जीएसटी परिषद की अहम बैठक: टैक्स स्लैब में बड़े बदलाव की तैयारी
GST Council Meeting:: केंद्र सरकार जीएसटी कर स्लैब में बड़े बदलाव करने पर गंभीरता से विचार कर रही है, जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने जीएसटी में बड़े बदलाव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है. इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य टैक्स प्रणाली को सरल बनाना, आम लोगों और कारोबारियों दोनों को राहत पहुंचाना और उपभोग को बढ़ावा देना है.
GST Council Meeting: जीएसटी परिषद की एक बेहद अहम बैठक जल्द होने वाली है, जिसमें टैक्स स्लैब में बड़े बदलावों की तैयारी पर अंतिम मुहर लगने की उम्मीद है। इस बैठक पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि इसका सीधा असर आम आदमी की जेब और व्यवसायों की लागत पर पड़ने वाला है। अनुमान है कि सरकार टैक्स ढांचे को और सरल बनाने और कुछ जरूरी सामानों पर टैक्स का बोझ कम करने का फैसला ले सकती है, जिससे बढ़ती महंगाई से जूझ रहे लोगों को बड़ी राहत मिल सके। यह बैठक कई ऐसी घोषणाएं कर सकती है जो आने वाले समय में देश की आर्थिक गतिविधियों को एक नई दिशा देंगी।
पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य ‘एक राष्ट्र, एक कर’ की अवधारणा को साकार करना था। जीएसटी लागू होने के बाद से यह भारतीय अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। वर्तमान में, जीएसटी में पांच मुख्य स्लैब हैं: 0%, 5%, 12%, 18% और 28%। इसके अतिरिक्त, सोना-चांदी जैसी कीमती धातुओं के लिए 0. 25% और 3% के दो विशेष स्लैब भी मौजूद हैं।
समय-समय पर जीएसटी परिषद, जो कि देश में अप्रत्यक्ष करों से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है, दरों में बदलाव और कर प्रणाली को सरल बनाने पर विचार करती रही है। जीएसटी को लागू हुए लगभग आठ साल हो चुके हैं, और अब इसमें बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है।
संभावित बदलाव और उद्देश्य
केंद्र सरकार जीएसटी कर स्लैब में बड़े बदलाव करने पर गंभीरता से विचार कर रही है, जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने जीएसटी में बड़े बदलाव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य टैक्स प्रणाली को सरल बनाना, आम लोगों और कारोबारियों दोनों को राहत पहुंचाना और उपभोग को बढ़ावा देना है।
सबसे अहम प्रस्तावों में से एक 12% के जीएसटी स्लैब को खत्म करना है। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि 12% स्लैब में आने वाले उत्पादों को या तो 5% या 18% के स्लैब में डाल दिया जाए। यदि ऐसा होता है, तो रोजमर्रा के इस्तेमाल की कई वस्तुएं सस्ती हो सकती हैं, विशेषकर मध्यम और निम्न-आय वर्ग के परिवारों के लिए। वित्त मंत्रालय ने इस संबंध में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के प्रतिनिधियों के साथ बैठकें की हैं और विभिन्न उत्पादों पर जीएसटी दरों में कटौती के लिए सुझाव मांगे हैं।
मौजूदा चार स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) को घटाकर तीन स्लैब (5%, 18%, 28%) करने पर भी विचार किया जा रहा है। 5% स्लैब में जीएसटी के तहत आने वाले कुल सामानों का लगभग 21% हिस्सा है, जबकि 12% स्लैब में 19% और 18% स्लैब में सबसे ज्यादा, 44% सामान आते हैं। 28% वाली सबसे ऊंची दर में कुल सामानों का 3% हिस्सा शामिल है, जिसमें लग्जरी और नुकसानदायक सामान शामिल हैं।
अपेक्षित बैठक और चर्चा के बिंदु
