सरकार ने गन्ने का न्यूनतम मूल्य 275 रुपये क्विंटल पर बरकरार रखा

नयी दिल्ली : सरकार ने बुधवार को गन्ना किसानों के लिए न्यूनतम 275 रुपये प्रति क्विंटल के भाव को अक्टूबर से शुरू अगले विपणन वर्ष में बरकरार रखने का फैसला किया. यह वह भाव है, जो मिल मालिक किसानों को देते हैं. मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में विपणन वर्ष 2019-20 […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 24, 2019 7:45 PM

नयी दिल्ली : सरकार ने बुधवार को गन्ना किसानों के लिए न्यूनतम 275 रुपये प्रति क्विंटल के भाव को अक्टूबर से शुरू अगले विपणन वर्ष में बरकरार रखने का फैसला किया. यह वह भाव है, जो मिल मालिक किसानों को देते हैं. मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में विपणन वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को यथावत रखने का फैसला किया गया. यह कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के अनुरूप है. सीएसीपी सांविधिक निकाय है, जो प्रमुख कृषि उपज के मूल्य के बारे में सरकार को परामर्श देता है.

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सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्रिमंडल के निर्णय के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए कहा कि सरकार ने सीएसीपी की गन्ना मूल्य के बारे में सिफारिश को स्वीकार कर लिया है. इस साल भी किसानों को गन्ने का (उचित और लाभदायक) मूल्य 275 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा.

सीसीईए ने जिस एफआरपी मूल्य को मंजूरी दी है, वह चीनी की 10 फीसदी मूल प्राप्ति (रिवकरी) और 2.75 रुपये प्रति क्विंटल प्रीमियम से जुड़ा है. यानी प्राप्ति दर में प्रत्येक 0.1 फीसदी की वृद्धि पर 2.68 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम मिलेगा. सरकार ने एक अलग बयान में कहा कि इस मंजूरी से गन्ना किसानों को गारंटीशुदा भाव मिलना सुनिश्चित होगा. एफआरपी का निर्धारण गन्ना किसानों के हित में है.

एफआरपी का निर्धारण गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत निर्धारित किया जाता है. यह न्यूनतम कीमत है, जो चीनी मिलों को गन्ना किसानों को देने होते हैं. इस निर्णय का स्वागत करते हुए इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि यह निर्णय उम्मीद के अनुरूप है. पिछले कुछ साल में एफआरपी में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और गन्ने पर रिटर्न ने अन्य फसलों को पीछे छोड़ दिया है.

संगठन ने बयान में कहा कि इस निर्णय से अन्य फसलों के बीच संतुलन स्थापित होगा. इससे चीनी मिलों को भी लाभ होगा, क्योंकि चीनी उत्पादन में 70 से 75 फीसदी लागत केवल गन्ने का है. साथ ही, इससे किसानों के बकाया गन्ना भाव को काबू में रखने में मदद मिलेगी.

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