स्त्रियां सृजनधर्मी होती हैं और उनके सौंदर्यबोध से हम सुंदर बनते हैं

अविनाश रंजन भरत प्रसाद समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं. मौजूदा परिदृश्य में इनकी कविताएं मौजू जान पड़ती हैं. पुकारता हूं कबीर इनका तीसरा काव्य संग्रह है जो अमन प्रकाशन , कानपुर से प्रकाशित होकर आया है. 144 पेज के इस संग्रह में कुल 57 चुनिंदा कविताएं हैं. आत्मसंघर्ष से निकली कविता सबसे अच्छी और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 20, 2019 7:01 AM

अविनाश रंजन

भरत प्रसाद समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं. मौजूदा परिदृश्य में इनकी कविताएं मौजू जान पड़ती हैं. पुकारता हूं कबीर इनका तीसरा काव्य संग्रह है जो अमन प्रकाशन , कानपुर से प्रकाशित होकर आया है. 144 पेज के इस संग्रह में कुल 57 चुनिंदा कविताएं हैं.

आत्मसंघर्ष से निकली कविता सबसे अच्छी और प्रामाणिक कविता होती है. इसकी व्याप्ति विस्तृत होती है. आज के दौर में जब चीज के मायने बदल गये हैं. ऐसे समय में कवि क्या करें.

कवि एकांत में बैठकर आध्यात्मिक कविता करे? और क्या ऐसे कवि को इतिहास कभी माफ करेगा ? वजूद विरोधों के बीच मजबूती से टिका हो तो प्रतिरोध की इस संस्कृति को कवि कविता के माध्यम से निर्मित करना चाहता है.

यह पुस्तक बताती है कि स्त्रियां सृजनधर्मी होती हैं और उनके सौंदर्यबोध से हम सुंदर बनते हैं. उन्हीं की बदौलत पृथ्वी पर गीत हैं ,कालजयी कृतियां हैं.

पर आज वो उपेक्षित और प्रताड़ित हैं. संघर्षों और आंदोलनों के बावजूद वो आज भी हाशिये पर हैं. फिर वो स्त्रियां भी हैं जिन्हें हम घृणा की नजर से देखते हैं. अर्थात ‘ वेश्या’. इनके अपने सपने हैं, खुशियों को पाने की चाहत है. सच्चे रिश्ते की दिली ख्वहिश है. मर्द इन्हें देह के जख्म के साथ मन के जख्म भी देते हैं. रेड लाइट एरिया कविता मुक्ति की कामना की कविता है.

इनकी कविताओं में जीवन के कई सवालों को उठाया गया है जिसमें एक तरफ तो गोरखपुर अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से मारे गये बच्चों के प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति है वहीं दूसरी ओर वैसे बच्चे भी आते हैं जो सड़कों पर कूड़ा उठाते हैं. ये कविताएं सवाल करती हैं कि क्या 21वीं सदी का भारत ऐसा ही होना चाहिए ? क्या इतिहास , भूगोल और अर्थशास्त्र की किताबों से बाहर जाकर इनके जीवन को संवेदनशीलता से पढ़ने की जरूरत नहीं है? भरत प्रसाद की कविता में मौलिकता, नयापन और ताजगी है. शब्द अर्थ में नयी ऊर्जा भरते हैं.

पुस्तक का नाम

पुकारता हूं कबीर

लेखक का नाम

भरत प्रसाद

प्रकाशन

अमन प्रकाशन , कानपुर

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