जीएसटी परिषद की अगली बैठक अगस्त 2025 में संसद के मानसून सत्र समाप्त होने के बाद होने की संभावना है। इस बैठक में टैक्स स्लैब में बदलाव और प्रक्रियाओं को आसान बनाने से जुड़े प्रस्तावों पर चर्चा की जाएगी। हालांकि, औपचारिक तारीख का ऐलान अभी नहीं किया गया है, और एजेंडा को बाद में अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
प्रमुख चर्चा के बिंदुओं में शामिल हैं:
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टैक्स स्लैब का सरलीकरण
- 12% स्लैब को खत्म करने और उसमें आने वाले सामानों को 5% या 18% स्लैब में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव।
- चार स्लैब प्रणाली को तीन स्लैब प्रणाली में बदलने पर विचार।
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सेस का भविष्य
- मार्च 2026 में समाप्त होने वाले कंपनसेशन सेस के भविष्य पर चर्चा।
- कंपनसेशन सेस को हटाकर स्वास्थ्य सेस और क्लीन एनर्जी सेस जैसे नए सेस लगाने का प्रस्ताव, जो तंबाकू, शराब, लग्जरी वस्तुओं और ऑटोमोबाइल जैसे “सिन गुड्स” पर लगाए जा सकते हैं।
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प्रक्रियात्मक सरलीकरण
- जीएसटी प्रणाली को व्यापारियों और ग्राहकों के लिए और अधिक आसान और व्यवहारिक बनाना।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट के वितरण से संबंधित बदलाव, खासकर अंतर-राज्यीय आपूर्तियों के लिए।
- ट्रैक एंड ट्रेस व्यवस्था के कार्यान्वयन के लिए विशिष्ट पहचान मार्किंग को परिभाषित करने वाले नए प्रावधान।
जीएसटी परिषद के तहत केंद्र और राज्यों के अधिकारियों वाली फिटमेंट कमेटी ने राजस्व तटस्थ ढांचा तैयार करने के लिए जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया पर काम शुरू कर दिया है। इसमें कुछ दरों और विशेष तौर पर 12% दर को हटाने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
हितधारकों के दृष्टिकोण और संभावित परिणाम
सरकार का मानना है कि जीएसटी को आसान बनाने से अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिल सकता है। एक सरलीकृत जीएसटी व्यवस्था अर्थव्यवस्था को गति दे सकती है, खासकर ऐसे समय में जब कर का ढांचा स्थिर हो रहा है और अर्थव्यवस्था मजबूत है।
उद्योग जगत और व्यापार संगठनों ने भी जीएसटी ढांचे में बदलाव की मांग की है, जिसमें दरें, स्लैब और प्रक्रियाओं को बदलने की बात कही गई है, क्योंकि उन्हें कई तरह की परेशानियां बताई गई हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों ने भी जीएसटी से जुड़े मुद्दों को उठाया है और उन्हें हल करने की जरूरत बताई है।
यदि 12% के स्लैब को खत्म कर दिया जाता है और उसमें आने वाले सामानों को 5% के स्लैब में डाल दिया जाता है, तो टूथपेस्ट, बर्तन, कपड़े, जूते जैसे आम आदमी के इस्तेमाल में आने वाले कई सामान सस्ते हो सकते हैं। इसमें पनीर, खजूर, सूखे मेवे, पास्ता, जैम, पैकेज्ड फ्रूट जूस, नमकीन, छाते, टोपी, साइकिल, लकड़ी से बने फर्नीचर, पेंसिल, जूट या कपास से बने हैंडबैग, शॉपिंग बैग आदि भी शामिल हो सकते हैं।
हालांकि, कंपनसेशन सेस को हटाकर नए सेस लगाने से तंबाकू उत्पाद, सिगरेट और गाड़ियां जैसी “सिन गुड्स” महंगी हो सकती हैं। इससे सरकार पर शुरुआती तौर पर ₹40,000 करोड़ से ₹50,000 करोड़ का बोझ पड़ने का अनुमान है, लेकिन सरकार इसे झेलने के लिए तैयार है, क्योंकि उनका मानना है कि कम कीमतों से खपत में बढ़ोतरी होगी, जिससे अंततः उच्च कर राजस्व प्राप्त होगा.
जीएसटी परिषद की अगली बैठक में इन सभी प्रस्तावों पर व्यापक चर्चा होने की उम्मीद है, और राज्यों से सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी ताकि सुधारों को लागू किया जा सके.
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