Pakistan: मान गये इमरान खान, ‘आजादी मार्च’ को अचानक कर दिया खत्म

‘डॉन’ अखबार के अनुसार, आम धारणा यह है कि चीजों को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए सेना को अंततः अपनी भूमिका निभानी पड़ी. पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल नईम खालिद लोधी ने कहा कि वह भी इससे सहमत हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 28, 2022 7:07 PM

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त सैन्य जनरल और एक प्रमुख कारोबारी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को राजी किया था कि वह अपनी पार्टी के लंबे मार्च के अंत में इस्लामाबाद में धरना का आयोजन नहीं करें. मीडिया की एक खबर में शनिवार को यह जानकारी दी गयी.

25 मई को शुरू किया था आजादी मार्च

इमरान खान ने इस्लामाबाद में धरना देने की घोषणा के साथ देश में नये सिरे से चुनाव के लिए दबाव बनाने की खातिर अपना ‘आजादी मार्च’ 25 मई को शुरू किया था. लेकिन, बाद में उन्होंने इसे यह कहते हुए वापस ले लिया कि सरकार खुश होगी अगर वह अपने इस इरादे पर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि यह लोगों, पुलिस और सेना के बीच टकराव का कारण बन सकता है.

इमरान के प्रतिद्वंद्वी रह गये हैरान

इमरान खान के मार्च के बाद धरना नहीं देने की घोषणा से उनके समर्थकों और प्रतिद्वंद्वियों दोनों को हैरानी हुई. ‘डॉन’ अखबार की खबर के अनुसार, एक चीज पर सब सहमत हैं – जिस तरह से यह सब समाप्त हुआ, कम से कम अभी के लिए, यह स्पष्ट संकेत देता है कि इसे किसने किया.

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इन लोगों ने किया बीच-बचाव

एक सूत्र के हवाले से खबर में कहा गया है कि जिन लोगों ने बीच-बचाव किया, उनमें एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश, एक प्रमुख कारोबारी और एक सेवानिवृत्त जनरल शामिल थे. सूत्र ने कहा, ‘इमरान खान की जिद और इस तथ्य को देखते हुए कि उन्होंने मार्च धरना के लिए काफी तैयारी की थी, उन्हें मनाना आसान काम नहीं था.’

इस आश्वासन पर माने इमरान खान

खबर के मुताबिक, सुलह के घटनाक्रम का ब्योरा दिये बिना सूत्र ने कहा कि बुधवार देर रात और संभवत: बृहस्पतिवार तड़के तक बातचीत जारी रही. खान इस आश्वासन पर धरना आयोजित नहीं करने पर सहमत हो गये कि जून तक विधानसभाओं को भंग किये जाने और आम चुनाव के लिए तारीख की घोषणा की जायेगी.

इमरान ने सरकार को दी थी 6 दिन की समय सीमा

इमरान खान ने बृहस्पतिवार को प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने और आम चुनावों की घोषणा करने के लिए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार को 6 दिन की समयसीमा देते हुए आगाह किया कि अगर ‘आयातित सरकार’ ऐसा करने में विफल रही, तो वह ‘समूचे देश’ के साथ राजधानी लौटेंगे.

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आम धारणा- सेना को करना पड़ा हस्तक्षेप

‘डॉन’ अखबार के अनुसार, आम धारणा यह है कि चीजों को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए सेना को अंततः अपनी भूमिका निभानी पड़ी. पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल नईम खालिद लोधी ने कहा कि वह भी इससे सहमत हैं. लोधी ने कहा, ‘अराजकता को रोकने और राजनीतिक स्थिरता की तलाश में सेना द्वारा सकारात्मक हस्तक्षेप की प्रबल संभावना है, ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की प्रक्रिया शुरू हो सके.’

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