क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है ये ‘इमली का पेड़’

यह कोईसाधारणइमली का पेड़ नहीं है. यह भारत देश की आज़ादी का गवाह है. इस पेड़ ने अपने सामने क्रांतिकारीयों को मरते देखा है. यह पेड़ देश के लिए मर-मिटने वालों की शहदात का गवाह है. कहाँ है ये पेड़? आइये आपको बताते हैं… भारतीय इतिहास में यह पेड़ ख़ास जगह बनाए हुए है. इसे […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 25, 2016 4:23 PM

यह कोईसाधारणइमली का पेड़ नहीं है. यह भारत देश की आज़ादी का गवाह है. इस पेड़ ने अपने सामने क्रांतिकारीयों को मरते देखा है. यह पेड़ देश के लिए मर-मिटने वालों की शहदात का गवाह है. कहाँ है ये पेड़? आइये आपको बताते हैं…

भारतीय इतिहास में यह पेड़ ख़ास जगह बनाए हुए है. इसे बावनी इमली का पेड़ के नाम से जाना जाता है. अंग्रेजो ने 28 अप्रैल 1858 को 52 क्रांतिकारियों को एक साथ इसी पेड़ पर फांसी के फंदे पर लटका दिया था. इस पेड़ ने तटस्थ होकर अंग्रेजो की नाक में दम करने वाले क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियो की की शहादत को प्रत्यक्ष अनुभूत किया.

बावनी इमली शहीद स्थल उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट पारादान में स्थित है. यह स्थान ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनके साथियों की कुर्बानी के लिए काफी प्रसिद्द है.

ठाकुर जोधा सिंह बिंदकी के अटैया रसूलपुर (अब पधारा) गांव के निवासी थे. 1857 की क्रांति में समय से वे क्रांतिकारी जोधा सिंह अटैया के रूप में जाने लगे. रानी लक्ष्मीबाई से प्रभावित जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकर मार डाला.

7 दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर अंग्रेज परस्त गद्दार को भी मार दिया. इनके क्रांतिकारी गुट ने अगले दिन ही जहानाबाद में तहसीलदार को बंदी बना कर सरकारी खजाना लूट लिया. जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों द्वारा उन्हें डकैत घोषित कर दिया.

28 अप्रैल 1858 को अपने 51 साथियों के साथ खजुआ लौटते वक्त गद्दारों की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी 51 साथियों सहित बंदी बना लिया और सभी को इस इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी गयी. बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया. कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे.

4 मई की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ स्थानीय नरेश बावनी इमलीआये और शवों को उतारकर शिवराजपुर के गंगा घाट में अंत्येष्टि की.

राष्ट्रीय स्तर पर शहीद दिवस 23 मार्च को क्रांतिकारी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु की शाहदत कि याद में मनाया जाता है, पर यहाँ पर 28 अप्रैल को भी इन 52 क्रान्तिकारियों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है.

यह इमली का पेड़ भारत माता के इन अमर सपूतो की निशानी बन गया है. आज भी यहाँ पर शहीद दिवस 28 अप्रैल को अन्य राष्ट्रीय पर्वो पर लोग पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचते है.

Next Article

Exit mobile version