SBI की जनरल इंश्योरेंस को लिस्टेड होने में अभी लग सकता है तीन साल

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि बैंक को अपनी साधारण बीमा कंपनी को सूचीबद्ध कराने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है. अंग्रेजी के एक अखबार की ओर से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुमार ने कहा कि एसबीआई जनरल इंश्योरेंस को […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 17, 2019 7:30 PM

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि बैंक को अपनी साधारण बीमा कंपनी को सूचीबद्ध कराने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है. अंग्रेजी के एक अखबार की ओर से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुमार ने कहा कि एसबीआई जनरल इंश्योरेंस को सूचीबद्ध करने से पहले बैंक अपनी संपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) को सूचीबद्ध करायेगा.

स्टेट बैंक ने पिछले साल ही अपनी जीवन बीमा इकाई एसबीआई लाइफ को सूचीबद्ध किया है. इससे बैंक को अपनी संपत्ति गुणवत्ता में आ रही मुश्किलों से निपटने में मदद मिली. स्टेट बैंक एसबीआई कार्ड्स में भी अपनी आंशिक हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रहा है. उन्होंने कहा कि हम इस पर विचार कर रहे हैं, लेकिन आप यदि इसके क्रम की यदि बात करते हैं, तो पहले एएमसी होगा और उसके बाद एसबीआई जनरल आयेगा. हमारा मानना है कि स्टेट बैक जनरल इंश्योरेंस को परिपक्व होने में अभी दो से तीन साल का समय लग सकता है.
बैंक की संपत्ति गुणवत्ता के बारे में कुमार ने दोहराया कि गैर-निष्पादित राशि यानी फंसी कर्ज राशि का मामला पिछली तिमाही में जहां तक पहुंचना था, पहुंच चुका है और अब इस तिमाही से इसमें सुधार दिखेगा. दूरसंचार क्षेत्र को दिये गये कर्ज के बारे में कुमार ने कहा कि बैंक ने इस क्षेत्र में अपनी ऊंगली ही नहीं शरीर भी जलाया है, लेकिन अब इस क्षेत्र को लेकर विश्वास मजबूत हुआ है. उन्होंने कहा कि अब जोखिम काफी कम है और यदि भविष्य में कुछ झटका लगता भी है, तो बैंक इसको सहने की स्थिति में है.

कुमार ने कहा कि बैंक को बड़ी परियोजनाओं के लिए ज्यादा मांग प्राप्त नहीं हो रही है. अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए बैंक के समक्ष परियोजना ऋण मांग काफी कम रही है. नकदी अधिशेष की लगातार कुछ समय चली अवधि के बीच उन्होंने कहा कि कंपनियों की ऋण जरूरतों को पूरा करने में धन की उपलब्धता समस्या नहीं है, लेकिन इक्विटी से पूंजी जुटाने का काम ऐसा है, जो काफी मुश्किल हो गया है.

सरकारी बैंकों के विलय के सवाल पर कुमार ने कहा कि उन्हें इसके बाद भी कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई देता है. उन्होंने इशारे में कहा कि सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों के प्रबंधन को अपने विवेक से व्यावसायिक निर्णय लेने की आजादी निजी क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले काफी सीमित होती है. आप यदि निजी बैंक हैं, तो आपके पास ग्राहक चुनने के विकल्प मौजूद होते हैं, लेकिन स्टेट बैंक में आपके पास चाहे वह व्यवसाय मुनाफा नहीं कमा रहा है, कई बार कोई विकल्प नहीं होता है.

कुमार ने कहा कि स्टेट बैंक को सरकार से किसी और पूंजी की आवश्यकता नहीं है और वह अपने बफर के लिए आंतरिक प्राप्तियों और मुनाफे पर निर्भर होगा. वह चाहता है कि उसके समकक्ष भी ऐसा ही करें.

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