Sholay @ 50:फिरोज खान की इस बात को सुन डैनी ने ‘शोले ’छोड़ चुनी थी ‘धर्मात्मा’

ब्लॉकबस्टर फिल्म शोले आज पचास साल पूरे कर रही है. सीनियर जर्नलिस्ट दिलीप ठाकुर ने कई सुने -अनसुने किस्से इस बातचीत में सांझा किया है

By Urmila Kori | August 15, 2025 10:05 AM

sholay @ 50: हिंदी सिनेमा की माइलस्टोन फिल्म शोले 15 अगस्त यानी आज अपने 50 साल पूरे कर रही है. वो फिल्म जो सिर्फ देखी नहीं जाती, बल्कि महसूस की जाती है. रामगढ़ की धूल, गब्बर की गूंज, जय-वीरू की दोस्ती और बसंती की बेलगाम बातें आज भी जेहन में जिंदा हैं. बॉलीवुड के विकीपीडिया माने जाने वाले मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार दिलीप ठाकुर उन दर्शकों में से हैं, जिन्होंने 1975 में इस फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो मिनर्वा थिएटर में देखा था. फिल्म से जुड़े कई सुने-अनसुने किस्से उन्होंने प्रभात खबर के साथ साझा किये हैं, जिन्हें हम उन्हीं की जुबानी प्रस्तुत कर रहे हैं. –

शोले के फर्स्ट डे फर्स्ट शो का वो खास एक्सपीरिएंस

50 साल पहले मैं गोरेगांव स्थित मिनर्वा थिएटर गया था. वही थिएटर, जहां फिल्म लगातार पांच वर्षों तक चली थी. मेरे पास अभी भी वह टिकट है. उस दौरान वहां पूरी स्टारकास्ट के बड़े-बड़े कटआउट्स और पोस्टर लगे हुए थे. उस दौर में थिएटर की सजावट अपने आप में एक बड़ी बात हुआ करती थी. ‘शोले’ की टिकटें उस वक्त के हिसाब से काफी महंगी थीं. अप्पर स्टॉल 4 रुपये 40 पैसे और बालकनी 5 रुपये 50 पैसे थी. आमतौर पर मिनर्वा थिएटर की बालकनी टिकट का दाम 4 रुपये 40 पैसे हुआ करता था, लेकिन इस फिल्म के लिए बढ़ा दिया गया था. उस वक्त की यह सबसे महंगी फिल्म थी. फिल्म 70 एमएम के साथ-साथ स्टीरियो साउंड में फिल्म रिलीज हुई थी. आमतौर पर उस वक्त 35 एमएम और मोनो साउंड सिस्टम थिएटर में हुआ करता था. स्टीरियो साउंड की वजह से फिल्म का प्रभाव परदे पर साफ नजर आता था. ‘सिक्का उछालने वाला सीन’ ऐसा लगता था, मानो वह सिक्का हमारे ही पास आकर गिरा हो. इतनी परफेक्ट और जीवंत आवाजें थीं. फिल्म में चलती ट्रेन, दौड़ते घोड़े-हर एक ध्वनि अनुभव को और भी खास बना देती थी. अक्सर शोले को भारत की पहली 70 एमएम में रिलीज हुई फिल्म कहा जाता है, लेकिन पहली फिल्म अराउंड द वर्ल्ड थी, जिसमें राजकपूर और राजश्री थीं. यह फिल्म नहीं चली, इसलिए लोग भूल गये. शोले हिट थी, इसलिए लोगों को याद है. वैसे शोले शूट 35 एमएम में ही शूट हुई थी, रील को इंग्लैंड भेजा गया था. वहां से 70 एमएम के प्रिंट बनकर आये थे.

