इस वजह से ‘’गुलाबो सिताबो” में मिर्जा की भूमिका के लिए तैयार हुए थे अमिताभ बच्‍चन

amitabh bachchan mirza role gulabo sitabo ott platform: अभिनेता अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का कहना है कि हिंदी सिनेमा का छोटे शहरों की ओर फिर से रुख करना ‘‘बहुत स्वागतयोग्य'' चल है और यह चलन उन फिल्म निर्माताओं के कारण शुरू हुआ है जो उन स्थानों की कहानियां पर्दे पर दिखाना चाहते हैं जहां वे पले-बढ़े हैं.

By Prabhat Khabar Print Desk | June 12, 2020 7:19 PM

नयी दिल्ली : अभिनेता अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का कहना है कि हिंदी सिनेमा का छोटे शहरों की ओर फिर से रुख करना ‘‘बहुत स्वागतयोग्य” चल है और यह चलन उन फिल्म निर्माताओं के कारण शुरू हुआ है जो उन स्थानों की कहानियां पर्दे पर दिखाना चाहते हैं जहां वे पले-बढ़े हैं. ‘अमेजॉन प्राइम’ (Amazon Prime) पर शु्क्रवार को रिलीज हुई बच्चन अभिनीत फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ (Gulabo Sitabo)लखनऊ में फिल्माई गई है.

यह पहली बड़ी फिल्म है जिसका प्रीमियर किसी ओटीटी (ओवर-द-टॉप) मंच पर हुआ है. इस फिल्म का निर्देशन शूजित सरकार ने किया है. ओटीटी इंटरनेट के माध्यम से दर्शकों को सीधे पहुंचाई जाने वाली स्ट्रीमिंग मीडिया सेवा है.

फिल्म की कहानी बच्चन के किरदार मिर्जा और उसके किराएदार बांके (आयुष्मान खुराना) के बीच चूहे-बिल्ली की लड़ाई के इर्द-गिर्द घूमती है. हालिया वर्षों में हिंदी फिल्मों के छोटे शहरों की ओर फिर से रुख करने के संबंध में सवाल पूछे जाने पर बच्चन ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘हां, यह स्वागतयोग्य चलन है. शहरी क्षेत्रों में रह रहे और वहां काम कर रहे हममें से अधिक लोग उन छोटे शहरों से आए हैं या उनसे जुड़े हुए है, जिनकी आप बात कर रहे हैं.”

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अभिनेता ने ईमेल के जरिए दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘इसलिए इन छोटे शहरों में बड़े होने के दौरान के शुरुआती वर्षों को पुन: जीने से कई लोगों, निर्माताओं और सिनेप्रेमियों की यादें ताजी हो जाती हैं.” 77 वर्षीय बच्चन ने कहा कि वह उन्हें दी गई भूमिकाओं को लेकर अपने निर्देशकों से सवाल नहीं करते और इसीलिए उन्होंने ‘‘गुलाबो सिताबो” में मिर्जा की भूमिका को लेकर शूजित सरकार से सवाल नहीं किए.

बच्चन और सरकार ‘शूबाइट’, ‘पीकू’ और ‘पिंक’ जैसी फिल्मों में भी साथ काम कर चुके हैं. ‘शूबाइट’ अभी रिलीज नहीं हुई है. बच्चन ने कहा कि लखनऊ में शूटिंग के दौरान प्राधिकारियों और लोगों ने पूरा सहयोग दिया, जो उनके लिए सुखद अनुभव रहा.

‘गुलाबो-सिताबो’ के किरदार के मेकअप के लिए चार से पांच घंटे तक बैठे रहने के बारे में बच्चन ने कहा, ‘‘यह मुश्किल था. इसमें बहुत समय लगता था. हर दिन चार-पांच घंटे मेकअप में लगते थे. मई की गर्मी ने इसे और कठिन बना दिया, लेकिन अंतत: सबसे दक्ष मेकअप कलाकारों के विशेषज्ञ हाथों के जरिए जो अंत परिणाम निकला, वह मिसाल पेश करने वाला है.”

Posted By: Budhmani Minj

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