Dowry System: दहेज के खिलाफ बहादुर बेटियों ने उठाई आवाज, शादी से किया इंकार

Dowry System: भले ही दहेज लेने का स्वरूप बदला है और इसे अब 'बेटी के खुशी' के नाम पर दिया जाने लगा है. बावजूद इसके अभी भी कई नाबालिग लड़किया इस प्रथा की शिकार हो रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 17, 2022 2:09 PM

Dowry System: आज चाहे हम जितने भी आधुनिक जीवनशैली को अपना लें लेकिन समाज में आज भी सदियों से चली आ रही दहेज प्रथा जैसी कुरीतियां वैसी की वैसी है. भले ही दहेज लेने का स्वरूप बदला है और इसे अब ‘बेटी के खुशी’ के नाम पर दिया जाने लगा है. बावजूद इसके अभी भी कई नाबालिग लड़किया इस प्रथा की शिकार हो रही है. जिसका उदाहरण हमें टीवी और अखबारों के जरिये मिलते रहते हैं. वहीं बदलते वक्त के साथ बेटियों ने अपने लिए आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया है. अररिया जिले के धीमनगर खेरिया के रहने वाली श्री कुमारी ने पिछले साल दहेज देने से मना कर दिया.

लंबाई कम होने की वजह से परिवार वाले दे रहे थे दहेज

श्री बताती हैं कि उनकी लंबाई आम लड़कियों के मुकाबले काफी कम है. ऐसे में गांव के आस-पास रहने वाले लोग उसके माता-पिता से उसकी शादी को लेकर चिंता जताते रहते हैं. इस वजह से श्री के परिवारवालों ने भी उन पर शादी का दबाव बनाना शुरू किया. हालांकि श्री इसके लिए मना कर रही थी, लेकिन उनके माता-पिता उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं थे. आखिरकार उसकी शादी पास के गांव के एक लड़के से तय कर दी गयी. श्री की लंबाई आम लड़कियों के मुकाबले कम है. इस वजह से लड़केवालों ने दहेज के तौर पर तीन लाख रुपये नकद, एक मोटरसाइकिल और करीब दो लाख के गहनों की मां की.

जब यह बात श्री को पता चली, तो उसने इसका भी विरोध किया, पर परिवारवाले नहीं माने. तब श्री ने अपने क्षेत्र में महिलाओं के विरूद्ध हो रही सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध कार्यरत एक एनजीओ से संपर्क करके उनसे मदद मांगी. उस एनजीओ के लोगों ने लड़की के परिवारवालों से बात की और उन्हें समझाया कि दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी अपराध है. अत: अगर उन्होंने इस विवाह को नहीं रोका को मजबूरन वह पुलिस को इसकी जानकारी देंगे. श्री ने भी लगातार अपना विरोध जारी रखते हुए आखिरकार अपने अभिभावकों को मना लिया और शादी कैंसिल करवा दी. श्री बड़ी होकर सोशल वर्कर बनना चाहती है, ताकि वह गांवों में फैली कुप्रथाओं के खिलाफ ग्रामीण महिलाओं को जागरूक कर सकें.

बाल विवाह करने से किया इनकार, अब कर पढ़ाई

शराबबंदी के पश्चात गत वर्ष बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ जो बिगुल फूंका है, उसका असर अब शहरों के साथ-साथ कस्बों एवं दूर-दराज के गांवों में भी दिखने लगा है. इस दिशा में जागरूकता फैलाने और पीड़िताओं को कानूनी मदद दिलवाने में एनजीओ की अहम भूमिका रही है. पहले जहां छोटी उम्र में बेटियों की शादी कर दी जाती थी, वहीं आज बेटियां आवाज उठा रही हैं.यह कहानी है पहाड़गंज की रहने वाली दीपा कुमारी की.

पढ़ाई करने के लिए विवाह का किया विरोध

पहाड़पुर अनिसाबाद की रहनेवाली दीपा बताती हैं कि उन्होंने इस साल अपने इंटर की बोर्ड परीक्षा दी है. आज वह जिस तरह पढ़ाई कर रही है ऐसा कर पाना आसान नहीं था. वह लोउर मीडिल क्लास परिवार से है. पिछले साल लगे लॉकडाउन में घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उसके पिता ने उसकी शादी तय कर दी. मात्र 16 साल की दीपा ने इसका विरोध करते हुए शादी से इनकार कर दिया. परिवारवालों ने काफी ज्यादा दबाव बनाया लेकिन उसने सारी बातें अपने टीचर ऊषा कुमारी को बतायी. जिसके बाद वे उसके अभिभावकों से मिली और उन्हें काफी समझाया. उन्होंने सरकार की ओर चलाये जा रहे बाल विवाह के खिलाफ मुहिम पर भी बात की. इसके खिलाफ जाने वालों को मिलने वाली सजा के बारे में भी बताया. जिसका असर यह हुआ कि अभिभावकों ने तय की गयी शादी से इनकार दिया और बेटी को आगे पढ़ने का अनुमति भी दे दी. दीपा बड़ी होकर आइएएस ऑफिसर बनना चाहती हैं.

2020 में बाल विवाह के मामलों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई

  • बाल अधिकार संस्था ‘सेव द चिल्ड्रेन’ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में हर साल दो हजार लड़कियों की मौत (हर दिन छह) बाल विवाह के कारण हो जाती हैं.

  • वर्ष 2020 में बाल विवाह के मामलों में 50 फीसदी की हुई बढ़ोतरी, सबसे ज्यादा केस कर्नाटक में।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2020 के आंकड़ों के अनुसार)

  • भारत में प्रत्‍येक वर्ष, 18 साल से कम उम्र में करीब 15 लाख लड़कियों की शादी होती है.

  • 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं.

  • भारत में दुनिया की सबसे अधिक बाल वधुओं की संख्या है, जो विश्व की कुल संख्या का तीसरा भाग है.
    स्रोत : युनिसेफ

इनपुट : जूही स्मिता

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