इस झारखंडी गुरु से भी कला के गुर सीखे थे इरफान ने

महज 54 साल की उम्र में अभिनेता इरफान खान का निधन हो गया. भले ही वह हमें छोड़कर चला गया है लेकिन फिल्मी दुनिया के आसमान पर हमेशा यह सितारा जगमगाता रहेगा. चमचमाता सितारा जो साधारण परिवेश से आकर बॉलीवुड में छा गया था. उसकी सादगी और मेहनत में इतना दम था कि हॉलीवुड में भी कई शानदार किरदार निभा कर अपनी छाप छोड़ दी. क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से लेकिन अद्भुत सफर में झारखंड के गुरु का ज्ञान भी उनके साथ चलता रहा.इरफान को गुरु भाई कहकर संबोधित करने वाले नंदलाल जब भी मिलते तो तो इरफान हमेशा पूछते थे हमें कब कास्ट कर रहे हो....

By PankajKumar Pathak | April 29, 2020 9:21 PM

रांची : महज 54 साल की उम्र में अभिनेता इरफान खान का निधन हो गया. भले ही वह हमें छोड़कर चले गये लेकिन फिल्मी दुनिया के आसमान पर हमेशा यह सितारा जगमगाता रहेगा. जगमगाता सितारा, जो साधारण परिवेश से आकर बॉलीवुड में छा गया.

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उसकी सादगी और मेहनत में इतना दम था कि हॉलीवुड में भी कई शानदार किरदार निभाये जो हमेशा याद रखें जायेंगे. क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से लेकिन अद्भुत सफर में झारखंड के गुरु का ज्ञान भी इरफान खान के साथ चलता रहा. इरफान को गुरु भाई कहकर संबोधित करने वाले नंदलाल जब भी मिलते थे तो इरफान हमेशा पूछते थे, हमें कब कास्ट कर रहे हो…

इरफान का झारखंडी संस्कृति और लोकगीत से परिचय

झारखंड लोक संगीत की पहचान माने जाने वाले पद्मश्री मुकुंद नायक साल 1985 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा गये थे. यहीं पहली बार मुलाकात हुई थी इरफान खान से सिर्फ इरफान से नहीं मुकुंद नायक यहां मिले थे सभी छात्रों से जो भविष्य में ड्रामा और फिल्म जगत का सितारा बनकर चमकने वाले थे .यहां उन्होंने छात्रों का परिचय झारखंडी संस्कृति, लोकगायिकी और लाठी के खेल से कराया था. नंदलाल नायक इरफान को इसी रिश्ते से हमेशा गुरु भाई बुलाते थे.

किसके निमंत्रण पर हुआ था परिचय

उन दिनों को याद करते हुए मुकुंद नायक बताते हैं. उस वक्त एनएसडी के डायरेक्टर डॉ. सुरेश अवस्थी के बुलावे परगये थे. डॉ अवस्थी साल 1985 में फेस्टिवल ऑफ छोटानागपुर के आयोजन में शामिल होने के लिए जमशेदपुर आये हुए थे. यहां मुलाकात हुई. उन्होंने हमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आकर बच्चों को भी लोक संस्कृति का ज्ञान देने का आग्रह किया. इसी आग्रह पर हम अपनी टीम लेकर एनएसडी गये थे. यहीं सभी छात्रों के साथ- साथ हमारी मुलाकात इरफान से हुई थी.

इस गीत से प्रभावित हुए थे इरफान पूछा था सवाल

हमें वह गीत आज भी याद है जो हमने गाया था. बोल थे, अंबा मंजरे मधु मातलें रे,तइसने पिया मातल जाए.. इस गाने को सुनकर इरफान ने पूछा था कि इसे किसने लिखा है. इस गाने से और इसकी धुन से बहुत प्रभावित हुए थे. यहां की संस्कृति और परंपरा वहां लोगों को पसंद आयी. साल 1992 में एनएसडी का वर्कशॉप नेतरहाट में हुआ. एक महीने तक कलाकारों की टोली यहां रही थी. यहीं पर शकुंतला का मंचन हुआ जिसमें हमने गीत लिखा और पूरा नाटक गीतों के जरिये ही हुआ इरफान के साथी विपिन से यहीं हमारी दोबारा मुलाकात हुई. शकुंतला के मंचन की खूब चर्चा हुई और आज भी एनएसडी में इसे संग्रहित रखा गया है.

हमेशा पूछते थे कब कास्ट करोगे मुझे

मुकुंद नायक के बेटे नंदलाल नायक जब भी इरफान से मिलते थे उन्हें गुरु भाई कहकर संबोधित करते थे. नंदलाल कहते हैं बाबूजी की वजह से मैं उन्हें गुरु भाई कहकर ही संबोधित करता था.( एक ही गुरु से शिक्षा ले रहे दो शिष्य का रिश्ता आपस में गुरु भाई का होता है) इरफान से हुई मुलाकातों को याद करते हुए नंदलाल कहते हैं, गुरुभाई जब भी मिलते थे पूछते थे. हमें कब कास्ट कर रहे हो.. स्टार ऑफ स्टार्स जब इस तरह बात करता था, तो ऊर्जा मिलती थी. उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया. मेरी उनसे कई मुलाकात हुई. पहली मुलाकात साल 1992 में एनएसडी में हुई थी उस वक्त उनकी चर्चा पूरे एनएसडी में थी .

इरफान और निर्मल पांडेय दोनों के चेहरे चमकते थे, पूरे कैंपस में. दुख इस बात है कि दोनों अब इस दुनिया में नहीं है. दोनों इतने सरल स्वभाव के थे कि पूछिये मत. इरफान से फिर दूसरी मुलाकात हुई साल 200 में अंतरराष्ट्रीय लोकार्नो फिल्म समारोह में जो स्विजरलैंड में हुआ. इस वक्त यह एक फिल्म रिलीज कर रहे थे जिसका नाम था “द वॉरियर” . साल 2016 में दोबारा मुलाकात हुई, जब भी मिले हमेशा प्रोत्साहित ही किया उस वक्त जब बॉलीवुड में जब खास लोगों की चलती थी तब बॉलीवुड में झंडा गाड़ दिया.

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