को डर था कि इन जोशीले क्रांतिकारियों का जिंदा रहना, फिर भले ही वो जेल में क्यों न हो, मुसीबत खड़ी कर सकता है और उनका बोरिया-बिस्तर उठवा सकता है.

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