नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की सलाह, बुजुर्गों की ओर लौटें

हमारे वर्तमान समाज में बच्चों के प्रति मां-बाप का रवैया असहिष्णु होता जा रहा है. अभिभावकों में मित्रभाव का अभाव बच्चों को उनसे दूर ही नहीं कर रहा, उनका बचपन भी छीन रहा है. हालांकि इसके समाजार्थिक कारण ये हैं कि मध्यवर्गीय तबके में एकल परिवारों का चलन बढ़ा है, जिससे बच्चे एकाकीपन के शिकार […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 12, 2014 7:28 AM

हमारे वर्तमान समाज में बच्चों के प्रति मां-बाप का रवैया असहिष्णु होता जा रहा है. अभिभावकों में मित्रभाव का अभाव बच्चों को उनसे दूर ही नहीं कर रहा, उनका बचपन भी छीन रहा है. हालांकि इसके समाजार्थिक कारण ये हैं कि मध्यवर्गीय तबके में एकल परिवारों का चलन बढ़ा है, जिससे बच्चे एकाकीपन के शिकार होकर हिंसा की ओर बढ़ने लगे हैं.

स्कूल से आने के बाद वे घर में अकेले होते हैं तो सिर्फ टीवी देखते हैं या फिर विडियोगेम खेलते हैं. पूरी दुनिया में इस पर बहस जारी है. आज अमेरिका, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश भी इस बात से बेहद चिंतित हैं कि उनके बच्चे क्यों बड़ों जैसे व्यवहार कर रहे हैं और क्यों वे छोटी सी उम्र में ही इतने हिंसक हो रहे हैं.

मसला यह है कि एकाकीपन बढ़ने से बच्चों में संवादहीनता बढ़ रही है. बच्चों के न बोल पाने से उनके साथ हुई हिंसा को भी वे किसी से शेयर नहीं कर सकते. यही उनके मन में कहीं घर की हुई रहती है जो एक वक्त आने पर बाहर आ जाती है. ऐसे में बचपन बचाने की मुहिम के मद्देनजर पूरी दुनिया ने जो महसूस किया है वह है बुजुर्गों की हमारे घरों में मौजूदगी की जरूरत.
आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि भारत के मध्यवर्ग में ज्यादातर एकल परिवार हैं. वे अपने बुजुर्गों को गांव या पुश्तैनी जगहों पर छोड़ देते हैं और घर में एक नौकर रख लेते हैं. वह नौकर, लड़का हो या लड़की, जो आर्थिक तंगी का शिकार होता है, उसके साथ बच्चा अपनी बात कैसे शेयर कर सकता है.
इसलिए जरूरी है कि हम अपने बुजुर्गों की ओर लौटें. किसी भी घर के लिए बुजुर्गों का साथ बच्चों को मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सुरक्षा दे सकता है. इसे हमें बहुत गौर से सोचने की जरूरत है. और कोई चारा नहीं है जिससे हम अपने बच्चों का मासूम बचपन संभाल सकें, क्योंकि बच्चे और बूढ़े दोनों की संवेदनाएं कहीं न कहीं मिलती हैं, जो उन्हें एक दूसरे की संवेदनाओं को शेयर करने में मदद करती हैं. बुजुर्ग अच्छी चीज को अपनाने और बुरी चीज को नकारने की सलाह देते हैं.
(यह बातचीत 2012 में प्रभात खबर के बचपन बचाओ अभियान के तहत वसीम अकरम ने की थी.)
* छात्रों के लिए छोटा सा मशवरा
मैं आपको एक छोटा सा मशवरा देना चाहती हूं. हालांकि यह आसान नजर नहीं आयेगा. बच्चों के मन में यह सवाल अक्सर आता है कि आखिर मैं इतना सारा होमवर्क क्यों करता हूं? मैं हर रोज सुबह जल्दी जाग कर स्कूल
* क्यों जाता हूं?
मेरा मानना है कि रोज-रोज सुबह जल्दी जागना मेरे लिए और हम सभी के लिए बहुत ही कठिन होता है. लेकिन स्कूल जाने का मतलब है अपने भविष्य का निर्माण करना. जब आप स्कूल जायेंगे, तभी अपने भविष्य को बना पायेंगे. आप अपना भविष्य बनायेंगे, तो अपने देश के भविष्य के निर्माण में भी भूमिका निभायेंगे. स्कूल आपकी प्रतिभा को सजाता और संवारता है. स्कूल आपको बहुत कुछ नया सीखने का मौका देता है. आपकी प्रतिभा के विकास का रास्ता तैयार करता है, जिस पर चल कर आप भविष्य मंे एक बेहतर जॉब और बेहतर जिंदगी पा हासिल कर सकते हैं. अगर आपके भीतर कोई कला है, तो स्कूल उस कला को पहचानने और उसे मांजने में आपकीमदद करता है
इसके साथ ही आप स्कूल में अन्य बुनियादी बातें सीखते हैं. आपको एक मित्रतापूर्ण माहौल में सीखने का मौका मिलता है, जहां आप हम एक-दूसरे के साथ रहते हैं. हम एक जैसी बेंच पर बैठते हैं, यह हममें समानता और बराबरी की भावना को प्रदर्शित करता है.
(ओ कनाडा डॉट कॉम से)

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