मोबाइल छीन रहा बच्चों की सीखने की क्षमता

पटना : बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर होने वाली कई स्टडी बताती है कि अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं. जब उनकी यह आदत बदलने की कोशिश की जाती है तो वो चिड़चिड़े, आक्रामक और कुंठाग्रस्त हो जाते हैं. डॉक्टर इसका दोष काफी हद तक माता- पिता को […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 3, 2019 9:33 AM

पटना : बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर होने वाली कई स्टडी बताती है कि अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं. जब उनकी यह आदत बदलने की कोशिश की जाती है तो वो चिड़चिड़े, आक्रामक और कुंठाग्रस्त हो जाते हैं. डॉक्टर इसका दोष काफी हद तक माता- पिता को देते हैं. उनका कहना है कि कई बार जागरूकता या जानकारी के अभाव में माता-पिता को बच्चे के फोन ज्ञान पर गर्व होता है. बच्चे के रोने या किसी तरह की जिद करने पर बहलाने के लिए फोन देना उसे इस नयी लत का गुलाम बनाने का पहला कदम है.

डॉक्टर बताते हैं कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने के कारण बच्चों में सीखने की क्षमता कम हो रही है. वह लंबे वक्त तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है तो उसका मानसिक विकास कम होगा व बच्चा मंदबुद्धि भी हो सकता है. वहीं लगातार स्मार्टफोन पर नजर लगाये रखने के कारण डिजिटल आइ सिंड्रोम या ड्राइ आइ सिंड्रोम की शिकायत बच्चों में बढ़ रही है. इतना ही नहीं इन दिनों कई बच्चों में वजन घटने या मोटापा बढ़ने का कारण भी यह है. खाना खाते हुए फोन देखने और गेम्स खेलने की लत की वजह से अटेंशन डेफिसिट डिसॉर्डर, हाइपरऐक्टिविटी और स्लीप डिसॉर्डर जैसी बीमारियां भी बच्चों को घेर रही हैं. स्टडी बताती है कि बच्चों में इसका प्रभाव किसी बड़े व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा नुकसानदायक होता है.

ये दो केस

ये दो केस बताते हैं कि इन दिनों छोटे बच्चों में भी स्मार्टफोन की लत लगती जा रही है. जिस उम्र में बच्चों को भाग-दौड़ वाले खेल खेलना चाहिए उस उम्र में वह स्मार्टफोन में लगे रहते हैं. बच्चे अपने आस-पास की दुनिया से बेखबर होकर वर्चुअल दुनिया में खोये रहते हैं. इसका नुकसान उनके दिमाग,आंख समेत शरीर के अन्य हिस्सों पर तो होता ही है इसके साथ ही उनके सामाजिक जीवन पर भी असर पड़ रहा है.

केस 1 : दो वर्ष का राहुल घंटों स्मार्टफोन में लगा रहता है. वह यूट्यूब पर कार्टून चैनल देखता है. कई बार जब वह किसी बात पर रोने लगता है तो उसकी मां स्मार्टफोन ओपेन कर उसे दे देती है. इस दौरान अगर कोई उससे मोबाइल लेने की कोशिश करे तो वह रोने लगता है. उसे अपने पड़ोस में रहने वाले बच्चों के नाम नहीं मालूम लेकिन कई कार्टून कैरेक्टर को वह पहचानता है.

केस 2 : 10 वर्ष के दीपक को मोबाइल पर वीडियो गेम खेलना पसंद है. वह घंटों अपने पापा के मोबाइल पर गेम खेलता है. खाने के समय भी खेलता रहता है. उसकी उम्र के बच्चे जब घर के बाहर फिजिकल एक्सरसाइज वाले खेल खेलते रहते हैं तब भी वह अपने घर में स्मार्टफोन चलाता रहता है. उसके माता-पिता इस बात से खुश हैं कि बेटे को स्मार्टफोन की अच्छी समझ है.

मोबाइल का रेडिएशन बच्चों के लिए हो सकता है खतरनाक

वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ और नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अनिल कुमार तिवारी कहते हैं कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. मोबाइल से रेडिएशन निकलता है जो कि छोटे बच्चों पर घातक असर करता है. जो बच्चे घंटों स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं उनमें सीखने की क्षमता कम हो जाती है. वे पढ़ाई और दिमागी रूप से कमजोर हो सकते हैं. उनमें ऑटिज्म की बीमारी होने की संभावना होती है. रिसर्च हो तो कई और तरह के नुकसान सामने आयेंगे. जो बच्चे ज्यादा स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं मोटापा और सही तरह से नहीं खाने के कारण कुपोषण की शिकायतें भी आ रही हैं.

बच्चों के सामने माता- पिता भी कम करे स्मार्टफोन का इस्तेमाल

चर्चित मनोचिकित्सक डॉ विनय कुमार बच्चों में स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि इससे बच्चे समाज से कट रहे हैं. विभिन्न रिसर्च में साइंटिफिक तौर पर साबित हो चुका है कि ज्यादा देर स्मार्टफोन देखने वाले बच्चों में रचनाशीलता खत्म हाेने लगती है. वह कहते हैं कि बचपन दुनिया या नयी चीजों को खोजने की उम्र होती है. इस उम्र में बच्चे खेलते- कूदते हैं और वस्तुओं को छूते हैं तब उन्हें एहसास होता है कि यह वस्तु रियल है. वे पानी, दीवार, मिट्टी, व्यक्ति को छूकर एहसास करते हैं और प्रकृति के संपर्क में आते हैं. लेकिन जब स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं तब वे उसमें हो रहे एक्शन के बदले रिएक्शन नहीं दे पाते. ऐसे बच्चे वास्तविक दुनिया की जगह वर्चुअल दुनिया में सोचते हैं इसके कारण समाज से कट जाते हैं. भविष्य में उनमें आपराधिक सोच विकसित होने की संभावना भी होती है. डॉ विनय कुमार कहते हैं कि माता-पिता बच्चों के भविष्य के लिए खुद भी मोबाइल और टीवी पर समय कम से कम दे. क्योंकि बच्चे उन्हें देखते हैं और फॉलो करते हैं.

बढ़ रहा ड्राइ आइ सिंड्रोम

शहर के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि स्मार्टफोन से बच्चों की अांखों को नुकसान पहुंच रहा है. जब बच्चे वीडियो देखते हैं तब पलक कम झपकते हैं. हमें एक मिनट में करीब 14-16 बार पलक झपकना चाहिए जबकि स्मार्टफोन पर वीडियो देखते समय मात्र चार से पांच बार ही पलक झपकते हैं. इससे उनमें ड्राइ आइ सिंड्रोम या डिजिटल आइ सिंड्रोम की परेशानी बढ़ रही है. लगातार देर तक स्मार्टफोन देखना बेहद आंखों की सेहत के लिए नुकसानदायक है. बच्चों का शरीर चूंकि कोमल होता है इसलिए उन्हें इसका ज्यादा नुकसान होता है. आंखें सीधे प्रभावित होने से बच्चों को जल्दी चश्मा लगने, आंखों में जलन और सूखापन, थकान जैसी दिक्कते हो रही हैं.

ध्यान रखें

स्मार्टफोन चलाने के दौरान पलकें कम झपकाते हैं, यह आंखों के लिए नुकसानदायक है.

कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं

बाहर खेलने न जाने की वजह से उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता

बच्चे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं

वे भावनात्मक रूप से कमजोर होते जाते हैं ऐसे में हिंसक गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं.

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