सलीम-जावेद ने की थी कामयाबी की भविष्यवाणी

मिनर्वा में फिल्म ‘दीवार’ के सिल्वर जुबली के तुरंत बाद ही फिल्म‘शोले’ रिलीज हुई थी. फिल्म को रिलीज के तुरंत बाद रिव्यू अच्छे नहीं मिले थे, क्योंकि यह उस दौर की फिल्मों से बहुत अलग थी. फिल्म की लंबाई बहुत ज्यादा थी और फिल्म में एक्शन बहुत था. ठाकुर के हाथ काटने वाला सीन शॉकिंग वैल्यू जैसा था. उस वक्त रिव्यू लिखने वालों का फोकस सेंसिटिव कहानियों पर था. मुंबई के सभी अखबारों ने फिल्म को नकार दिया था. फिल्म का बजट एक करोड़ था. सभी ने ये भी लिखा कि इतनी महंगी फिल्में बनेंगी, तो इंडस्ट्री खत्म हो जायेगी. ये सब चल ही रहा था कि दो सप्ताह बाद सलीम-जावेद की जोड़ी ने उस वक्त की ट्रेड मैगजीन में एक विज्ञापन दिया और कहा कि फिल्म हर टेरिटरी से एक करोड़ कमायेगी. तीन हफ्ते बाद ही शोले का जादू चल पड़ा. मुंबई के मिनर्वा थिएटर में फिल्म पांच साल तक चली थी.15 अगस्त 1975 से लेकर 31 अगस्त 1976 तक डेली शोज में थी. फिर सिर्फ मैटिनी शो में शिफ्ट हुई और दो साल चली. फिल्म 18 सितंबर,1980 तक चली. फिल्म का म्यूजिक पॉलीगामी कंपनी ने रिलीज किया था. बैकग्राउंड म्यूजिक का भी अलग से कैसेट रिलीज हुआ था और डायलॉग का भी. गली-गली में लाउडस्पीकर लगाकर फिल्म का म्यूजिक ही नहीं, इसके डायलॉग सुने जाते थे. शोले के बाद मल्टीस्टारर फिल्मों का चलन शुरू हिंदी सिनेमा को ‘शोले’से पहले और ‘शोले’ के बाद दो कालखंड में बांटा जा सकता है. ‘शोले’तक फिल्मों की मेकिंग स्मूथ हो रही थी. इस फिल्म की कामयाबी के बाद मल्टीस्टारर फिल्मों का चलन शुरू हुआ. बड़े बजट में फिल्में बनने लगीं. विदेशी तकनीशियन हिंदी फिल्मों से जोड़े जाने लगे थे. 70 एमएम परदे का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा था.

डैनी ने कॉस्ट्यूम तैयार हो जाने के बावजूद ‘शोले’छोड़ चुनी ‘धर्मात्मा’

फिल्म में गब्बर सिंह के रोल के लिए डैनी थे, यह बात सभी जानते हैं. उनके कॉस्ट्यूम भी बन गये थे, लेकिन उन्होंने डेट्स धर्मात्मा को दे दी और रमेश सिप्पी धर्मात्मा की शूटिंग के बाद अपनी फिल्म की शूटिंग का इंतजार नहीं कर सकते थे. धर्मात्मा फिल्म का हिस्सा एक्टर रंजीत भी थे. रंजीत की मानें, तो फिरोज खान ने यह कहते हुए डैनी को मनाया था कि शोले फिल्म में तीन हीरो हैं. संजीव कुमार, धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन. तुम्हारे लिए क्या ही फिल्म में करने को खास होगा? तू मेरे साथ चल. फिल्म में हेमा मालिनी के साथ मेरी गलियों से लोगों की यारी… गीत भी तेरा है. डैनी ने धर्मात्मा को चुन लिया. वैसे किसी को भी पता नहीं था कि शोले इतनी बड़ी फिल्म बन जायेगी.

‘शोले’के साथ नहीं रिलीज हुई थी ‘संतोषी मां’

फिल्म ‘संतोषी मां’और ‘शोले’की क्लैश की बात अक्सर सुनने को मिलती है, लेकिन ‘संतोषी मां’30 मई, 1975 को रिलीज हुई थी यानी ढाई महीने पहले. ऐसे में शोले से क्लैश की बात सच नही है. हां, शोले की बॉक्स-ऑफिस आंधी के बीच में भी फिल्म ‘संतोषी मां’ ने अच्छा कारोबार किया था, यह जरूर कह सकता हूं. इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगा कि उस वक्त फिल्में भारत में एक साथ रिलीज नहीं हो पाती थीं. बड़े शहरों में ‘शोले’ 15 अगस्त को रिलीज हुई थी, लेकिन बिहार, यूपी इन जगहों पर फिल्म बाद के शुक्रवारों को रिलीज हुई थी. जैसे 22 अगस्त तो कहीं 21 अगस्त तो कहीं 5 सितंबर. शोले के साथ एक छोटी फिल्म ‘गरीबी हटाओ’रिलीज हुई थी. रेहाना सुल्तान एक्ट्रेस थीं. वो फिल्म शोले के सामने टिक नहीं पायी.

(लेखक बॉलीवुड के विकीपीडिया माने जाते हैं. मराठी अखबार नवशक्ति के साथ 27 साल तक जुड़े रहे व कई राष्ट्रीय अखबारों में नियमित कॉलमिस्ट रहे हैं. )